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एलबीटी महिलाओं के लिए रिश्तों से जुड़े कुछ सुझाव

Submitted by Sarah on बुध, 03/13/2019 - 02:42 बजे
क्या आप अपने से ज़्यादा अपनी गर्लफ्रेंड की ज़रूरतों का ख्याल रखते हैं, और वो भी सिर्फ़ इसलिए क्योंकि आप यह सोचते हैं कि आपको कोई दूसरी नहीं मिल पाएगी? वास्तव में अपनी इच्छाओं से समझौता करने की आदत आपके रिश्तों और आपके ऊपर गहरा प्रभाव डाल सकती है। इस लेख में हम इससे बचने के तरीकों के बारे में बता रहे हैं।

एलबीटी महिलाएं अधिक त्याग करती हैं

एलबीटी महिलाएं (लेस्बियन, द्विलैंगिक और ट्रांस) यौन रूप से अल्पसंख्यक होने के कारण सामान्य स्त्री पुरुष के रिश्तों की अपेक्षा दोहरी चुनौतियों का सामना करती हैं। कई महिलाएं इससे बाहर निकलने की कोशिश भी नहीं करती हैं और असंतुष्ट होने के बावज़ूद भी सिर्फ़ इसलिए चुप रहती हैं ताकि पार्टनर के साथ उनका रिश्ता खराब ना हो। एलबीटी महिलाओं का मानना है कि समाज में अपने लिए दूसरा साथी ढूंढना काफी कठिन काम है।

रिश्तों को बनाए रखने के लिए वे जो तरीके अपनाती हैं, शोधकर्ताओं ने उसे “आत्म मौन ( अर्थात ऐसे मामलों में ख़ुद ही चुप्पी साध लेना)  नाम दिया है। असल में इसका मतलब यह है कि अपने पार्टनर के लिए अपनी इच्छाओं से समझौता करना और लड़ाई झगड़े से बचने के लिए अपनी भावनाओं को ज़ाहिर ना करना। महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा अधिक त्याग करती हैं। शोध से पता चला है कि यह उनके मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य और रिश्तों पर गहरा प्रभाव डाल सकता है।

अपनी इच्छाओं से समझौता करने का अर्थ

रिश्तों में ख़ुद की इच्छाओं से समझौता करने का अर्थ क्या है? वास्तव में इसका मतलब यह है कि जो आप करना चाहते हैं, अपने पार्टनर के लिए उन चीजों का त्याग कर देना। यह सोचकर अपने दोस्तों के साथ बाहर न जाना कि आपका पार्टनर घर पर अकेला रह जाएगा। आपको लगता है कि ऐसा कुछ करने पर लोग आपको स्वार्थी कहेंगे।

या, इसका अर्थ यह भी हो सकता है कि अगर आपका पार्टनर कुछ ऐसा भी कर रहा है जिससे आपका मूड खराब होता है तो भी आप चुप रहते हैं। जैसे कि जब आप अपने दोस्तों के साथ बाहर जाते हैं और आपका पार्टनर आपको अनदेखा करता है, तब भी आप चुप रहते हैं। आप उसे कुछ भी कहने से सिर्फ़ इसलिए डरते हैं कि आप दोनों के बीच लड़ाई ना हो जाए।

चुप्पी का अध्ययन

इससे पहले इस विषय पर ज़्यादा अध्ययन नहीं किया गया था। लेकिन हाल ही में शोधकर्ताओं ने शोध के जरिए यह पता लगाया कि अपनी इच्छाओं से समझौता एलबीटी महिलाएं और उनके रोमांटिक रिश्तों को किस तरह प्रभावित करता है।

अमेरिकी शोधकर्ताओं के एक समूह ने इस धारणा को बदलने, एलबीटी महिलाओं की मदद करने और पार्टनर के साथ उनके रिश्तों को स्वस्थ और संतोषजनक बनाने का विचार किया। सबसे पहले इस समूह ने ऐसी 540 महिलाओं को खोज निकाला जो अपने साथी के साथ एक प्रतिबद्ध रिश्ते में थींI

तब उन्होंने एलबीटी महिलाओं से उनके अनुभवों के बारे में पूछा,जैसे कि क्या उन्होंने कभी यौन उत्पीड़न महसूस किया है या कभी उनके साथ किसी डॉक्टर, थेरेपिस्ट और स्कूल के प्रिंसिपल ने कभी भी गलत तरीके से व्यवहार किया गया है।

शोधकर्ताओं ने जो पाया वह चौंकाने वाला नहीं था। ज्यादातर एलबीटी महिलाओं ने अपनी भावनाओं और ज़रूरतों के बारे में एकदम अंत में बताया क्योंकि उन्हें डर था कि ऐसा करने से कहीं उनके पार्टनर के साथ उनकी अनबन न हो जाए।

आप क्या कर सकते हैं

यदि आप भी ऐसी ही स्थिति से गुज़र रहे हैं तो शोधकर्ता इससे निपटने के लिए एक व्यावहारिक सलाह देते हैं जिसे आप कर सकते हैं। रिश्तों की शुरूआत करने वालों के लिए यह उन कुछ मान्यताओं का पता लगाने और सवालों का जवाब देने में मदद करेगा जिसमें आप खुद को बंधा हुआ महसूस करते हैं।

मुझे कोई दूसरा पार्टनर नहीं मिलेगा या एलबीटी रिलेशन में समझौता चलता है। इसे हमेशा सच ना मानें और एक एलबीटी महिला के रूप में पार्टनर के साथ असंतुष्ट होने पर इस समस्या की अनदेखी करने या उसे वैसे ही स्वीकार कर लेने की आवश्यकता नहीं है। सभी तरह के रिश्तों में संतुष्टि और इच्छा पूर्ति ज़रुरी है और इसका आपके लैंगिक झुकाव या लिंग से कोई लेना देना नहीं है।

आपको अपने पार्टनर के साथ अपनी ज़रूरतों और इच्छाओं के बीच तालमेल बिठाने और उन्हें ज़ाहिर करना बहुत जरूरी है। शोधकर्ताओं का सुझाव है कि मुखरता को समझने का प्रशिक्षण लेना या इसका अभ्यास करने से इसमें मदद कर सकती है। अंत में जब रिश्तों में ऐसा कुछ हो तो लड़ाई झगड़े से निपटने के लिए सही रणनीति विकसित करना भी काफी जरूरी है।

संदर्भ : सेक्सुअल माइनॉरिटी विमेंस रिलेशनशिप क्वालिटी : एग्जामिनिंग दि रूल्स ऑफ़ मल्टीप्ल ऑपरेशन्स एंड साइलेंसिंग दि सेल्फ. सायकोलॉजी ऑफ़ सेक्सुअल ओरिएंटेशन एंड जेंडर डाइवर्सिटी. मार्च 2016 में प्रकाशित

*गोपनीयता बनाये रखने के लिए नाम बदल दिए गये हैं और तस्वीर में मॉडल का इस्तेमाल किया गया है।

यह लेख पहली बार 2018-11-16 को प्रकाशित हुआ था।

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