आंटीजी कहती हैं...प्रसून बेटा साफ़ बात ये है कि तेरा ऐसा होना गलत नहीं है। तू अनोखा नहीं है और अकेला भी नहीं है। गहरी सांस ले बेटा और रिलैक्स कर। असल में अपनी सेक्सुअलिटी, यानि अपनी लैंगिकता से रुबरु होना आसान नहीं है। सबसे पहले ये बात समझ ले कि तू दुनिया का पहला ऐसा इंसान नहीं है, इसलिए गलत या अजीब होने का सवाल ही पैदा नहीं होता। ठीक है?
इस सच का सामना करना अक्सर मुश्किल हो जाता है खासकर हुमारे समाज में। इसे गलत समझा जाता है लेकिन मेरे विचार में ये प्राकर्तिक है और इसमें कुछ गलत नहीं।
पक्षपात
प्रसून ये सम्भव है कि तू बाइसेक्सुअल हो। और शायद तुझे ऐसा एहसास होना अब शुरू हुआ हो। अपने आप को पहचान जितना जल्दी हो सके। अपने आप को अकेला या अलग महसूस किये बिना। बहुत से लोग प्रयोग करते हैं, कई बार अपने बाइसेक्सुअल होने के बारे में। अकसर हमारे समाज में लैंगिकता के इस एंगल को कोई समझता ही नहीं है, और समझने वाले पक्षपात कर बैठते हैं। बेटा मैं तुझे इससे जुडी कुछ गलतफहमियों के बारे में बताती हूँ:
ये कोई 'दौर' नहीं है
बाइसेक्सुअल लोगों को आकर 'काम प्रगति पर है' के तौर पर देखा जाता है। यानि वो लोग जो अब तक अपनी पसंद के साथ प्रयोग कर रहे हैं- कि वो समलैंगिक है या विषमलैंगिक? अगर तू दोनों में से नहीं है तो कुछ गलत नहीं।
द्विलैंगिकता या बैसेक्सुअलिटी जीवन का कोई दौर नहीं है, और तुझे अपने इस झुकाव का इलाज ढूंढ़ने कि कोई ज़रूरत नहीं है। क्यूंकि इस तलाश से तुझे जिस मुकाम पर पहुंचना है, तू वहाँ पहले ही पहुँच चूका है। अगर तू ये समझ गया है कि तेरी पसंद लड़के और लड़की दोनों हैं तो।
बिना लिंग आधार की चॉइस
द्विलैंगिक होने के चलते एक से अधिक जेंडर के लोगों कि तरफ झुकाव होना तुम्हे गैर एकलवाड़ी नहीं बना देता। इस तरह के रिश्ते भी दूसरे रिश्तों जैसे प्यार और अपनेपन से भरे हो सकते हैं।
असल में ये कहना गलत नहीं होगा कि बाइसेक्सुअल किसी लिंग (जेंडर) कि तरफ नहीं बल्कि किसी व्यक्ति विशेष कि तरफ आकर्षित होते हैं चाहे उसका कोई भी लिंग हो। क्या ये तथ्य सुनने में कुछ बेहतर लगा? जैसे कि कभी मुझे संजीव पसंद है और वो एक लड़का हो सकता है, और किसी समय में मुझे स्नेह से लगाव हो सकता है जो लड़की है। बस, कहानी इतनी सी है।
मुख्य बात ये है कि मुझे संजीव और स्नेह पसंद हैं, उनका जेंडर नहीं- ठीक उसी इंसान कि तरह जो एक ही लिंग के कई लोगों के प्रति आकर्षण महसूस करता रहता है। तो फिर बैसेक्सुअल्स लोग अनोखे कैसे हो गए?
पागलपन
बड़ी अजीब बात है- कुछ साल पहले समलैंगिक होने पर या किसी समलैंगिक के संपर्क में आकर लोग पगला जाते थे जैसे कुछ अनोखा हो गया हो, और अब ऐसा द्विलैंगिकों के मामले में होने लगा है। अब अचानक समलैंगिकता सामान्य और पुरानी बात हो गयी है लोगों के लिए।
अगर ये सच है, तो अच्छी बात ये है कि समाज में अच्छा बदलाव भी आया है पुत्तर। है ना? समलैंगिकों के लिए समाज में स्वीकृति आने लगी है।
बंद दरवाजे खोल
चाहे किसी के भी करीब आ प्रसून बेटा, बस इतना ध्यान रखना कि तू इस दौरान किसी को तकलीफ न पहुंचाए और झूठी तस्वीर ना प्रस्तुत करे। और ये नियम तो दुनिया के हर रिश्ते में एक जैसा ही है। तो फिर बाइसेक्सुअल अलग कैसे हुए बेटा? बाइसेक्सुअल लोगों से जुडी जो गलत धारणा है वो ये है कि वो बिना सीरियस हुए सिर्फ सेक्स कि तलाश में रहते हैं चाहे लड़का हो या लड़की। इसलिए शायद इसके बारे में लोग गलत राय रखते हैं। इस सोच और राय को बदलना ज़रूरी है।
चिंता बिलकुल मत कर प्रसून पुत्तर! तेरे दिमाग में जो भी चल रह हो, सच ये है कि तू एक सच्चा, ईमानदार और अच्छे दिल का इंसान है। जो लोग तुझे समझते हैं वो तुझे ज़रूर प्यार करेंगे और जो नहीं समझते उनके प्यार कि ज़रूरत भी नहीं है। तो बेटे टेंशन छोड़ और मज़े कर, खुश रह!
प्रसून कि उलझन के बारे में आपकी क्या राय है? क्या आपके पास उसके लिए कोई मश्वरा है? अपने विचार यहाँ लिखिए या फिर फेसबुक पर हो रही चर्चा में हिस्सा लीजिये।