शिखा (परिवर्तित नाम), जो 24 वर्षीय हैं और दिल्ली में लाइब्रेरी सहायक के रूप में काम करती हैं, दिवाली की छुट्टियों में अपने घर गयी हुई थीI दिल्ली में पढ़ते और काम करते हुए उसे चार साल हो चुके हैं और यहाँ रहने से उसकी सोच में बहुत बदलाव आया हैI उसकी माँ उसे हमेशा 'उन दिनों' में मंदिर जाने से मना करती थी लेकिन जब इस बार भी उन्होंने मना किया तो शिखा ने उनकी बात मानने से साफ़-साफ़ मना कर दियाI उसने अपनी माँ को बहुत स्पष्ट रूप से बता दिया कि पीरियड्स का मंदिरों या देवताओं से कोई संबंध नहीं है। उसने उन्हें यह भी कहा कि उसे हमेशा से पीरियड्स के बारे में गलत जानकारी दी गयी थीI
आज शिखा जैसी कई महिलाएं हैं जो मासिक धर्म से जुड़ी रूढ़िवादी सोच को चुनौती दे रही हैंI इस सकरात्मक बदलाव का कारण है शिक्षा और यौन स्वास्थ्य के बारे में बढ़ती जागरूकताI अब महिलाएं लगातार उन टकसाली विचारों को अस्वीकार कर देती हैं जो उन्हें तर्कसंगत नहीं लगतेI
पिछले हफ्ते, हम यह जानने के लिए दिल्ली की सड़कों पर निकल पड़े कि युवा महिलाओं कैसा लगता है जब पीरियड्स के दिनों में उनके साथ भेदभाव किया जता हैI अचार, मंदिरों, दूध के उत्पाद ... उनके द्वारा की गयी कुछ प्रतिक्रियाओं को सुनिये और अपने विचार भी व्यक्त कीजियेI
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