A woman fends off goping hands
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ऑफिस में शारीरिक उत्पीड़न: महिलाओं कि उठती आवाज़

ऑफिस में होने वाले शारीरिक उत्पीड़न के खिलाफ हमेशा से ख़ामोशी बनाये रखने कि परंपरा आखिर अब टूटती नज़र आ रही है। हमने मीडिया में काम करने वाली कुछ युवा महिलाओं इस बारे में उनका नजरिया पुछा।

'मेरा स्वस्थ्य, मेरा चुनाव' श्रंखला के अंतर्गत पेश है ये लेख।

 

इस हफ्ते का विषय है शारीरिक उत्पीड़न

पिछले दिनों सामने आये कुछ हाई प्रोफाइल केस के कारण ऑफिस में होने वाला शारीरिक उत्पीड़न लगातार चर्चा में बना रहा। आखिर महिलाओं के रोज़मर्रा ऑफिस जीवन पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है? और इस पर अंकुश लगाने कि सीमा क्या है - शारीरिक उत्पीड़न के मायने क्या हैं? लव मैटर्स ने स्मिता, रूचि, श्रुति और प्रियंका से इस बारे में पुछा।

लव मैटर्स: क्या आपको लगता है कि ऑफिस में सेक्स उत्पीड़न वाकई एक बड़ा मुद्दा है?

स्मिता: दरअसल ऑफिस में होने वाले सेक्स उत्पीड़न कि परिभाषा बड़ी धुंधुली सी है। क्या एक सहकर्मी द्वारा कहा गया बेवकूफी भरा असभ्य चुटकुला भी ऑफिस जाने वाली महिलाओं के लिए सेक्स उत्पीड़न के दायरे में आयेगा? मुझे कितना सचेत रहना चाहिए? कहीं मैं राई का पहाड़ तो नहीं बना रही?

एक समाचार चैनल में काम शुरू करने के पहले कुछ हफ़्तों तक मैं ये सवाल लगातार खुद से पूछती रही। और समय के साथ मैंने खुद एक सीमा निर्धारित कर ली और जब कभी वो सीमा मुझे उल्लंघित होती दिखायी दी तो मैंने ऐसा करने वाले को तुरंत इस बारे में स्पष्ट शब्दों में समझा दिया।

रूचि: जी हाँ बिलकुल! मेरा मानना है कि ऑफिस में सेक्स उत्पीड़न एक बेहद गम्भीर मुद्दा है। मीडिया हाउस के अनौपचारिक वातावरण में इस तरह के मामलों कि सम्भावना अक्सर बढ़ जाती है।

श्रुति: हाँ। मैं मानती हूँ कि यह गम्भीर मसला है और इस बारे में और ध्यान देने कि विकट आवश्यकता है, इससे पहले कि ये एक परंपरा बन जाये। उदाहरण के तौर पर अक्सर अक्सर महिलाएं ऑफिस में बातों के बहाने डोरे डालने वाले पुरुषों को ऐसा करने पर नज़रअंदाज़ कर देती हैं जब तक कि वो हद से आगे नहीं बढ़ जाते। जबकि मेरे विचार में इसकी शुरवात ही नहीं होनी चाहिए।

प्रियंका: मैं भी इस बात से सहमत हूँ कि यह बेहद गम्भीर समस्या है क्यूंकि इस तरह कि घटनाओं का महिलाओं बार बुरा मनोवैज्ञानिक असर पड़ता है। साथ ही साथ इस तरह कि घटनाएं ऑफिस में कड़वाहट का माहौल पैदा कर देती हैं।. और अक्सर देखा जाता है कि इन् घटनाओं के लिए महिलाओं पर  'उकसाने' का आरोप लगाया जाता है।

लव मैटर्स: तो आपके विचार में किस तरह का व्यव्हार सेक्स उत्पीड़न के दायरे में आता है?

स्मिता: अनचाहा और गलत मंशा से किया जाने वाला शारीरक संपर्क आम तौर पर देखा जाता है। लेकिन इसके सिफा फेसबुक पर ज़रूरत से ज़यादा मेसेज भेजना, या लगातार टिपण्णी करना भी मेरे विचार में सेक्स उत्पीड़न ही है। आपके सीनियर द्वारा सीनियर होने कि आड़ में छेड़खानी या फ़्लर्ट करना भी महिलाओं के लिए कार्यस्थल में असुरक्षित और असहज महसूस करने का कारण बन जाता है।

रूचि: मेरी राय में, सेक्स उत्पीड़न शारीरिक हो, ऐसा आवश्यक नहीं है। किसी महिला के वेशभूषा या शरीर को लेकर कि गयी टिपण्णी भी उत्पीड़न है। या किसी सहकर्मी के साथ आपका नाम जोड़कर किया जाने वाला मज़ाक भी इसी श्रेणी का हिस्सा है।

श्रुति: एक पेशेवर वातावरण में, अनुपयुक्त टिपण्णी भी सेक्स उत्पीड़न ही है। टीवी चैनल में काम करने के मेरे अनुभव से मैंने जाना है कि महिला बॉस से आदेश लेकर काम करने में कुछ पुरुषों को लगता है मनो उनकी मर्दानगी को ललकारा गया हो। इसके बदले में अक्सर वो पीठ पीछे उनके रूपरंग या शारीरिक बनावट के बारे में फिकरे कसते हैं जो कि मेरे विचार में असहनीय है।

प्रियंका: ऑफिस में आपकी मदद करने के बदले में शारीरिक फायदा उठाने कि मानसिकता सेक्स उत्पीड़न का एक आम उदाहरण है। अन्य उदाहरण हैं सहकर्मी को अभद्र और अनुपयुक्त ईमेल या सन्देश भेजना या फिर उनकी इच्छा के विरुद्ध उन्हें चाय कॉफ़ी या डिनर पर ले जाने कि पहल और दबाव डालना।

स्मिता: 25, मीडिया प्रोफेशनल, मुम्बई

रूचि: 26, कथेतर साहित्य प्रोग्रामिंग निर्माता, मुम्बई

श्रुति: 27, मीडिया प्रोफेशनल, बंगलोर

प्रियंका: 28, पत्रकार, दिल्ली

(नाम बदले हुए)

क्या आप भी अपने पफिके में शारीरिक उत्पीड़न का शिकार हुई हैं? इसकी सीमा कहाँ तक है? यहाँ लिखिए या फेसबुक पर हो रही चर्चा में हिस्सा लीजिये।  

क्या आप इस जानकारी को उपयोगी पाते हैं?

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