ऋचा (परिवर्तित नाम) द्वितीय वर्ष की बी.ए. की छात्रा हैं और बैंगलोर में रहती हैं
लज्जित
मैं हर रोज़ स्कूल के बाद अपने गणित के ट्यूशन के लिए जाया करती थी और शाम के चार बजे तक लौटती थीI मेरे टीचर के घर के रास्ते में एक पान की दूकान आती थी जहाँ हमेशा लड़कों की भीड़-भाड़ रहती थीI
उत्पीड़न की शुरुआत एक बहुत ही घिनोनी टिपण्णी के साथ हुई थीI एक दिन जब मैं वापसी के रास्ते में थी तो वहां खड़े लड़को में से एक मेरे पास आया और मेरी छाती की तरफ नज़रें गड़ाते हुए उसने कहा, "यह नींबू कैसे दिएI" जब वो दूकान पर वापस पहुंचा तो सब लोग ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगेI
मैंने अपना बस्ता ज़ोर से अपने सीने में दबोचा और जल्दी घर की तरफ भाग पड़ीI ना ही उसने मुझे छुआ था और ना ही शारीरिक रूप से कोई चोट पहुंचाई थी लेकिन फ़िर भी मैं बहुत घबरा गयी थीI जीवन में पहली बार मैं अपने शरीर कि वजह से शर्मिंदा हुई थी और यह बात मुझे बहुत अजीब लग रही थीI
आहत और परेशान
मैं अगले दिन ट्यूशन नहीं आना चाहती थी लेकिन मेरी माँ मुझे कभी छुट्टी नहीं करने देती थीI उसने मुझे ज़बरदस्ती भेज दिया और जिसका मुझे डर था वही हुआI वो बद्तमीज़ लड़का अपनी टोली की साथ वही मौजूद था और वे शायद मेरा हेी इंतज़ार कर रहे थाI
मैं पान की दूकान को पार करने के लिए जल्दी-जल्दी कदम बड़ा रही थी कि मुझे कमर पर किसी नुकीली चीज़ चुभने का एहसास हुआ, उस लड़के ने शायद मुझे पत्थर मारा थाI फ़िर उसने एक और पत्थर मारा जो मेरी गर्दन पर आकर लगा, दर्द के साथ साथ मुझे उसके दोस्तोंं के हंसने का भी एहसास हुआI मैं इतना डर गयी थी कि अपने टीचर के घर तक का रास्ता मैंने बदहवासी में भागते हुए पूरा किया और वहां जाते ही ज़ोर-ज़ोर से रोना शुरू कर दियाI मैं चुप होने का नाम ही नहीं ले रही थी और यह देखते हुए मेरे टीचर ने मेरे माता-पिता को फ़ोन कर के मुझे ले जाने को कह दियाI
सफ़ेद झूठ
उन्होंने मुझसे पुछा कि क्या हुआ लेकिन मुझमें उन्हें कुछ भी बताने की हिम्मत नहीं थीI आखिर मैं क्या बताती उन्हें? जो उस लड़के ने मुझे कहा और जिस घिनौनेपन से वो मुझे देख रहा था, उसके बारे में एक शब्द भी कह पाना मेरे लिए बेहद शर्मिंदगी भरा था एहसास थाI मैंने उनसे झूठ कह दिया कि मेरे पेट में दर्द होने की वजह से मैं रो रही थीI मुझे नहीं पता कि उन्होंने मेरा विश्वास किया या नहीं लेकिन उन्होंने उसके बाद मुझसे कोई सवाल नहीं कियाI
अगले दिन मैंने उन्हें कह दिया कि मैं अबसे ट्यूशन नहीं जाउंगीI मेरे माता-पिता को गुस्सा तो बहुत आया लेकिन मेरे बहुत रोने-गिड़गिड़ाने के बाद उन्होंने इस शर्त पर मेरी बात मानी कि मैं छमाही परीक्षा में अच्छे अंक लेकर दिखाउंगीI
छोटी बात
मैं उसके बाद ट्यूशन नहीं गयी और ना ही फ़िर कभी वो लड़का मेरे सामने आयाI लेकिन मुझे अच्छी तरह से याद है की उस बात की वजह से मैं कई दिन डर के साये में रही थीI मुझे हमेशा यह लगता रहता था की वो मेरा पीछा कर रहा हैI
मैंने कभी अपने दोस्तों तक को इस बारे में नहीं बताया और अपने आप को यह बोल कर समझा लिया कि यह कोई इतनी बड़ी बात नहीं थीI आखिर दो पत्थर और एक भद्दे मज़ाक से किसी का क्या बिगड़ सकता है?
गायब होना ही एक समाधान
लेकिन अपने उस अनुभव और अपने दोस्तों द्वारा बताई गयी आपबीतियों के बाद मुझे समझ आ गया था कि उस लड़के जैसे और भी कमीने थेI
उस जैसे कई लोग थे जो आपको छूना चाहते थे, आपको बुरी नज़र से देखना चाहते थे, आपका पीछा करना चाहते थे, आपका मज़ाक उड़ाना चाहते थे और आपके साथ बदतमीज़ी करना चाहते थेI
तब मुझे समझ नहीं आता था कि इससे कैसे निपटा जा सकता है और अगर ऐसा कुछ मेरे साथ होता था तो मेरी बस एक ही इच्छा होती थी, कि मैं किसी तरह गायब हो जाऊंI
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