आंटीजी कहती हैं...पवन बेटा, तेरे विचार सुनकर तेरी आंटी को बहुत ख़ुशी हुई हैI पहला कदम तो तूने उठा लिया है! अब ज़रा देखते हैं कि तू सही दिशा में आगे कैसे बढ़ सकता है?
मैं तेरी बात से बिलकुल सहमत हूँ पवनI हमारे इर्द गिर्द सचमुच समलैंगिकों को लेकर डर और नफरत ही दिखाई देती हैI लोग अक्सर इस मुद्दे को लेकर सहनशील हो जाते हैं और आक्रामक रुख अपना लेते हैंI इस देश में वाकई समलैंगिक सक्रियतावाद कि बहुत ज़रूरत हैI
पता नहीं लोगों को क्या हो गया है! मुझे अक्सर अचम्भा होता है कि लोगों को समलैंगिकों से आखिर क्या परेशानी रहती है? इस बारे में अलग अलग राय और मान्यता हैंI
जानकारी कि कमी
मेरा यकीन है कि जब लोगों के पास इस विषय को लेकर कम जानकारी रहती है तो वो अपनी राय बना लेते हैं और उस राय के आधार पर आक्रामक हो जाते हैंI
शायद लोग सोचते हैं कि सभी समलैंगिक, बहुलैंगिक और विपरीतलिंगी लोग बलात्कारी प्रवर्ति के होते हैं और मौका मिलते ही शायद कुकर्म कर देते हैंI शायद उन्हें ये ग़लतफ़हमी भी होती है कि वो इतने आकर्षक हैं कि उन्हें देखकर समलैंगिक लोग खुद पर काबू नहीं रख पातेI क्या बाकि विषमलिंगी भी ऐसे ही उन पर हमला करते हैं, नहीं ना? तो फिर केवल समलैंगिकों के साथ ऐसा नजरिया क्यों भाई?
ड्यूटी सबकी
अब सवाल ये है कि इस बदलाव को लेन के लिए क्या किया जाये? तो मेरे विचार में इस बदलाव को लेन में भूमिका सिर्फ उनकी नहीं जो इस भेदभाव से पीड़ित हैं, बल्कि हम सबकी हैI
अपनी पहचान मात्र को एक सामाजिक दर्ज देने के लिए इन्हे कितना संघर्ष करना पड़ रहा है, कभी इसके बारे में पढ़नाI इन् अधिकारों के लिए विश्व भर में तरह तरह के प्रदर्शन और आंदोलन चल रहे हैंI
तो भेदभाव करने से पहले अपनी जानकारी थोड़ी बढ़ानी ज़रूरी है और खुद को इन् मुद्दों के बारे में और जागरूक बनाना भीI अब बात आती है तेरे योगदान की...
छोटे कदम
अपने फेसबुक पेज पर इससे जुडी कुछ जानकारी, तथ्य, ग़लतफ़हमी या कोई सन्देश या कहानी लगाकर तू लोगों की जागरूकता की दिशा में पहला कदम बढ़ा सकता हैI कैसा लगा आईडिया?
न्यायपूर्ण बनो
इसके बारे में बात करोI सही तर्क और तथ्य से ये समझाने की कोशिश करो की समाज में समलैंगिकों का भी वही स्थान होना चाहिए जो कि किसी भी विषमलिंगी का होता हैI
सही और गलत क्या है?
क्या विषमलिंगिंयों के समलैंगिक दोस्त या रिश्तेदार नहीं होते? तो इन लोगों को 'सामान्य' लोगों कि तरह बर्ताव करने के लिए मजबूर क्यों होना पड़ता है? 'सामान्य' कि परिभाषा क्या है और ये परिभाषा किसने बनायीं है? ये सही है या गलत, इस बात का फैसला कौन करेगा?
ये लोग भी किसी भी और व्यक्ति की तरह 'सामान्य' ही हैं, जैसे कोई भी डॉक्टर, वकील, एक्टर, भाई, बहन इत्यादिI तो इन्हे बराबरी का अधिकार दिलाने के लिए अपने दोस्तों, रिश्तेदारों, और पहचान वालों को इस आंदोलन से जुड़ने की सलाह दोI
अनेकता को सलाम!
छोटे-छोटे कुछ पहले कदम ही लम्बी यात्रा की शुरुवात होती हैं पवन बेटाI अगर इस मुद्दे के बारे में कहीं भी कुछ भी गलत बात सुनो तो उसे सुनकर अनसुना मत करोI मुझे विश्वास है कि हम सब एक दिन ऐसा दिन ज़रूर देखेंगे जब सेक्स प्रवर्ति के आधार पर भेदभाव के लिए समाज में कोई जगह नहीं बचेगी, और इंसानियत को इन सब से ऊपर रख कर एक मजबूत समाज बनेगाI
बेटे मैं तो इस सन्देश का प्रतीक बनाकर एक सतरंगी दुपट्टा ले रही हूँ और तेरे अंकल के लिए एक सतरंगी पगड़ी, अगली बार जब तू किसी ऐसे परेड या प्रदर्शन में आएगा तो तेरे अंकल आंटी तुझे सतरंगी पहने हाथ में बैनर उठाये ज़रूर दिखेंगे!
क्या आप भी इस आंदोलन का हिस्सा बनने के बारे में सोच रहे हैं? हमें बताएं कि आपको ऐसा करने कि प्रेरणा कैसे मिली या आपको ऐसा करने से किस बात ने रोक लिया? अपनी राय यहाँ लिखें या फेसबुक पर इस चर्चा में हिस्सा लेंI