समीर गुडगाँव में रहने वाला 17 वर्षीय विद्यार्थी हैI
मैं ऐसे पुरुषप्रधान परिवार में पला बढ़ा जहाँ महिलाओं को कोई बड़ा फैसला लेने या अपनी बात खुलकर कहने कि आज़ादी नहीं थी, सिवाय मेरी दादी माँ केI महिलाओं का काम था सेवा करना, घर का काम करना और वंश को आगे बढ़ने के लिए बच्चे पैदा करनाI दरअसल पढाई और स्कूल जाने कि शुरवात भी परिवार में पहली बार मेरी पीढ़ी कि लड़कियों के साथ ही हुई थीI
मेरे दादा दादी भी छोटी बड़ी हर बात पर लड़कों कि तरफदारी करते थे और लड़कों ही फरमाइशें पूरी मई जाती थी, भले ही वो फरमाइशें फ़िज़ूल कि होंI हम बिना नतीजे कि चिंता किये अपनी मनमानी कर सकते थे क्यूंकि हमें मालूम था कि हमारी हर गलती माफ़ कर ही दी जाएगीI
इसके बिलकुल विपरीत, घर कि लड़कियों को घर के काम काज सीखने कि हिदायत दी जाती थी, सिलाई करना या अचार बनाना इत्यादिI
मेरी दादी अक्सर मेरी माँ को फटकारती रहती थी और जली कटी सुनाती रहती थीI मैं अपनी माँ से प्यार तो करता था लेकिन मैंने कभी दादी के इस व्यवहार का विरोध करने की नहीं सोचीI
'उत्साह'
लड़कियों के साथ छेड़छाड़ करना मनो मुझे प्रकर्ति ने ही सिखा दिया थाI अपनी सर उम्र मैंने यही समझा था कि लड़कियों का तो काम ही है सहन करना और जब मैंने अपने दोस्तों को ऐसा करते हुए देखा तो मुझे ये मज़ेदार लगाI
हम किसी 'सेक्सी' दिखने वाली लड़की के आसपास झुण्ड बना लेते थे और उसे घूरते रहते थे, उसके बाद कुछ छँटाकशी औए फिर देखते ही देखते अश्लील ताने मरने का एक भद्दा दौर शुरू हो जाता थाI अक्सर लड़कियां अनसुना करके वहां से जल्दी से निकलने की कोशिश करती थींI और कभी कभी तो हम उनका पीछा भी कर लेते थेI हमें कभी किसी ने ऐसा करने से नहीं रोकाI हमें ये बात अपने पौरुष का प्रतिक लगती थी कि हम इन सुन्दर लड़कियों को जो चाहे कह सकते हैं, उन्हें घूर सकते हैं और कभी कभी छू भी सकते हैं और हमें कोई रोक नहीं सकताI
पाप का घड़ा
एक दिन घर के पास के बाजार में यही छेड़ छाड़ का नियमित सिलसिला चल रहा थाI जब मैंने गौर से देखा तो जिस लड़की को मेरे दोस्त छेड़ रहे थे वो मेरी ही बहन थीI उसकी आँखों में एक अजब से असहायता का भाव था और वो मुझे देख रही थीI मेरे रोकने पर भी मेरे दोस्तों ने उसे परेशान करना बंद नहीं कियाI मैंने गुस्से में आकर उनमे से एक लड़के को थप्पड़ रसीद कर दिया और बस फिर क्या था, मानो भूचाल आ गयाI
मेरी क्लास टीचर, जो वहां से गुज़र रही थी हमारे पास आई और उन्होंने हमारा बीच बचाव किया और कहा," तुम रोज़ जिन लड़कियों के साथ ये बदतमीज़ी करते हो वो भी किसी न किसी कि बहन ही हैं, आज तुम पर बात आई तो बुरा क्यों लग गया?"
ये बात मेरे मेरे दिमाग को झकझोर गयीI पहले कभी मैंने ये बात सोची ही नहीं थीI मैंने घर जाकर अपनी बहन से माफ़ी मांगी और अपने माता पिता को भी इस बारे में बतायाI उन्होंने मेरी तरफ देखा और कहा, शायद अब वक़्त आ गया है कि इस घर के नियम बदल दिए जाएंI"
छोटे कदम
छोटे बदलावों ने हमारे घर का माहौल अब महिला-प्रधान कर दिया हैI घर का काम काज अब सिर्फ उनकी सरदर्दी नहीं हैI उन्हें घर से बाहर जाने कि उतनी इजाज़त है जितनी घर के लड़कों कोI अब घर सचमुच पहले से अच्छा घर बन गया हैI
कभी कभी मुझे अचरज होता है कि मैं ऐसा घिनौना काम कैसे करता रहा? मैंने कितनी लड़कियों को कितना दुःख पहुँचाया होगाI ये सवाल मुझे शायद हमेशा परेशान करते रहेंगे और शायद मैं इसके लायक हूँI समय के साथ मेरी आँखें तो खुल गयीं लेकिन आज भी सोच कर दुःख होता है कि सड़कों पर कितनी लड़कियों को बिना किसी वजह ये हैवानियत झेलनी पड़ती हैI
क्या अपने भी कभी किसी लड़की के साथ छेड़छाड़ कि है? आपको ऐसा करने के लिए किसने प्रेरित किया? हम आपके जवाब का इंतज़ार करेंगेI अपनी राय यहाँ लिखें या फेसबुक पर इस चर्चा में हिस्सा लेंI