आंटी जी कहती हैं ... 'ओये होये पुत्तर' यह आधुनिक बनाम पारंपरिक ऐसा ही है जैसे दो नौका में सवार होना - दिक्कत यह है कि यह दोनों नौकाएं ही हिलोरें खाती हैं!
हिम्मत नहीं हारनी
पुत्तर मुझे तो यह समझ नहीं आता कि इस बुलेट ट्रैन के ज़माने में क्यों कुछ लोग आज भी बैल गाड़ी पर सवार हैं? बेटा क्या तू जानती है कि हम इन परंपराओं और सांस्कृतिक रूढ़िताओं पर क्यों भरोसा करते हैं? क्योंकि ऐसा करने से हमें लगता है कि हम अपनी संस्कृति की जड़ो से जुड़े हुए हैंI विडम्बना यह है कि हमें यह एहसास नहीं हो पाता कि कब यह जड़े हमारे गले में बेड़ियों की तरह पड़ गयी हैं और कब इनसे हमारा दम घुटना शुरू हो गया हैI
सूची बनाओ
चल एक काम करते हैंI इन सभी दमघोंटू परम्पराओं की एक सूची बनाते हैं और देखते हैं कि क्या यह आज के समाज में भी उपयोगी हैं? वैसे तेरा अचार वाला सवाल तो मेरा भी फेवरेट है - पता है क्यों? लोगों को लगता है कि पीरियड्स के दौरान होने वाले रक्त्स्राव से अचार बुरा मान जाएगा और खुद ही अपने आपको इतना खराब कर लेगा कि हम उसे ना खा पाएंI मुझे तो यह कोरी बकवास लगती हैI लेकिन तू अपनी आंटी जी की बात पर अंधविश्वास मत करना और खुद जांच करनाI खुदबखुद दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगाI करेगी ना? उसके बाद अपनी आंटी जी को भी बतानाI
तुलसी के पौधे के बारे में यही मान्यता हैI अगर किसी लड़की ने पीरियड के दौरान उसे छू लिया तो वो (तुलसी) सूख कर मर जाएगी! तो अगर घर में ऐसी कोई 'बड़ी विपदा' आ जाती है तो ज़ाहिर है इसके लिए बेचारी लड़की ही ज़िम्मेदार है और उसे ही दोष देना चाहिएI हैं ना?
क्या किसी ने पीरियड के दौरान सेक्स के बारे में सोचा है? अगर एक पुरुष इसकी मांग करे तो चलता है, लेकिन अगर कोई महिला पीरियड के दौरान सेक्स कर ले या ऐसी कोई मांग रख दे तो बस - जैसे भूचाल आ गया होI आम धारणा यह है कि यदि एक लड़की ने ऐसे समय में सेक्स किया तो उसका साथी पागल हो जाएगा! मुझे नहीं लगता कि मैंने इससे बड़ी पागलतपंती कभी सुनी हैI
व्रत और उपवास
करवा चौथ आ चुका है और इससे मुझे एक और बात याद आ गयीI हम हर बात के लिए व्रत रखते हैं - घर, पैसा, बच्चे और एक अच्छा जीवनसाथीI अब ज़रा सोचो कि व्रत कौन रखता है? वैसे जवाब तो आसान ही है क्यूंकि शायद ही किसी पुरुष ने अच्छी पत्नी के लिए उपवास रखा होगा - और अगर कभी रख लिया तो बेचारे का पूरे समाज में मज़ाक उड़ जाएगाI माताएं भी अपने बेटो के लिए ही 'होइ अष्टमी' का व्रत रखती हैंI बेटियों के लिए कोई व्रत क्यों नहीं है, यह मुझे आज तक नहीं पता चला? पुत्तर मैं व्रत के खिलाफ नहीं हूँI अगर तू मुझे देखेगी तो तुझे समझ आ जायेगा कि मुझे भूखा रहना कितना पसंद हैI लेकिन मेरा यह मानना है कि अगर कोई व्रत रखे, तो अपनी ख़ुशी के लिए रखेI बोझ समझ कर नहींI
हंसना ज़रूरी है
पुत्तर असल बात यह है कि सदियों से चले इन रीती-रिवाज़ों को तोड़ना आसान नहीं है, और शायद ज़रुरत भी नहीं हैI हमारी कई सांस्कृतिक परम्पराएं ऐसी भी हैं जो हमें असीम ख़ुशी ही देती हैं - क्या तुझे डांडिया में नाचना और दीपावली में परिवार के साथ खुशियां मनाना पसंद नहीं है? हाँ कुछ रस्मे ज़रूर पेचीदगी भरी हैं जिनसे हमें धीरे-धीरे निपटने की आवश्यकता है। तू खुद निर्णय ले कि कौनसे रीति-रिवाज़ों के खिलाफ लड़ना चाहिए और कैसेI मुझे पूरा विश्वास है कि तू यह कर सकेगीI
तो आप की लड़ाई कौन से अंधविश्वासों से है? अपने सवाल और विचार हमें लिख भेजिए आप हमसे फेसबुक पर और हमारे चर्चा मंच के ज़रिये भी संपर्क कर सकते हैंI