Woman dancing in the streets of Delhi at night
Shutterstock / imagedb.com / O'SHI / Love Matters

उस रात मैंने सारे नियम-क़ानून तोड़ डालें

द्वारा Roli Mahajan जून 17, 10:13 पूर्वान्ह
दिल्ली में रहने वाली महिलाओं के लिए कुछ अनकहे, अनलिखे 'नियम कानून' बने हुए हैं - जैसे देर रात बाहर रहना सख्त मना हैI लेकिन तब क्या करें जब दिल कहे कि आज थोड़ी मस्ती हो जाए? चलिए जानें कि श्रेया शर्मा ने उस रात दिल की सुनी या दिमाग की...

26 वर्षीय श्रेया सॉफ्टवेयर प्रोफेशनल हैं

बड़ा ही सुहावना शनिवार थाI लेकिन मैं अपने कमरे में बैठे-बैठे ऊब गयी थीI क्या करूँ क्या ना करूँ और आलस्य के  चक्कर में पूरा दिन निकल गया था और अब अन्धेरा हो चला थाI दिमाग कह रहा था कि अब बाहर नहीं जाना चाहिए और दिल बार-बार हॉस्टल की चारदीवारी से बाहर निकलने के लिए शोर मचा रहा थाI

लगभग 9 बजे, मैंने अपने बगल वाले कमरे की पल्लवी को पर्स टाँगे बाहर निकलते हुए देखाI मुझे देखते ही उसने पेशकश की, 'हम पास के सिनेमा हॉल में एक फिल्म देखने जा रहे हैं, चलोगी?'

डर और रोमांच...

मैंने कभी भी 'नाईट शो' नहीं देखा थाI इस ख्याल से ही मेरा पूरा शरीर रोमांच से भर गया थाI लेकिन शायद दिमाग नहीं, क्यूंकि वो अभी भी मुझे डराने में लगा था - इतनी रात को बाहर जाओगी? कुछ गलत हो गया तो? कौन ज़िम्मेदार होगा? घर पर क्या बोलोगी?, वगैरह-वगैरहI

श्रेया, यह दिल्ली है, यहाँ लड़किया रात को बाहर नहीं निकलती

यह उन कई अलिखित नियमों में से सिर्फ़ एक है जिसका पालन दिल्ली में रहने वाली ज्यादातर लड़कियों को करना लाज़मी हैI लेकिन जैसा कि मैंने पहला कहा कि मेरा दिल तो हॉस्टल से बाहर निकलने के लिए शुरू से ही मचल रहा थाI पल्लवी ने भी शायद मेरी आँखों में मेरे दिल और दिमाग के बीच छिड़ी लड़ाई पढ़ ली थीI "अरे हम चार लोग हैं, और मैंने इस थिएटर में कई फिल्मे देखी हैं, और इस पिक्चर के रिव्यु भी बड़े अच्छे हैंI"

ऐसा नहीं है कि रात में फ़िल्म देखने जाना कोई बहुत बहादुरी का काम है लेकिन भारतीय शहरों में जीवन की वास्तविकता की वजह से यह कुछ कम भी नहीं हैI मुझे घबराहट तो हो रही थी लेकिन अपने दिमाग को सोचने का एक भी मौक़ा और दिए मैंने झट से हाँ कर दीI मुझे नहीं लगता था कि वहां खड़ी लड़कियों में से सिर्फ़ मेरे ही दिमाग में ऐसे ख्याल थेI हाँ, पल्लवी ज़रूर कई बार रात को बाहर जा चुकी थी लेकिन उसके अलावा बाकी तीनों लड़कियां हाल ही में दिल्ली आयी थी - बिलकुल मेरी तरहI

और फ़िर हम हॉस्टल से निकल गएI वैसे आज़ादी की हवा की बात ही कुछ और हैI इसमें उन्मुक्तता की गंध जो होती हैI हम सब बहुत खुश थे - लेकिन अंदर ही अंदर यह प्रार्थना भी कर रहे थे कि कुछ गलत ना हो जाए - कोई लड़का हमसे बदतमीज़ी ना करें, कोई छेड़छाड़ ना हो और ना ही कोई ज़बरदस्ती छूने की कोशिश करेI एक लड़की ने मेरे हाथ में एक छोटी बोतल भी थमा दी थी - वो था पेप्पर स्प्रे (काली मिर्च भरा घोल)। उसने सभी के लिए एक खरीदा था, अगर कुछ गलत हो तो।

