यह तो स्पष्ट है की सेक्स आपके लिए अच्छा है। रिसर्च ये सिद्ध कर चुकी है कि अक्सर सेक्स करने वाले लोग बेहतर महसूस करते हैं
लेकिन आखिर कितना सेक्स पर्याप्त है? आम सोच की माने तो सेक्स जितना अधिक उतना बेहतर, है ना? लेकिन शायद ये सही नहीं है। और इसी बारे में और जानकारी पाने के लिए डॉ एमी मूस के नेतृत्व में कनाडा के एक वैज्ञानिक दल ने एक अध्यन किया। उनका कहना था कि बहुत ज्यादा सेक्स कर सकना मुश्किल तो है ही, साथ ही ये खुद पर दबाव डालने जैसी बात है।
इसलिए इस दल ने लोगों के सेक्स करने के बीच के अंतराल के बारे में और उनके खुश होने या न होने के बारे में एक अध्यन किया। डॉ मूस और उनके दल ने सेक्स और उल्लास के इस तीन अलग-अलग अध्यन के लिए लगभग 30000 लोगों को शामिल किया।
कितना काफी?
इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि यदि आप किसी सम्बन्ध में हैं तो जितना ज्यादा सेक्स आप करेंगे उतना खुश रहेंगे और नतीजों ने इसकी पुष्टि भी की। लेकिन कितना ज्यादा सेक्स किया जाये, इसकी सीमा इसके खुशियों पर प्रभाव को निर्धारित करने में प्रबल योगदान देती है। हफ्ते में एक बार सेक्स सही तरकीब है! संख्या इससे अधिक बढ़ते ही सेक्स और खुशियों के बीच की कोई कड़ी नहीं रह पाती, रिसर्च से ज्ञात हुआ।
उन लोगों का क्या जो प्रेम सम्बन्ध में नहीं हैं? आश्चर्य की बात है कि जो लोग अकेले हैं उनके सेक्स की नियमितता और खुशियों के स्तर का आपस में कुछ सम्बन्ध नहीं है।
अंतरंगता
तो आखिर रिश्ते में रहते ही नियमित सेक्स का खुशियों से क्या सम्बन्ध है? एक कारण तो शायद ये है सप्ताह में एक बार सेक्स का रिश्ते में संतुष्टि से गहरा सम्बन्ध है। और यदि सम्बन्ध स्वस्थ हो तो जीवन खुशहाल बन सकता है, यह बात स्वाभाविक है। नियमित सेक्स दोनों साथियों के बीच अंतरंगता को बनाये रखता है।
और क्यूंकि अंतरंगता अचानक बिस्तर पर हुई हलचल से बढती नहीं, और अगली सुबह अचानक ख़त्म भी नहीं हो जाती, हफ्ते में एक बार से अधिक सेक्स करने का खुशनुमा जीवन पर शायद कोई खास असर नहीं डालता।
स्रोत: सेक्सुअल फ्रीक्वेंसी प्रेदिक्ट्स ग्रेटर वेल बीइंग, बट मोर इस नोट ऑलवेज बेटर, 2015 एमी मूस, अल्रीच शीमाक, एमिली ए इम्पेट