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अपनी बेटी के बेहतर भविष्य के लिए मैने एबॉर्शन को चुना।

‘खानदान का चिराग’ देने के परिवार के दबाव के विरुद्ध जाकर मालिनी ने अपने अनचाहे गर्भ का एबॉर्शन करने का फैसला किया- अपनी बेटी के बेहतर भविष्य के लिए।

‘सही समय’

जैसे ही मेरी बेटी 4 साल की हुई, परिवार के बड़े बुजुर्गों ने मुझ पर दूसरे बच्चे के लिए दबाव डालना शुरू कर दिया। उनका कहना था कि बेटा होने से हमारा परिवार ‘सम्पूर्ण’ हो जाएगा। कुछ लोगों ने ये भी कहा कि दूसरा बच्चा करने से, पहले बच्चे के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर अच्छा असर पड़ेगा। लेकिन मैं खुद अपने परिवार की बड़ी बेटी थी और मुझे पता था कि ये सब बातें मिथ्या हैं।

मैं एक बच्चे के साथ खुश थी। एक और वजह थी जिसके चलते मैं दूसरे बच्चे का जोखिम नही उठाना चाहती थी। मेरे पहले बच्चे के समय स्वास्थ्य संबंधित जटिलताएं आयी थी और मैं विश्वस्त नही थी कि मेरा शरीर एक और बार ये सब झेल पाने में सक्षम हो पायेगा या नही।

मेरे पति और मैं आर्थिक रूप से भी इस नई ज़िम्मेदारी के लिए तैयार नही थे। हम दोनों अपने पहले बच्चे की देखरेख और पढ़ाई लिखाई में कोई समझौता करना नही चाहते थे और एक और बच्चे के साथ खर्च दुगना होना लाज़मी थी।

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'गलती' से

इसीलिए हम दोनों ही हम गर्भ निरोधन साधनों का उपयोग करते थे। लेकिन शायद किस्मत को कुछ और मंज़ूर था। एक दिन मुझे कुछ चक्कर से आने लगे और जी मिचलाने लगा। मैंने उस दिन तो इस बात पर ध्यान नहीं दिया क्यूंकि घर में पडी पेरासिटामोल से मेरी तबीयत ठीक हो गई थी लेकिन कुछ दिन बाद मुझे ध्यान आया कि मेरी माहवारी का समय एक हफ्ते पहले निकल गया था। मैंने अपने पति को बताया और उन्होंने मुझे प्रेग्नेंसी टेस्ट करने का सुझाव दिया। मेरा डर सही निकला। मुझे गर्भ ठहर गया था। लेकिन हम दोनों के मन में अगले कदम को लेकर कोई शंका नही थी- एबॉर्शन।

‘वंश’ की बात

हमने मेरे ससुराल वालों को इस बारे में ना बताने का फैसला किया क्योंकि हम जानते थे कि वो एबॉर्शन किसी कीमत पर नही करने देंगे। मेरी एक बेटी थी और मेरे सास ससुर को ‘वंश’ आगे बढ़ाने के लिए लड़के की चाह थी। मैं और मेरे पति इस सोच से सरोकार नही रखते थे और अगर हमारा पहला बच्चा अगर लड़का होता तो भी हमारा फैसला यही रहता।

हम एबॉर्शन के फैसले को लेकर एक मत में थे और इसलिये हम मेरी गाईनेकोलॉजिस्ट के पास गए। उन्होंने मुझे भरोसा दिलाया कि मेरा फैसला गलत नही है। उन्होंने मुझे गोली की मदद से गर्भ निरोधन का पूरा तरीका समझाया। मैंने सहमति के कागजों पर दस्तखत किए, दवा ली और हम वापस घर आ गए।

पूरी प्रक्रिया के दौरान मैं अपने आपको मानसिक रूप से बहुत मज़बूत महसूस कर रही थीI घर आकर जब मैंने अपनी बेटी को देखा तो मुझे अपने इस फैसले पर दुगना भरोसा हो गया। मुझे यकीन था कि मेरा फैसला तर्कशील भी था और पूरे परिवार के भले के लिए था। मुझे संतुष्टि थी कि मैंने अपने बच्चे के भविष्य को लेकर कोई समझौता नहीं किया।

आश्चर्यजनक निर्णायक राय

मुझे अपनी उम्र की महिलाओं की प्रतिक्रिया ने आश्चर्यचकित कर दिया हैं। मुझे उनसे ये उम्मीद नही थी वो कि मेरे फैसले का समर्थन करेंगी। लेकिन मैं ये भी नही चाहती थी कि वो मेरे बारे में निर्णायक राय पेश करें। कुछ दोस्तों न तो मुझे अपराध बोध जैसा महसूस कराया।

एबॉर्शन मेरा व्यक्तिगत फैसला रहा और मेरे जीवन की परिस्थिति के आधार पर मैंने ये फैसला लिया था। मुझे लगता है बच्चा पैदा करना या कितने बच्चे पैदा करना एक निजी फैसला होना चाहिये, जिसे व्यक्तिगत ही रहना चाहिये।

मेरा फैसला, बिना अफसोस

हर महिला को अपने शरीर से संबंधित फैसला करने का अधिकार होना चाहिए बजाए किसी तीसरे व्यक्ति या समाज के दबाव के आधार पर। एक माँ होने के नाते मैं समाज से पूछना चाहती हूं- यदि मैं अपने बच्चे की परवरिश ठीक से नही कर पाई तो क्या वो इसमें मेरी मदद करने आएंगे? मुझे नही लगता। तो फिर इस फैसले में उनकी राय ज़रूरी क्यों हो ?

मुझे अपने फैसले पर गर्व है और कोई मलाल नही। ये मेरी मर्ज़ी थीI

तस्वीर के लिए मॉडल है. 

यह लेख पहली बार 25 सितंबर, 2017 को प्रकाशित हुआ था।

28 सितम्बर को लव मैटर्स सुरक्षित और कानूनी गर्भपात के लिए विश्व दिवस मना रहा है और मालिनी*(बदला हुआ नाम बदलकर) ने हमारे #ChoiceOverStigma ब्लोगाथन के लिए अपनी गर्भपात की कहानी साझा की हैी

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