खतरे से अनजान

हम बालकनी की टिकट खरीदने के लिए लाइन में लगे थे कि मेरी नज़र एक युवा विदेशी लड़की पर गयीI वो सबसे आगे की सीट की टिकट की लाइन में लगी हुई थीI "इसका दिमाग तो ठीक है"?, मैं तो यह सोच भी नहीं सकती थीI भीड़ में शारीरिक या यौन उत्पीड़न के डरावने ख्यालों ने हमेशा इस संभावना को संभावना ही रहने दिया थाI यह डर हमारे जीवन पर पूरी तरह हावी हो चुका थाI अब या तो वो इस खतरे से अनजान थी या फ़िर उसने ठान लिया था कि चाहे कुछ भी हो, वो भारत में रहने की हर छोटी-बड़ी ख़ुशी का अनुभव करेगी - अब इसमें एक नो फ्रिल थियेटर की पहली पंक्ति में एक मसालेदार बॉलीवुड फ़िल्म देखना तो शामिल होगा हीI

फ़िल्म सच में बहुत अच्छी थी और हम सभी को बहुत मज़े आ रहे थे, लेकिन रह रह कर घड़ी पर भी नज़र जा रही थीI फ़िल्म ख़त्म होते-होते 12 बज गए थे और आसपास कोई रिक्शा नहीं होने की वजह से हमने पैदल ही हॉस्टल जाने का फैसला कियाI

मज़े की परिभाषा

अंधेरी रात में सूनसान सड़क पर जब हमने पैदल चलना शुरू किया तो पिछले चार घंटों में शायद पहली बार हम पांचो को मौके की नज़ाकत का एहसास हुआI हमने इधर-उधर की बातें करना शुरू कर दिया जिससे कि हमारे मन में बेफिज़ूल के ख्याल ना आयेI मैं जल्द से जल्द अपने हॉस्टल के कमरे में पहुँच कर चैन की सांस लेना चाहती थीI मुझे पूरा विश्वास था कि बाकी सभी भी यही सोच रहे थेI हम सब के कदम और धड़कने तेज़ी से चल रही थी कि तभी पीछे से ज़ोर से हॉर्न की आवाज़ आयीI हम सभी के कदम जैसे वहीं जम गए थेI पीछे मुड़कर देखने की हिम्मत नहीं हो रही थीI हम सभी जानते थे कि पीछे गाड़ी में चार-पांच मनचले लड़के होंगे जो दारु के नशे में बाहर 'मज़े' करने निकले होंगेI 'मज़े' करने तो हम भी निकले थे - कितनी अजीब बात है, लड़की और लड़कियों की 'मज़े' करने की परिभाषा कितनी बदल गयी हैI कम से कम मन के अंदर के इन ख्यालों की वजह से मेरी सोचने समझने की शक्ति को तो कोई नुकसान नहीं पहुंचा था क्यूंकि मेरी उँगलियों ने पर्स के अंदर पेप्पर स्प्रे की तलाश शुरू कर दी थीI

भगवान् का शुक्र है कि जैसा हम सोच रहे थे ऐसा कुछ भी नहीं थाI पीछे पलटने पर मैंने देखा कि एक कार, जिसकी छत खुली हुई थी, हमारे बगल से गुज़री और हमें देखकर छत पर खड़ी हुई लड़की ज़ोर से "वु हू" चिल्लाई, जैसे कह रही हो "शाबाश लड़कियों, आज तो तुमने कमाल कर दिखाया!"

हम सभी की हंसी छूट गयी और हमने भी अपने हाथ दाएं से बाएं हिलाकर उसका अभिवादन कियाI हम सभी सुरक्षित हॉस्टल पहुँच गए थे और अपने दोस्तों के साथ एक शानदार शाम बिता कर मैं बहुत खुश थीI लेकिन साथ ही साथ यह एहसास भी था कि हम कैसे डर के साये में अपनी ज़िंदगी जी रहे हैंI  वही डर जिसकी वजह से मैंने बाहर जाने से पहले सैकड़ों बार सोचा थाI मैं यह भी जानती थी कि यह डर दिल्ली में रहने वाली लड़कियों की सामान्य दिनचर्या का हिस्सा है और मेरी जगह कोई और लड़की होती तो शायद आज हॉस्टल में ही रह जाती - और आज मुझे मिले इस सुखद एहसास से वंचित रह जातीI

कहानी में इस्तेमाल हुए नाम बदले हुए हैंI

चित्र: Shutterstock / imagedb.com / O'SHI / Love Matters (तस्वीर में एक मॉडल का इस्तेमाल किया गया है)

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