Indian he-men stuck on the past
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यौन विषय पर अतीत में अटका हुआ भारतीय पुरुष

संभोग से लेकर घरेलु कामकाजों में, हर चीज में भारतीय पुरुष अपने आप को बहुत मर्दाना समझता है।अस्सी प्रतिशत पुरुष सोचते हैं कि डायपर बदलने जैसे काम सिर्फ महिलाओं के लिए होते हैं।

अधिक चिंताजनक बात ये है कि करीब एक चैथाई ने स्वीकारा की उन्होंने कभी न कभी यौन उत्पीड़न, जैसे कि अपनी महिला साथी के साथ जबरदस्ती संभोग करना, भी किया है।

यह अंतरराष्ट्रीय महिला शोध केन्द्र की 6 देशों द्वारा किये गये शोध की एक खोज है।

पुरुषों को महिलाओं से अधिक यौन क्रिया करने की चाह होती है। वे यौन क्रिया के बारे में बात नहीं करते, बस यौन क्रिया कर लेते हैं और वे संभोग के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। भारत में 10 में से 6 पुरुषों का ऐसा मानना है। ऐसे राय रखने वाले पुरुषों का अनुपात, रवांडा के बाद भारतीय पुरुषों में सर्वाधिक पाया गया है।

हिंसा

सर्वेक्षण के अनुसार, यौन विषयों पर यह पुरुषों वर्चस्व की सोच, बहुत सहज रूप से यौन उत्पीड़न में परिवर्तित हो जाती है। सर्वेक्षण किये गये पुरुषों में से 24 प्रतिशत का कहना है कि उन्होंने अपने जीवन में कभी न कभी यौन उत्पीड़न किया है। और 20 प्रतिशत का कहना है कि उन्होंने कभी न कभी, करीब 14 प्रतिशत ने सिर्फ पिछले एक साल में, अपनी साथी को यौन क्रिया के लिए मजबूर किया है।

तुलनात्मक दृष्टि से, ब्राजील में एक प्रतिशत, मैक्सिको में 3 प्रतिषत, और रवांडा, क्रोसिया और चिल में 4 प्रतिशत पुरुषों ने अपनी महिला साथी का यौन उत्पीड़न किया है। भारतीय पुरुषों द्वारा किया गया यह उत्पीड़न सिर्फ यौन प्रकृति का ही नहीं है। 65 प्रतिशत भारतीय पुरुषों के अनुसार कभी कभी महिला साथी को पीटना अनिवार्य होता है। 68 प्रतिशत का कहना है कि परिवार के बिना रहने के लिए, महिलाओं को उत्पीड़न सह लेना चाहिए।

मर्द (माचो)

भले ही लैटिन अमेरिका ‘माचिसमों’ का घर हो, लेकिन भारतीय पुरुष लैटिन अमेरिकी पुरुषों से अधिक इस शब्द को सार्थक बनाते हैं। 10 में से 9 का कहना है कि अपमान किए जाने पर वो अपनी प्रतिष्ठा के लिए लड़ने को तैयार रहेंगे - यह अनुपात मैक्सिको और चिल को मिलाकर बाकी सब देशों से अधिक है।

10 में से करीब 9 सोचते हैं कि बच्चों की देखभाल के काम, जैसे कि डायपर बदलना, सिर्फ महिलाओं के लिए है। 10 में से 9 पुरुष संलैंगिक पुरुषों के आस-पास होने पर अटपटा महसूस करते हैं, और मानते हैं कि अगर उनका बेटा संलैंगिक हुआ तो उन्हें शर्मिंदगी होगी।

‘बेडरूम’ सुख

यह ‘मर्दना’ रवैया सिर्फ उत्पीड़न में ही नहीं बल्कि बेडरूम में भी स्थापित होता है। 10 में से 9 पुरुषों का मानना है कि अगर एक पुरुष का लिंग उत्तेजित न हो पाये तो यह उसके लिए शर्मिंदगी का विषय है और 47 प्रतिशत का मानना है कि अगर उनकी पत्नी उन्हें कंडोम का प्रयोग करने के लिए कहती है तो वह बहुत क्रोधित हो जायेंगे - यह आंकड़ा भी बाकी 5 देशों की तुलना में अधिक है।

 

शोध के अनुसार, बेडरूम सुख और घर के कामकाज परस्पर संबंधित हैं। सभी सर्वेक्षित देषों में, पुरुषों में महिलाओं की अपेक्षा एक संतुष्ट यौन जीवन का दावा करने की अधिक संभावना है। अगर पुरुष भी घरेलु काम में मदद करते है, ऐसे में महिला और पुरुष, दोनों का जीवन यौन संतुष्ट होने की संभावना अधिक है। पुरुषों और महिला के संबंधों में जितनी अधिक असमानता होगी, उनके संबंध और यौन सुख की संतुष्टि के स्तर मे उतने अधिक फासले होंगे।

संतुष्टि

लेकिन यहां भारत आश्चर्यजनक रूप से परावर्ती के प्रतिरूप दिखाई देता है। पुरुष और महिलाओं के अपने परंपरागत भूमिका निभाने के बावजूद भी, भारतीय पुरुष और महिला दोनों में बाकी पांचों देशों की अपेक्षा में यौन संतुष्टि के उंचे स्तर पाये गये हैं। भारत में 98 प्रतिशत पुरुष और 97 प्रतिषत महिलाओं का कहना है कि वे अपने संबंधों में यौन संतुश्ट हैं।

लेकिन, यौन संतुष्टि का माप बहुत मुश्किल है। शोधकों का कहना है क्योंकि आंकड़ों के हिसाब से, इन यौन संतुष्ट महिलाओं में से कुछ को उनके साथी द्वारा संभोग के लिए पिछले एक वर्ष में मजबूर किया गया होगा।

अनुरूपता

भारतीय पुरुष संबंध में पुरूश और महिलाओं की भूमिका को यथा-स्थिति बनाये रखने में सबसे आतुर जान पड़ते हैं। आधे से अधिक महसूस करते है कि महिला अधिकारों को प्रोत्साहन मिलने से उनको नुकसान होगा। बाकी देशों में 90 प्रतिशत पुरुष इन विचारों से सहमत नहीं हैं।

भारत की प्रबल होती अर्थ व्यवस्था, महिलाओं के लिए अवसरों की बाढ़ ला रही है, लेकिन शोधकत्ताओं का निश्कर्श है कि भारतीय पुरुषों की सोच की गति इसके अनुरूप नहीं है।

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