'उन्होंने कहा कि वो मुझे जान से मार डालेंगे'
जेरिफ़ा अहमद, 26, एक लेखिका हैं जो जोरहाट से आयी हैं
मैं 2014 में स्नातकोत्तर की पढ़ाई करने जोरहाट से दिल्ली आयी थीI मैंने लाजपत नगर में एक कमरे का छोटा सा मकान किराये पर लिया थाI मुझे आये हुए एक महीना भी नहीं हुआ था कि पड़ोसियों की शिकायतें शुरू हो गयी थीI उनका कहना था कि उनके घरों में अजीब सी बदबू आनी शुरू हो गयी है और उसका कारण वो मसाले हैं जिनका इस्तेमाल मैं खाना बनाने के लिए करती हूँI
यह सच है कि मुझे बांस की कोपलों से बना अचार बेहद पसंद था और मैं उसे चिकन और मछली बनाते हुए भी इस्तेमाल करती थी, लेकिन मेरे लिए यह विश्वास करना मुश्किल था कि उसकी गंध इतनी दूर तक भी जा सकती थीI मैंने खिड़कियाँ बंद करके खाना पकाना शुरू कर दिया लेकिन मेरी परेशानी कम नहीं हुईI हर शाम, मेरे खाना बनाने की शुरुआत होते ही, कोई ना कोई मेरा दरवाज़ा खटखटा रहा होता था और पूछ रहा होता था, "आप सूअर या कुत्ता बना रहे हो क्या, बाहर बहुत तेज़ बदबू आ रही हैI"
एक दिन तो स्थिति इतनी बिगड़ गयी कि पड़ोस की कुछ औरतें गुट बनाकर और हाथ में चप्पलें लेकर मेरे घर आ गयीI वो सब मुझ पर एक साथ चिल्ला रही थी और जब मैंने आवाज़ नीचे करने को बोला तो उन्होंने कहा कि अगर मैंने खाना बनाना अभी बंद नहीं किया तो मुझे चप्पलों से पीट-पीट कर मार डालेंगीI मेरे घर वाले हमेशा दिल्लीवालों की मानसिकता को लेकर घबराये रहते थे लेकिन मेरे लिए यह पहला अनुभव थाI इसके बाद मैं इतनी डर गयी थी कि मैंने दो दिन बाद ही कश्मीरी गेट में एक पीजी में कमरा ले लिये थाI मुझे वो दूर पड़ता था लेकिन कम से कम मैं यहाँ सुरक्षित महसूस करती हूँI
'लोग कहते हैं कि उत्तरी भारत के लोग गुस्से वाले और लड़ाके हैं'
निर्मली फूकन (22), जे एन यु में पोलिटिकल साइंस की छात्रा हैं
मुझे नहीं लगता कि देश के केवल एक हिस्से के लोगों के रवैये की वजह से इस बारे में कोई भी राय बनाना ठीक होगाI लेकिन मुझे उन लोगों पर वैसे ही गुस्सा आता है जो हिंसा को बढ़ावा देते हैं, खासकर अगर वो पुरुष हों तो! इस सोच की वजह यह नहीं है कि दिल्ली में मुझे कभी किसी ने चिंकी बोला या कभी मेरे नार्थईस्ट के होने की वजह से मेरा मज़ाक उड़ायाI
लोग कहते हैं कि उत्तर भारत के लोग गुस्से वाले और लड़ाके होते हैं और मैं आज तक यह नहीं समझ पायी हूँ कि यह आक्रामकता आती कहाँ से हैं और क्योंI वैसे मुझे आजतक तो उस तरह के व्यवहार या हिंसा का अनुभव अभी तक तो नहीं हुआ है जिसके बारे में यहाँ के लोग मशहूर हैं, भगवान् करे कि कभी हो भी नाI
मुझे दिल्ली के अलावा और कोई जगह याद नहीं है जहाँ किसी ने मुझे इतनी बार चिंकी बोला हो
'मनबुद्धि और कुत्ता भक्षी'
'अंजुम थापा (32), तेज़पुर से आयी एक गृहणी हैं'
