PMSING
© Love Matters | Rita Lino

पीएमएस : पांच मुख्या तथ्य

पी.एम.एस या फिर प्री मेंसुरेशन सिंड्रोम : महीने का वो दौर जब महिलाएं बिना किसी ख़ास वजह के चिडचिडी सी रहती हैं।

एक टूटा हुआ नाखून, या फोन का ना मिलना ही आंसू और गुस्से का कारण बन जाता है। शायद पुरुषों को कभी कभी लगता होगा की कहीं ये महिलाओं का बहाना तो नहीं, बेवजह बेसलूकी करने का। और लगभग सभी महिलाओं को सच पता है। जानिए यही सच इस बार के पांच मुख्या तथ्यों में!

क्या ये सचमुच होता है?

कुछ वैज्ञानिकों और बहुत सारे पुरुषों का यकीन है की पीएमएस जैसा कोई सिंड्रोम असल में नहीं होता। लेकिन किसी महिला से पूछें तो वो कसम खा सकती है की ये वाकई होता है। शायद ये काफी समय से महसूस किया जाता रहा हो, लेकिन वैज्ञानिकों का ध्यान इस बार 1980 के आसपास ही गया और अंतत में इसका सम्बन्ध महिलों के शरीर में होने वाले हार्मोनल बदलाव से पाया गया।

नए अध्यन ये दर्शाते हैं की ये मासिक धर्म के आखिरी दौर (लुटेअल फेज) में होने वाले मानसिक रसायन और हारमोंस की बीच होने वाली आपसी क्रिया का फल है। ये हर्मोने, मुख्यतः प्रोजेस्टेरोन शरीर में एन्दोर्फिन्स की कमी का कारण बनता है, वो रसायन जो ख़ुशी की भावना देता है। और इसका शिकार सिर्फ मानव ही नहीं बल्कि कुछ जानवर भी बनते हैं।

संकेत

कई बार पीएमएस के होने पर भरोसा करना इसलिए मुश्किल हो जाता है क्यूंकि ये वाकई अलग अलग रूप में असर दिखता है। कभी शारीरिक, कभी मानसिक और कभी दोनों। लेकिन ये संकेत काफी कॉमन हैं- हर तीन में से एक महिला को पीएमएस नियमित रूप से होता है। हालाँकि हाल के एक अध्यन से ये पता चला की पीएमएस केवल महीने के उस 'ख़ास' दिनों में ही हो, ये आवश्यक नहीं।

इसके भौतिक संकेत स्तनों में दर्द, क्रेम्प्स इत्यादि हो सकते हैं। सरदर्द, कब्ज़, जोड़ों में दर्द कुछ और आम संकेत हैं। वहीँ इसके इमोशनल संकेत हैं स्वाभाव में चिडचिडापन, उदासी, और नींद की कमी। ये संकेत बदलते भी रह सकते हैं। कहने का मतलब है की हर माहवारी में पीएमएस के एक ही संकेत हों, ये बिलकुल ज़रूरी नहीं है। और ये संकेत एक दिन से लेकर एक हफ्ते तक हो सकते हैं।

क्या किया जाये?

कुछ चीज़ें हैं, जो पीएमएस को और बढ़ावा देने वाली सिद्ध हुई हैं। तो इसलिए बेहतर है की इस दौरान कॉफ़ी, बाहर का खाना परे रख के स्वस्थ दिनचर्या और पर्याप्त नींद सुनिश्चित की जाये। स्ट्रेस से इसके बढ़ने की सम्भावना बढ़ जाती है। जिन महिलाओं को डिप्रेशन की समस्या रहती है या पहले रह चुकी है, उसका असर भी बढ़ने की सम्भावना रहती है।

आराम और हल्का व्यायाम मददगार साबित हो सकता है। यदि सर दर्द और शरीर दर्द हो तो पेरासिटामोल या ब्रुफिन जैसी दर्द निवारक गोलियां कारगर साबित हो सकती हैं। साथ ही जो महिलाएं गर्भ निरोधन की दवा ले रही होती हैं, उनपर पीएमएस का असर थोडा कम होता है।

यदि इसके असर से वाकई सामान्य जीवन में परेशानी हनी लगे तो हेल्थ केयर लेने में कोई नुक्सान नहीं है।

पी एम् डी डी

पी एम् डी डी या प्री मेंसुरल दिस्फोरिक डिसऑर्डर पीएमएस के अत्यधिक रूप को कहा जाता है। इसके संकेत पीएमएस के सामान हैं लेकिन उस से कहीं ज्यादा परिमाण में। जिसके असर से महिलाओं के लिए सामान्य जीवन में मुश्किलें आने लगती हैं. इसका असर दुनिया में 3 - 5 प्रतिशत महिलाओं पर पड़ता है। इन् महिलाओं को अनुवांशिक रूप से हर्मोने सम्बन्धी समस्या होती है। पी एम् डी डी से जूझ रही महिलाओं को अवश्य ही चिकित्सा की मदद लेनी चाहिए।

सुपर हीरोज

असल में पीएमएस कोई बुरी चीज़ नहीं, जैसी की प्रतीत होती है। कुछ महिलाओं की इन्द्रियां इस दौरान बेहतर काम करने लगती हैं। सुनने, सूंघने, चखने की क्षमता सामान्य से अधिक हो जाती है- ये तो सुपर हीरो वाली क्वालिटी ही हैं!

और यदि बात बिगड़ जाये: तो कुछ देशों की अदालत में इस दौरान किये गए गुनाहों की सजा में छूट देदी जाती है, क्यूंकि पीएमएस आपकी मानसिक दशा पर असर ज़रूर डाल सकता है।

क्या आपको भी लगता है की पीएमएस का असर महिलाओं के मूड पर बहुत ज्यादा होता है? यहाँ लिखिए या फेसबुक पर हो रही चर्चा में हिस्सा लीजिये

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