मिथक # 1- द्विलैंगिक अपनी लैंगिकता के बारे में कन्फ्यूज्ड रहते हैं।
एक आम धारणा ये है कि द्विलैंगिक लोग अक्सर अपनी पसंद के बारे में भ्रमित रहते हैं और फैसला नहीं कर पाते की उन्हें अपने लिंग वाले लोग पसंद हैं या विपरीत लिंग के। लेकिन असल में ऐसा नहीं है।
जिस प्रकार विषमलैंगिक या समलैंगिक लोग अपनी पसंद के बारे में भ्रमित नहीं होते, द्विलैंगिक लोग भी अपनी पसंद के बारे में स्पष्ट होते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि उन्हें एक से अधिक लिंग के लोगों के लिए आकर्षण होता है।
मिथक # 2 - द्विलैंगिक एक व्यक्ति के लिए वफादार नहीं हो सकते।
चूँकि द्विलैंगिक एक से अधिक लिंग के लोगों के प्रति आकर्षित होते हैं, तो एक आम धारणा है कि वो किसी एक पार्टनर के लिए वफादार नहीं होंगे। लेकिन असल में तो सम या विषमलैंगिक लोगों कि ही तरह अपने साथी के लिए वफादार हो सकते हैं। सच्चाई ये है कि कुछ लोग वफादार होते हैं और कुछ लोग नहीं, और इस बात का उनकी लैंगिकता से कोई वास्ता नहीं है।
साथ ही, समलैंगिक होने के मतलब ये भी नहीं कि एक ही समय पर महिला और पुरुष दोनों पार्टनर्स होना आवश्यक हो।
मिथक # 3: समलैंगिक असल में समलैंगिक या विषमलैंगिक ही होते हैं।
मिथक नंबर 1 कि ही तरह, कुछ लोग मानते हैं कि द्विलैंगिक असल में या तो विषमलैंगिक या समलैंगिक होते हैं लेकिन अपने रुझान के बारे में स्पष्ट नहीं हो पाते। या फिर वो अपना रुझान जानने कि प्रक्रिया में होते हैं, या उन्हें दोनों हाथों में लड्डू चाहिए होता है। लेकिन नहीं, यह सही नहीं है।
मिथक नंबर 4: द्विलैंगिक अत्यधिक सेक्स और अनेक रिश्तों में लिप्त रहते हैं।
एक बार फिर, क्यूंकि द्विलैंगिक लोग महिला और पुरुष दोनों कि और आकर्षण महसूस करते हैं, कुछ लोग ये मान लेते हैं कि उनके जीवन में सेक्स और नए नए रिश्तों कि बाढ़ आयी रहती है जोकि सही नहीं है। लैंगिकता से परे वो भी सामान्य भावनाओं और सेक्स अनुभवों का सामना करते हैं। कुछ लोग के जीवन में ये अनुभव दूसरों कि अपेक्षा ज़यादा हो सकते हैं और इस बात का भी किसी व्यक्ति कि लैंगिकता से कोई नाता नहीं है।
मिथक # 5: द्विलैंगिक सिर्फ सेक्स के पीछे भागते हैं।
बिलकुल गलत! किसी इंसान को किस चीज़ कि तलाश है, यह उसकी सेक्सुअलिटी पर निर्भर नहीं करता। बेशक ऐसे द्विलैंगिक होंगे गम्भीर रिश्तों कि बजाय एक रात के रिश्तों में यकीन रखते हैं। लेकिन यह बात तो किसी भी सेक्स प्राथमिकता के लोगों के लिए खरी उतरती है। है ना? लैंगिकता इस बात को बदल नहीं सकती कि बहुत से द्विलैंगिक अपने जीवन में गम्भीर रिश्तों कि तलाश में रहते हैं।
मिथक # 6: द्विलैंगिक लोगों को सेक्स संक्रमित बीमारी होने का खतरा ज़यादा रहता है।
नहीं। बीमारियां फैलने कि वजह असुरक्षित सेक्स होता है। अपने पार्टनर कि सेक्सुअलिटी को भूलकर सेक्स संक्रमित रोग से बचने के लिए कंडोम का प्रयोग करना ज़रूरी है।
मिथक # 7: सभी द्विलैंगिक सेक्स त्रिकोण पसंद करते हैं।
सिर्फ इसलिए कि कोई व्यक्ति एक से अधिक लिंग के लोगों कि तरफ आकर्षित है, ये ज़रूरी नहीं कि उसे अपने बिस्तर में एक समय पर एक से अधिक व्यक्ति कि चाहत हो। ये सच है कि कुछ लोग तीन लोगों के सेक्स को पसंद करते हों और करके देखने कि इच्छा रखते हों, लेकिन यह किसी कि ब्यक्तिगत पसंद का मामला है नाकि उनकी लैंगिकता का।
क्या आपने भी द्विलैंगिकता से जुडी बातें सुनी है जो की आपको नहीं पता सच है या मिथक? तो यहाँ लिखिए या फेसबुक पर हो रही चर्चा में हिस्सा लीजिये।