इसकी दो मुख्य विधियां हैं:
कैलेंडर-आधारित विधि- इसमें अपने पीरियड के बीच के दिनों को गिना जाता है। पीरियड से पहले के हफ्ते और इसके शुरू होने के बाद के हफ्ते में आप सबसे कम प्रजनन योग्य (फर्टाइल) होती हैं। उसके बाद के दो हफ्तों में आपके प्रेगनेंसी के चान्सेस सब से ज़्यादा हैं।
लक्षण-आधारित विधि- पीरियड्स के बीच के दिनों को पता करने के अलावा, आप अंडोत्सर्ग या ओवुलेशन (ovulation) के लक्षणों को जानने के लिए भी अपने शरीर की जांच कर सकती हैं। आप ऐसा नियमित रूप से अपना तापमान लेकर, या अपनी योनि से निकलने वाले म्यूकस को देखकर भी कर सकती हैं।
प्राकृतिक परिवार नियोजन विधियों का कोई साइड इफेक्ट नहीं होता है और ये सस्ते होते हैं। लेकिन आज ऐप्स से लेकर हाई-टेक थर्मामीटर तक आसानी से कई टूल्स उपलब्ध होने के बाद भी ये बहुत भरोसेमंद नहीं हैं। आपका पीरियड जितना नियमित होगा, उतना ही बेहतर तरीके से आप समझ पाएंगी कि आपके चक्र के दौरान क्या होता है।
लेकिन प्रेगनेंट होने का जोखिम अब भी बहुत अधिक होता है। यदि आप यह जोखिम लेने को तैयार हैं तो आपको सावधानी से इसके बारे सोचना चाहिए।
असफलता दर
प्राकृतिक परिवार नियोजन की असफलता दर की बात की जाए तो यह लगभग 12-14% होती है और अगर हम इसकी तुलना करें तो यह पुरुष कॉन्डम के असफलता दर 13% के लगभग बराबर और महिला कॉन्डम की असफलता दर 21% से कम है। कॉन्डम बहुत प्रभावी होता है।
परिवार नियोजन के प्राकृतिक तरीकों का का सही ढंग से इस्तेमाल करना मुश्किल होता है (जैसे कि पार्टनर का सहयोग बहुत ज़रूरी है आदि), फिर भी अगर आपको असफलता दर से कोई दिक्कत नहीं है तो आप इसके इसके इस्तेमाल के बारे में सोच सकते हैं। अगर कोई प्राकृतिक परिवार नियोजन का बहुत ही सही ढंग से इस्तेमाल करे तो इसकी असफलता दर को काफी कम (2-5% के बीच) किया जा सकता है।