और उसके आस-पास व्याप्त रूढ़ीवादी माहौल ने स्थिति और बदतर कर दी।
‘‘जब मुझे पता चला कि मैं गर्भवती हूँ, मेरे प्रेमी किसी जरूरी काम से बाहर गया हुआ था। उसने सहयोग करने का पूरा प्रयास किया लेकिन उसके दृष्टिकोण में, निश्चित रूप से उन परिस्थितियों में हम एक परिवार का भार नहीं उठा सकते थे’’
‘‘हालांकि उसके इस सोच से मुझे दुख हुआ, लेकिन मैं खुद भी इस बारे में नकारात्मक थी। भारत में अगर आपके साथ ऐसा कुछ हो जाये तो लोग आपको देख कर नाक भौं सिकोड़ते हैं’’
पाबंदी
‘‘अगर मैंने गर्भपात कराने का फैसला ना किया होता तो मेरे लिए परिवार, समाज और कार्य स्थल से निष्काषित हो जाने का खतरा था। आप जानते ही हैं - शादी के बिना संभोग पर प्रतिबंध है’’
‘‘मुझे अच्छी तरह पता था अगर मैंने अपने माता-पिता को बताया तो उन्हें चोट पहुंचेगी। तो मुझे चुपचाप गर्भपात करवा लेना आसान रास्ता लगा। उन्हें अभी तक इसके बारे में मालूम नहीं है’’
सहयोगी
‘‘यद्यपि मेरे पूर्व प्रेमी को कोई भी पूरा नहीं कर सकता था, मेरे कुछ करीबी मित्रों ने बहुत सहारा दिया। मैं उन दिनों पूरे समय उलझन में, सोच में डूबी हुई और भावुक रहती थी। उनकी मदद को मैं जीवन भर नहीं भूल पाउंगी’’
‘‘लेकिन हम सब बहुत छोटे और परिपक्व थे और नहीं जानते थे कि इन परिस्थितियों से कैसे निपटा जाये। मैंने अपने उम्र से बड़े एक मित्र से मार्गदर्शन लिया। उसने डॉक्टर ढूंढने और अभिभावक का रूप निभाने जैसे वास्तविक मसलों का हल किया’’
कुछ खो देने का अहसास
‘‘मुझे याद है कैसे मैंने क्लीनिक के चक्कर लगाये, दुविधापूर्ण प्रश्नों का उत्तर दिया। असामान्यजस्यपूर्ण चिकित्सकों से मिली और खुद सभी जांच करवाई। मुझे अपने अकेले होने से और इसे गुप्त रखना बहुत घृणापूर्वक लगा। उन दिनों मुझे एक ऐसे समाज का हिस्सा होने की प्रबल इच्छा हुई जिस में लोग अधिक खुले विचारों वाले हो।’’
‘‘मुझे गर्भपात के बाद प्राकृतिक रूप से लगा कि मैंने अपना कुछ खो दिया है। अगले कुछ महिनों और वर्षों में भावनात्मक रूप से मैंने भुगता है’’
अपराध बोध
‘‘मुझे यौन क्रिया की सोच से भी घृणा हो गई। जिसकी वजह से मेरे संबंधों में दरार पैदा हो गई। मैं गर्भपात के उस निर्णय के लिए हमेशा अपने आप को दोषी ठहराती रही। मैं डिप्रेशन का शिकार हो गई लेकिन मैंने इलाज की कोशिश नहीं की क्योंकि मुझे लगा कि मैं उसी के लायक थी’’
‘‘मेरे प्रेमी सहज रूप से इस आघात से उबर गया। इससे मुझे लगा कि हमारी सोच समान नहीं थी और हमारी दूरिया बढ़ गई। उस वक्त तो हमने संबंध विच्छेद होने से बचा लिया, लेकिन वो ज्यादा दिन चल नहीं पाया’’
उबरना
‘‘पांच साल बाद मैंने महसूस किया कि मेरी इस मामले को लेकर भावनाएं अभी भी वहीं थी। मेरे एक मित्र के समझाने पर मैंने इलाज करवाने का निर्णय लिया।’’‘‘डॉक्टर के परामर्श से उबरने की प्रक्रिया शुरू हुई। तब मैंने पूरी घटना को स्वीकार करने की और जो उसके लिए अपने आपको दंडित करने की कोशिश शुरू की। अभी भी मैं पूरी तरह से उस से नहीं उबर पाई हूँ। लेकिन मुझे खुषी है कि मैंने शुरूआत तो की।’’
यह लेख पहली बार 27 जून, 2011 को प्रकाशित हुआ था।
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गायत्री परमेस्वरन एक बहु-पुरस्कार विजेता लेखक, निर्देशक और इमर्सिव मीडिया कार्यों की निर्माता हैं। वह भारत में पैदा हुई और पली-बढ़ी और वर्तमान में बर्लिन में रहती है, जहां उन्होंने NowHere Media की सह-स्थापना की - एक कहानी सुनाने वाला स्टूडियो जो समकालीन मुद्दों को एक महत्वपूर्ण लेंस के माध्यम से देखता है। उन्होंने अपने शुरुआती वर्षों में लव मैटर्स वेबसाइट का संपादन भी किया। उनके बारे में यहाँ और जानें।