- समलैंगिक रिश्तों में भी एक 'पुरुष' और एक 'महिला' होती है
कई लोगों को लगता है कि समान लिंग होने के बावजूद इसमें भी दोनों लोगों को विपरीत पात्र निभाने चाहिए। यूँ तो यह मानसिकता काफ़ी प्रचलित है, लेकिन इसकी विश्वसनीयता पर संदेह है। रोबर्ट-जे ग्रीन नामक एक शोधकर्ता ने 2008 में इसके ऊपर अपना शोध इस बात के साथ संपन्न किया कि समान लिंग वाले रिश्ते बाकि रिश्तों की तुलना में पक्षपातहीन होते हैं।
हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि लिंग के आधार पर बनी ज़िम्मेदारियां अस्थिर होती हैं और इन्हें समपूर्ण रूप से अचूक नहीं कहा जा सकता। हो सकता है कि विश्व के एक हिस्से में जो 'मर्दाना' हो वो किसी और जगह और समय 'मर्दाना' ना हो।
इसके अलावा यह मिथक समान लिंग वाले रिश्तों में भी विषमलिंगी रिश्तों के कुछ अंश को जोड़ने की आशाहीन लालसा को भी दर्शाता है। - इनसे इनकी संतानो पर बुरा असर पड़ सकता है।
शायद यह इसी सोच का परिणाम है कि समलैंगिक युगलों को आज भी बच्चे गोद लेने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। कुछ लोगों को तो यह भी लगता है कि इसके द्वारा गोद लिए गए बच्चे भी समलैंगिक बन जाएंगे। यह एक बे सर पैर की बात है। उलटे, रिसर्च से तो यह पता चला है कि समलैंगिक युगलों के बच्चे बेहद खुशमिजाज़ और संतुष्ट व्यक्तित्व वाले होते हैं।
दूसरी ओर यह ज़रूर सामने आया है कि समलैंगिक युगलों की संतानों को समाज में कुछ संघर्ष का सामना करना पड़ता है। लेकिन इसका यह अर्थ तो नहीं है कि बाकि जोड़ो के बच्चों को किसी प्रकार का संघर्ष नहीं करना पड़ता। इसके अलावा हाल ही में की गयी एक रिसर्च से यह भी पता चला है कि समलैंगिक युगलों की संतानों को उनके माता-पिता की लैंगिकता की वजह से किसी भी प्रकार का और कोई भी जोखिम नहीं पहुँचता।
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- समलैंगिक समुदाय में स्वछन्द रिश्ते आम हैं
यह माना जाता है कि समलैंगिक रिश्तों में कोई कटिबद्धता नहीं होती। लेकिन अभी तक ऐसा कोई शोध सामने नही आया है जो इस बात को प्रमाणित करे। - समलैंगिक रिश्ते ज़्यादा लंबे नहीं चलते
समलैंगिक पुरुषों को स्वभाव से स्वछन्द माना जाता है, जो बार बार अपने साथी बदलते रहते हैं। लेकिन ऐसे भी कई जोड़े हैं जो लंबे समय तक साथ रहते हैं।
देखा जाए तो समलैंगिकता में ऐसा कुछ भी नहीं है जो लोगों को एक दूसरे के साथ कटिबद्ध रहने में हतोत्साहित करता हो। और वैसे भी आजकल जिस प्रकार समलैंगिक समुदाय एकजुट होकर अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रहा ही उससे तो यही लगता है कि इस मिथक का अस्तित्व जल्द ही ख़त्म होने वाला है। - समलैंगिक रिश्तों का आधार सिर्फ़ सेक्स होता है
शायद यह समलैंगिक रिश्तों से जुड़ा सबसे आम मिथक है। यहाँ यह समझना महत्त्वपूर्ण है कि शारीरिक रूप से आप सिर्फ़ एक हद तक ही किसी के करीब आ सकते हैं। विषमलिंगी लोगों की तरह समलैंगिक व्यक्ति भी अपने रिश्ते में भावात्मक सहारा चाहता है।
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लेखक के बारे में: मुंबई के हरीश पेडाप्रोलू एक लेखक और अकादमिक है। वह पिछले 6 वर्षों से इस क्षेत्र में कार्यरत हैं। वह शोध करने के साथ साथ, विगत 5 वर्षों से विश्वविद्यालय स्तर पर दर्शनशास्त्र भी पढ़ा रहे हैं। उनसे लिंक्डइन, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर संपर्क किया जा सकता है।