मेरा बचपन हैदराबाद में बीता था और पढ़ने के लिए मैं दिल्ली आ गयी थीI यही मेरी मुलाक़ात मेरे होने होने वाले पति से हुई और फ़िर हम मुंबई शिफ्ट हो गएI तो यह कहना सही होगा कि अपने जीवन के तीन बड़े और महत्त्वपूर्ण हिस्से मैंने इन्ही तीन जगहों में गुज़ारे हैंI मुझे नहीं याद कि किसी ने भी मुझे इतनी बार चिंकी कह कर बुलाया होगा जितनी बार दिल्ली वालों ने! मुंबई के लोगों का पूर्वोत्तर से आये लोगों के लिए रवैया पूरी तरह से भिन्न है। वे ना तो आपको कुत्ते खाने वाले मंदबुद्धि लोग समझते हैं और ना ही किसी के दिमाग का पता उसकी आँखों के आकार को देखकर लगाते हैंI
दिल्ली में भेदभाव के स्तर को देखकर मुझे डर लगता हैI यहाँ पर डर सिर्फ़ इस बात का नहीं है कि कोई आपका बलात्कार कर सकता है या आपके साथ छेड़छाड़ कर सकता है, बल्कि इस बात का भी है कि कहीं कोई आपको जानबूझकर सिर्फ़ इसलिए नुकसान ना पहुंचा दे क्यूंकि उसको यह लगता है कि आप मंगोलिया के वासी हैंI
'ख़ौफ़नाक और चोट पहुँचाने वाला'
दमयंती डोले (30), नागाओं की एक इंजीनिअर हैंI
मुझे ताजमहल में घुसने से इसलिए मना कर दिया गया था क्यूंकि उन्हें लगा मैं चाइनीज़ हूँ और मेरे पास ना तो वीज़ा है और ना ही पासपोर्टI जब मेरे पति ने इस बात पर आपत्ति जताई तो उनका कहना था कि अगर हम यहाँ से अभी नहीं गए तो 30-40 लोगों को बुलवा कर हमारी पिटाई कर दी जाएगीI चलो एक बार को मान भी लिया जाये कि मैं भारतीय नहीं हूँ तो भी विदेशियों से इतनी नफ़रत आई कहाँ से? मैं बहुत ज़्यादा डर गयी थी और इस सोच में पड़ गयी थी कि एक अकेली लड़की के लिए उत्तर भारत में रहना कितना खतरनाक हो सकता है।
'कभी कभार नाम बिगाड़ा, बस ज़्यादा कुछ नहीं'
मनीषा लैशराम (29), फैशन डिज़ाइनर, मणिपुर
फैशन की दुनिया में कहानी कुछ अलग हैI वैसे तो मैं भी दिल्ली में रही थी और एक नामी फैशन संस्थान से पढ़ाई की थी लेकिन मेरे साथ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ करता था जैसा कि मेरे बाकि दोस्तों के साथ होता थाी हाँ,कभी-कभी कोई नाम का मज़ाक ज़रूर उड़ा देता था लेकिन उससे कभी इतना बुरा नहीं लगा कि मुझे लगे कि मैं 'बाहरी' हूँI
गोरी चमड़ी को लेकर उनके जूनून ने मेरा दिमाग खराब कर दिया था
मुझे वैश्या बुलाते थे
केवी ह्मार (20), स्टूडेंट, मिजोरम
मेरे लगातार तीन पंजाबी बॉयफ्रेंड रहे थे और मुझे नहीं याद कि उनमे से एक ने भी मुझे वैश्या या बदचलन ना कहा होI ऐसा लगता था जैसे यह नाम उनकी ज़ुबान पर चढ़ गया थाI मेरे कहने का यह मतलब नहीं कि पंजाबी लड़के बद्तमीज़ होते हैं या उन्हें महिलाओं की इज़्ज़त करना नहीं आता, लेकिन उन रिश्तों में मुझे यही विश्वास दिलाया गया कि उन्हें सिर्फ़ मेरे शरीर की ज़रुरत है, मेरी नहींI
यह आर्टिकल सब से पहले जून १६ , २०१७ को प्रकाशित हुआ था I
इस्तेमाल किया गया चित्र एक मॉडल का है और उसका इस लेख के लोगों से कोई सम्बन्ध नहीं हैंI
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