एक यौन कर्मी को सुरक्षित सेक्स करने का अधिकार नहीं है? 27 साल की अमृता मुंबई में सेक्स वर्कर हैं। उन्होंने अपनी आपबीती सुनाते हुए हमें बताया कि कैसे उनके साथ हुई एक घटना के बाद पहली बार उन्हें उनके अधिकारों के बारे में पता चला।
एचआईवी / एड्स के लिए निकट भविष्य में कोई इलाज नहीं नज़र आ रहा हैI फ़िर 2030 तक इसे नियंत्रण में लाने की उम्मीद है। लेकिन इससे पहले ड्रग्स और वैश्यावृति को वैद्य करना ज़रूरी है...और हमदर्दी दिखाने में भेदभाव को कम करना भीI इस हफ़्ते के 'सेक्स इन द प्रेस' में आपके लिए और भी रोचक खबरें हैं
अपने सामयिक रिश्ते को गंभीर रूप से लेना चाहते हैं? बहुत सरल हैI आपका साथी आपके लिए क्या मायने रखता है और वो आपके लिए क्या करता है बस इस बात का ध्यान रखें और इसके प्रति आभार व्यक्त करेंI ऐसा कहना है शोधकर्ताओं काI
जब भी लैंगिक हिंसा की बात आती है तो ज़्यादातर मामलों मे महिलाएं पीड़ित होती हैं,पर ऐसा नहीं है कि पुरुषों के साथ ऐसा नहीं होताI ऐसी ही एक घटना ने दिल्ली के एक छात्र सुजयेश के दिलों-दिमाक को किस कदर प्रभावित किया, आइये जानें उन्हीं की ज़बानी :
दिल्ली की निशा पेशे से क्रिएटिव डिजाइनर हैं। उनकी परवरिश खुले विचारों वाले एक ऐसे परिवार में हुई जहां लड़कियों को लड़कों से कम नहीं समझा जाता था। लेकिन शादी होने के बाद निशा का पति, गौरांग*, उसे शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित करता था जिसने निशा के आत्मविश्वास को झकझोर कर रख दियाI
मेरा पति सेक्स का आदि हो चुका हैI उसे हर समय सेक्स चाहिएI वो सेक्स के लिए ऐसे तरीकों का इस्तेमाल करता है जो मुझे शारीरिक रूप से चोट पहुँचाते हैंI मैं इसके बारे में किसी से बात करने में असमर्थ हूं। मुझे क्या करना चाहिए? (इस पाठक ने अपना नाम और पता गोपनीय रखा है)
आरिफा*, एक बहुत ही सुन्दर लड़की थी जो मुंबई की झुग्गियों में रहा करती थीI उसकी शादी 20 साल में ही हो गयी थी लेकिन उसके पति ने कभी उसे छुआ तक नहींI दूसरी ओर उसका ससुर और परिवार के अन्य पुरुषों ने उसका बलात्कार करने के कई प्रयास किए। सामाजिक कार्यकर्ता चिन्मय सुभाष, ने आरिफ़ा को इन्साफ दिलाने के लिए आठ साल की कानूनी लड़ाई लड़ी हैI वही चिन्मय आज आरिफ़ा की कहानी हमारे पाठकों के लिए लेकर आयी हैंI
सहमति नामक शब्द के लिए अलग-अलग लोगों के पास अलग-अलग परिभाषाएं हैं, और जब भी दुर्व्यवहार, यौन उत्पीड़न तथा बलात्कार के बारे में बातचीत होती है तो इस शब्द के बारे में चर्चा ज़रूर होती हैI वैसे तो इसमें दोनों साथियों की सहमति होना ज़रूरी है लेकिन अकसर यही देखा गया है कि पुरुषों की इस बारे में स्पष्टता कम हैI इसीलिए हमने कुछ पुरुषों से पूछा की 'सहमति' के उनके लिए क्या मायने हैं? आइये पढ़ें कि उन्होंने क्या कहाI