अलीशा 28 साल की उभरती हुई लेखिका है और दिल्ली में रहती है। इनकी कहानी हमारी 'पहली बार' श्रंखला का हिस्सा है।
मैंने बाथरूम से बाहर झाका, ये जानने के लिए की आखिर हो क्या रहा था। तभी मेरी माँ बाथरूम में आई और खून से सने मेरे कपडे मुझे दिखाए। उनके लिए ये चौकाने वाला था, क्यूंकि मेरी बहन को मासिक धर्म 15 साल की उम्र में हुआ था। और यहाँ मैं थी, 11 साल की और कक्षा 6 मैं पढने वाली लेकिन मुझे मासिक धर्म शुरू हो गया था।
बहुत ज़्यादा तकलीफ़देह
मेरी माँ ने मुझे हॉस्पिटल वाली जालीदार पट्टी का इस्तेमाल करना बताया। हमारे घर के इलाके की अधिकतर महिलाएं मासिक धर्म के दौरान यही इस्तेमाल करती थी। हमारा इलाका अस्पताल वाला इलाका था, और मेरी माँ की अधिकतर सहेलियां नर्स थी, और उनके हिसाब से ये जालीदार पट्टी का इस्तेमाल किसी भी तरह के संक्रमण को रोकने का सबसे अच्छा तरीका था।
लेकिन इसे इस्तेमाल करना बहुत तकलीफ़देह था। सिर्फ इसलिए नहीं क्यूंकि हमें कमर में एक रस्सी बांधनी पड़ती थी, जिस से कई बार कमर छिल भी जाती थी, लेकिन इसलिए भी क्यूंकि हमें इन पटियों को बार बार धोकर, सुखाकर फिर इस्तेमाल करना पड़ता था। कई बार हमारी स्कर्ट पर धब्बे लग जाते थे और लड़के इस बात का मज़ा लेते थे।
फिर भी, मुझे गर्व है की मैं अपने परिवार में बदलता हुआ वक़्त लायी, क्यूंकि मैंने सैनिटेरी पेड इस्तेमाल करने की ज़िद्द भी करी और इस्तेमाल करने की शुरुवात भी।
प्रतिबन्ध
जब मुझे पहली बार माहवारी हुई थी, मुझे बोला गया था की मैं अपने पिता जी के बिस्तर को हाथ ना लगाओ, और ना ही उनके कपड़े और उनके सोफा को। और मंदिर में भगवान् की मुर्तिओं को भी छूने से मना कर दिया गया। मुझे बोला गया की माहवारी के दिन मैं मंदिर नहीं जा सकती। ये सब इतना दहला देने वाला था।
मेरे ऊपर काफी सारे प्रतिबन्ध लगाये गए। मुझे आचार खाने से रोक दिया गया। और मुझे बोला गया की हर महीने की माहवारी ख़त्म होने के बाद मैं अपने सारे कपड़े, चादर, तकियों की खोली, सब कुछ धोने के लिए रख दूँ। ये सब बहुत तकलीफ़देह था।
मुझे ये भी बताया गया की कभी-कभी मुझे अपनी माँ और बहन से अलग सोना पड़ेगा, क्यूंकि जब भी मुझे बुरा सपना आता तो मैं उनसे सोते हुए चिपक जाती थी। तो अब चाहे बुरे सपने हो या नहीं, ये ऐसा था जैसे अपनी ज़िन्दगी को खुद ही संभालना। मुझे माहवारी के दौरान स्कूल में दोड़ने और कूदने से मना कर दिया गया और सिर्फ धीरे चलने को कहा गया। और इस बारे में किसी से भी बात करने के लिए मना कर दिया गया।
बच्च्लन लड़की
लेकिन सबसे ज़्यादा बुरा था मेरी माँ और बहन का रवैया। मेरी माँ जल्दी माहवारी होने की वजह से मुझे पापी समझती थी। मेरी बहन भी यही सोचती थी, लेकिन वो इसमें अपनी तरफ से और भी ज़हर घोल देती थी। उसने कहा की हमारे पिताजी मेरे माहवारी जल्दी होने की वजह से वो बहुत दुखी हो गए थे।
बजाये इसके की वो मेरी माहवारी को लेकर मेरी सहायता करते, मेरी माँ और बहन ने ये बात अपनी इतनी सारी महिला सहेलियों को बताई जैसे की मैं एक बच्च्लन लड़की हूँ क्यूंकि मैं बहुत जल्दी बड़ी हो गयी हूँ। जब मेरी बहन को माहवारी शुरू हुई थी तो सब बड़े खुश हुए थे और उसको बहुत अच्छे फल भी खाने को दिए गए। लेकिन मेरे साथ सब उल्टा हुआ। मुझे कम खाना देने लगे क्यूंकि उन्हें लगा की शायद मेरी ज़्यादा अच्छे खाना खाने की वजह से मैं 'जल्दी' बड़ी हो गयी।
अकेली नहीं
मुझी मुक्ति तभी मिली इस तकलीफ से जब मेरी एक और दोस्त को स्कूल में माहवारी शुरू हुई और हम लड़कियां उसके चारो तरफ इखट्टे हो गए उसका ख्याल रखने के लिए। कुछ टीचर भी हमारे साथ थे। तब मुझे पता चला की इस दुनिया में सिर्फ मैं ही अकेली 'पापी' नहीं हूँ।
मेरी एक स्कूल की दोस्त मुझसे एक साल बड़ी थी और उसको माहवारी भी पहले शुरू हो गयी थी। उसने हमें बताया की माहवारी होना बिलकुल प्राकर्तिक चीज़ है और बड़े होने के साथ हर लड़की को होता है। उसने कहाँ की इस समय हमें एक दुसरे की देखबाल करनी चाहिए और लड़कों से ये बात छुपानी चाहिए। क्यूंकि अधिकतर लड़कों को सकी कोई ख़ास समझ नहीं थी तो उनसे छुपाना ज़्यादा मुश्किल नहीं था। उनको इसकी समझ शायद तब आई जब हम सब नवी कक्षा मैं पढ़ते थे।
अलीशा (असल नाम नहीं है) का नाम गोपनीयता बनाये रखने के नज़रिए से बदल दिया गया है।
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