23 वर्ष की रेशमा दिल्ली में रहती हैं डेवलॅपमेंट क्षेत्र में कार्यरत हैं।
यदि मैं उस के साथ अपने रिश्ते को चित्र के रूप में दर्शाऊँ तो शायद कुछ टेढ़ी मेड़ी लकीरें ही बन पाएंगी। मुझे अच्छे दिनों से डर लगता था क्योंकि उनके तुरंत बाद 'बहुत बुरे' दिन आ जाते थे। बुरे दौर का अर्थ होता था उसका इस बात पर नाराज़ होना कि कैसे मुझे उसके प्यार की कद्र नहीं थी, कैसे मैं उसकी परेशानियो को समझ पाने मेँ असमर्थ थी, कैसे मैं बार-बार बेवजह उसे छोड़कर चले जाने की बातेँ करती थीI अपराधबोध कई तरह के थे ओर पीड़ा असहनीयi
मैंने कई बार उसके उठने से पहले घर से चुपचाप भाग निकलने की कोशिश की, लेकिन हर बार विफ़ल रही। और उसके बाद हर बार अपनी इस गुस्ताख़ कोशिश की कीमत अदा की- मानिसक, शारीरिक और यौनिक शोषण के रूप में।
शारीरिक शोषण
एक ऐसी ही घटना के दौरान उसने मुझ पर एक कॉफी का बर्तन दे मारा। वो बर्तन टुकड़े टुकड़े हो गया और उन टुकड़ों को समेटने का काम भी मैंने किया। एक बार नहीं, कई बार पोछा लगाया, ताकि कॉफ़ी की गंध हट सके। और इस दौरान वो चैन की नींद सो रहा था, जैसे कुछ हुआ ही न हो।
अगली सुबह उसके बर्ताव से ऐसा लग ही नहीं रहा था कि उसे पिछली रात की घटना के बारे में कुछ भी याद है, और मैं उसके फिर गुस्सा हो जाने के डर से कुछ याद दिलाना भी नहीं चाहती थी। लेकिन बीती रात के सबूत मौजूद थे- उसकी भावहीनता और मेरे शरीर पर चोट के निशान।
लगातार ख़राब मूड
जल्द ही 'बुरा समय' हर छोटी बड़ी बात का परिणाम बनने लगा। मेरी हल्की सी हंसी से उसकी नींद टूटना, मेरा मुस्कुराना, मेरा कहा कोई शब्द, किसी सहकर्मी से बात करना, या फिर उसकी उपस्थिति में फोन का प्रयोग करना।
मैं शायद समझ ही नहीं पा रही थी कि दरअसल मैं एक हिंसात्मक रिश्ते में थी, जब तक कि पानी सर से ऊपर नहीं निकला। शायद मुझे उस दिन एहसास हुआ जब मेरा भारी भरकम बैग उठाकर उसने मेरी तरफ फेंक दिया जो शायद इंच भर से मुझे छूने से रह गया। न जाने क्यों अब तक मैं समझ ही नहीं पा रही थी कि जिस बर्ताव को मैं उसके काम और दुसरे दबावों का असर मान कर अनदेखा कर रही थी, वो दरअसल प्रताड़ना था। शायद मैं सोचती थी कि वो तनाव में है और ऐसे में अगर वो मुझ पर गुस्सा नहीं निकालेगा तो किस पर निकालेगा।
यह लेख अंतरंग साथी के द्वारा की गयी बदसलूकी के खिलाफ हमारे आंदोलन का हिस्सा है #BearNoMore