अहमक(28) दिल्ली में रहने वाली एक डेवलपमेंट प्रोफेशनल है।
मैं जब इस लड़की से मिली तो मैं ग्रेजुएशन के फाइनल साल में थी। हम दोनों जल्दी ही एक दुसरे के करीब आ गए। लगातार साथ-साथ रहना और पता नहीं क्या वो खिंचाव था जो हमें हाथ पकड़ने से चुम्बन तक के चरण में अचानक ही ले आया, और शायद हम दोनों को एहसास भी नहीं हुआ। अजीब बात ये थी कि मेरा रिश्ता अपने मंगेतर के साथ था और मेरे लड़की होने कि बजाय मुझे किसी और लड़की को चूमना अच्छा लग रहा था।
हम दोनों को ही ये शारीरिक आकर्षण सहज सा लगा जबकि उस दिन तक हमें ज़रा भी आभास नहीं था कि ऐसा भी हो सकता है। हम दोनों के ही पहले बॉय फ्रेंड भी रह चुके थे।
भ्रम के बाद कि पहली सुबह
वो एहसास मज़ेदार, निराशाजनक, भ्रमित करने वाला लेकिन फिर भी सुखद था। हम दोनों को एक दुसरे को छूने कि चाह थी, क्यूँ थी ये समझ नहीं आ रहा था। हम दोनों ने महिला समलैंगिक फ़िल्म देखी लेकिन वो वास्तविक अनुभव से परे थी। हम दोनों का एहसास नाज़ुक, कोमल और सौम्य था।
बस अगली सुबह कुछ अजीब सी थी। रातो - रात हम बदल चुके थे। अब हम वो नहीं थे जो हम अब तक हुआ करते थे। सामान्य सेक्स का आनंद लेने वालों से बदल कर हम लड़की होकर लड़की के साथ शारीरिक सुख का लुत्फ़ उठाने वाली लड़कियां बन चुके थे। कुछ दिनों तक हमने इस नए सच को झुठलाकर जीने कि कोशिश कि लेकिन एक दुसरे के लिए चाह बढ़ती ही रही।
हानिकारक प्रतिक्रियाएं
कभी-कभी प्यार के बाद मेरे शरीर पर उस प्यार के निशाँ भी रह जाते थे। क्यूंकि मेरा मंगेतर विदेश में था तो मेरे आस-पास के लोगों ने ये मानना शुरू कर दिया कि मेरा किसी और लड़के के साथ शारीरिक सम्बन्ध बन चूका है। जब उन्हें पता चला कि असल में सम्बन्ध किसी लड़की से है तो सब अचानक हक्केबक्के रह गए और उनकी प्रतिक्रिये बहुत दुखी कर देने वाली थी। मैं चाहती थी कि वो मेरी बात समझ पाएं लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
मेरी बहन ने मुझसे कहा," तुमने जिसे चुना है वो सही इंसान हो सकता है लेकिन सही लिंग नहीं है।" करीबी लोग अचानक अजनबी जैसे बन गए। उनके लिए मेरी पुरुषों में दिलचस्पी सही थी लेकिन महिलाओं के लिए मेरा आकर्षण गुनाह था।
बाइसेक्सुअल सच
मैं दोहरी ज़िन्दगी जी रही थी- मैं एक तरफ अपने दोस्तों के साथ सामान्य ज़िन्दगी जीती थी और दूसरी तरफ अपने जीवन में इस नए सच को लेकर आयी लड़की के साथ। और ये कहने कि शायद ज़रूरत ही नहीं कि मेरे मंगेतर और मेरे बीच का रिश्ता दिनबदिन बिगड़ रहा था। अपने आपको पहचानने के लिए और इस नए सच से जुड़े सवालो के जवाब पाने के लिए मैंने गूगल का रुख किया। और मैंने पाया कि मेरे जैसे बहुत से लोग हैं, मैं अनोखी नहीं हूँ। मैं कई द्विलैंगिक लोगों से मिली, समलैंगिकों के समर्थन में हुई परेड के दौरान।
मैं अपनी लैंगिकता से बखूबी समझौता कर चुकी हूँ। और मेरे ख्याल से मेरा किसी से भी आकर्षित होना सामान्य ही है। मेरे लिए लिंगभेद कोई रोड़ा नहीं है। मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि लोग मेरे बारे में क्या कहते या सोचते हैं। मैं आज़ाद महसूस करती हूँ और खुद को पहले से ज़यादा बेहतर समझती हूँ। मैं इस समूह का हिस्सा होने में ख़ुशी महसूस होती है।
तस्वीर में जो लड़की है वो अहमक नहीं है।
आपकी इस बारे में क्या राय है? क्या अहमक का लड़कों और लड़कियों के लिए आकर्षण सामान्य है? हमसे अपने यहाँ लिखिए या फिर फेसबुक पर हो रही चर्चा में हिस्सा लीजिये।