Fighting Holi Harassment
Africa Studio

होली पर क्या सिर्फ़ लड़को को ही मनोरंजन की आज़ादी है?

सुरभी की होली, होली से तीन दिन पहले ही शुरू हो गयी थीI और होती क्यों नहीं, कुछ असंवेदनशील लड़को को रंगों का त्यौहार जो मनाना थाI आइये पढ़े सुरभी की दर्द, गुस्से और हताशा से भरी यह आपबीतीI

28 वर्षीय सुरभी श्रीवास्तव लव मैटर्स इंडिया में प्रोग्राम मेनेजर के पद पर कार्यरत हैंI वो वौइस् योर एबॉर्शन प्रोजेक्ट की संस्थापक भी हैंI इस मंच पर महिलाएं गर्भपात से जुड़े अपने अनुभव और कहानियां साझा कर सकती हैंI

अचानक

जब मैं घर से निकली तो मुझे नहीं लगा था कि शुक्रवार की यह सुबह, शुक्रवार के किसी अन्य सवेरे से कुछ अलग होगीI सप्ताह का आखरी दिन होने की ख़ुशी तो थी ही, तीन दिन के बाद रंगों के त्यौहार:होली को मनाने की बेसब्री भी थीI भावनाओं के इस सुहाने भंवर में गोते लगाती हुई मैं ऑटो में बैठकर मेट्रो स्टेशन की और बढ़ी ही थी कि अचानक...

मेरी छाती पर कुछ ज़ोर से आकर लगा था जिसने मुझे हिला कर रख दिया थाI ना सिर्फ़ मुझे अत्यंत दर्द महसूस हो रहा था बल्कि मेरा दुप्पट्टा और जैकेट भी ठन्डे पानी से भीग गए थेI

मुझे समझ नहीं आ रहा था कि यह हुआ क्या हैI थोड़ी देर बाद धड़कने सामान्य हुई तो एहसास हुआ कि एक गुब्बारा आकर लगा हैI

सामान्य लेकिन घटिया दस्तूर

होली पर लड़कियों और महिलाओं पर गुबारे फैंकना हमारे समाज में एक आम बात हैI अब आख़िर होली भी तो मनानी है और ज़रूरी नहीं कि होली आप सिर्फ़ जान पहचान वाली महिला के साथ ही खेल सकते हैंI आप राह चलती किसी भी लड़की पर गुब्बारा फैंक कर यह त्यौहार मना सकते हैंI सुनने में अजीब लगता है लेकिन कम से कम कुछ लोग तो यही सोचते हैंI

मैं जानना चाहती थी कि मुझे गुब्बारा मारने वाला है कौनI लेकिन चलते रिक्शा और मेरा थोड़ी देर के लिए सदमे में चले जाने से यह आसान नहीं थाI लेकिन जब अगले मोड़ से मेरा रिक्शा दाएं मुड़ा तो मैंने वहां कुछ लड़को को खड़े देखाI वो भी मुझे ही देख रहे थे, ओह्ह नहीं, वो तो मुझ पर हंस रहे थे और एक दूसरे के साथ ताली पीट रहे थेI मुझे मेरे गुनहगार मिल गए थेI

मुझे उनकी शक्ल तो ढंग से नहीं दिखी लेकिन उनके ठहाके पूरे रास्ते मेरे कानों में गूँज रहे थेI उन्होंने मेरा सारा मूड 5 सेकंड में बिगाड़ दिया था और कुछ ना कर पाने की हताशा और चिड़चिड़ाहट मेरे चेहरे पर साफ़ नज़र आ रही थीI एक काम जो मैं कर सकती थी वो मैं कर रही थी, उन्हें और अपनी किस्मत को कोस रही थी, और रिक्शा के बाकी के सफ़र के दौरान मैंने यही कियाI

 

कोई बात नहीं, होली है

जब मैं मेट्रो में अपनी सीट पर बैठी तो मुझे एहसास हुआ कि मेरा दुपट्टा और जैकेट अभी तक सूखे नहीं है, और ना ही मेरी चिड़चिहाट और गुस्से में कुछ कमी आयी हैI मुझे लगा कि अपने अनुभव के बारे में फेसबुक पर लिखना चाहिएI

मेरा पोस्ट सिर्फ़ मेरे अकेले के बारे में नहीं थाI मुझे पता है कि कैसे होली की परंपरा को निभाते हुए ऐसी घटनाओं को सामान्यता का दर्जा दे दिया गया हैI लोगों को लगता है कि वो औरतों को और असहाय जानवरो को पानी के गुबारों और रंगों से नहला सकते हैं, उन्हें परेशान कर सकते हैं और उन्हें लगता है कि हमें यह सब ना सिर्फ़ सहना चाहिए बल्कि इसके ख़िलाफ़ किसी भी प्रकार की आवाज़ भी नहीं उठानी चाहिएI क्यों? क्योंकि होली है ना भाई, सुना नहीं क्या? बुरा ना मानो होली हैI

ऐसा नहीं है कि यह सिर्फ़ होली वाले दिन ही होता हैI होली का हुड़दंग तो एक हफ्ते पहले ही शुरू हो जाता है और होली के बाद भी चलता रहता हैI दुःख की बात तो यह है कि इस व्यवहार को निंदात्मक भी नहीं समझा जाताI

 

खेलने की चीज़?

हमारे देश में हम लड़कियों के बारे में यही सोचा जाता है कि हम त्योहारों को हर्षोल्लास से नहीं मनातेI अब अगर किसी त्यौहार में हमारी सहमति के बिना हमारे शरीर के साथ खिलवाड़ करने के बाद हमें ही उपहास का पात्र बनाया जाये तो हम कैसे उस त्यौहार आनंद उठा पाएंगेI

यहां मैं एक और बात पर ज़ोर डालना चाहूंगी, कि इन गुबारों से दर्द भी बहुत होता हैI लेकिन मुझे नहीं लगता कि पुरुषों का इस बात पर कभी भी ध्यान गया होगाI उनके लिए तो हम महिलाओं कि ना तो कोई पहचान है और ना ही हमारे अंदर भावनाएं, हम तो बस अपने शरीरों को लेकर इस लिए घूम रही हैं कि उनके रोमांच और ख़ुशी का कारण बन सकेंI

 

मेरे उस पोस्ट की प्रतिक्रया में कई महिलाओं ने उनके साथ घटे समान अनुभवों के बारे में बतायाI यह साफ़ था कि होली के समय कई महिलाओं को सार्वजनिक स्थलों में रहने मैं बैचेनी और घबराहट होती थीI

बस बहुत हो गया!

मेरे ख्याल से अगर किसी त्यौहार की आड़ में एक महिला के शरीर की मर्यादा का उल्लंघन किया जा रहा है और उसके आत्म-सम्मान को ठेस पहुंचाई जा रही है तो शायद हमें उस त्यौहार को मनाने के तरीके के बारे में पुनर्विचार करने की ज़रुरत हैI यह ज़रूरी है कि लोगों को एहसास दिलाया जाए कि चाहे होली ही क्यों ना हो, एक महिला की सहमति अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैI इसके अलावा अगर कानून प्रवर्तन संस्थाएं इस तरह के उत्पीड़न को विनियमन और दंडित करने के मामले में हमारे पक्ष को भी ध्यान में रखें तो यह उनके लिए भी सहायक होगाI अच्छा होगा कि यह सब महिलाओं की आजादी को सीमित किए बिना किया जाये क्योंकि दुर्भाग्यवश हम जब भी सुरक्षा की बात करते हैं तो सबसे पहले एक महिला की आज़ादी के साथ ही समझौता कर दिया जाता हैI

 

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