मायरा 26 साल की है और मुंबई में एक बैंक में कार्यरत हैI
मेरी माहवारी के शुरू होते ही मेरे स्तन बड़े होने शुरू हो गए थेI मैं 36 नाप की 'डबल डी' कप ब्रा पहनती हूँ और चूंकि मेरे शरीर के बाकी अंग, जैसे कमर, हाथ और पैर काफी पतले है तो आप अंदाज़ा लगा सकते है कि मेरा सीना काफी 'संपन्न' नज़र आता हैI
मेरे वक्ष बड़े है, इसका पता मुझे तभी चल गया था जब कुछ आंटियो और दोस्तों ने मुझे ढीले कपडे पहनने की सलाह दी थी, जिससे 'मेरी लाज' ढंकी रहेI मुझे भी मेरी सहेलियों की तरह मर्दो की गंदी नज़रो का सामना करना पड़ा है, वो नज़रें जो मेरे स्तनों की तरफ टकटकी बाँध देखती थी, लेकिन मैं कभी इससे विचलित नहीं हुईI
सौभाग्यवश मेरे माता-पिता ने कभी भी मुझे मेरे शरीर को लेकर हिचकिचाहट महसूस नही होने दीI मुझे बिना रोक -टोक कुछ भी पहनने की पूरी आज़ादी थीI
ऑफिस या नरक
काम के दुसरे ही दिन मैंने दो पुरुष सहकर्मियों को मेरे स्तनों को ताकते और उनके बारे मैं ठिठोली करते हुए सुनाI जैसे-जैसे दिन गुज़रें लोगो की नज़रें और गंदी, और दबी ज़बान मैं कही जाने वाली टिप्पणियाँ और ऊंचे स्वर में होने लगीI
एक दिन ऑफिस के सार्वजनिक गुस्लखाने में मैंने अपना एक कार्टून देखा जिसमे मेरे शरीर को कुछ इस तरह दर्शाया गया था - दो बड़े-बड़े स्तन और साथ में मेरे नंबर के साथ जो लिखा था वो मैं कभी भी नहीं भूल पाउंगी: "दुनिया के सबसे बेहतरीन स्तनों के मज़े लेने के लिए इस नंबर को मिलाये। अभी!"
दीवार साफ़ करने में एक घंटा लग गया, शर्म के मारे किसी और से मदद भी नहीं मांग सकती थी। मुझे लगा यह काफ़ी बुरा था, लेकिन इससे भी बुरा था बाकी के स्टाफ का इस वाक़ये से कन्नी काटना। यहाँ तक कि कोई महिला भी मेरे समर्थन में नहीं खड़ी हुई। शायद उन्हें नहीं लगता था कि यह उनकी समस्या है।
इस बात का मुझ पर बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ा। मैंने अपने आपको बाहरी दुनिया से बिलकुल अलग कर लिया था, यहाँ तक की घरवालो और दोस्तों से भी बातचीत ना के बराबर हो गयी थी। मेरे अंदर अच्छा दिखने और अच्छे कपडे पहनने की लालसा बिलकुल मर गयी थी और मैं अब सिर्फ वो लिबास चुनती थी जो ढीला हो और मेरा शरीर छुपा सके। कई बार तो मैंने यह भी सोचा कि अपने स्तन का आकार कम करने के लिए शल्य चिकित्सा का सहारा ले लूँ।
शारीरिक दुर्व्यवहार
ऑफिस की एक पार्टी में मैं अकेली बैठी थी जब नशे में धुत दो पुरुष सहकर्मी मेरे पास आये और उन्होंने बदतमीज़ी करनी शुरू कर दी। जब मैंने वहां से जाने की कोशिश करी तो उन्होंने मुझे हर तरह के घिनोने नामो से बुलाना शुरू कर दिया।
उसके बाद उनमे से एक, रवि ने अपने हाथ मेरे स्तन पर रख दिए। वहाँ पर गौतम भी मौजूद था जिसने यह सब होता देख रवि को रोक और कहा "रवि यह ज़्यादा हो रहा है, तुम हद से आगे मत बढ़ो!"
अपनी बातो का रवि पर कोई असर ना होता देख गौतम ने रवि को धक्का देकर हटा दिया और मुझे वहां से जाने को कहा। मै उसके बाद अपने घर आ गयी।
स्वीकारोक्ति और सुधार
घर पहुचते ही मैंने अपने माता-पिता को सब कुछ बता दिया। उन्होंने मुझे मेरे ऑफिस और रवि के ख़िलाफ़ पुलिस में शिकायत दर्ज करने के लिए दबाव डाला। लेकिन मैंने सारी हिम्मत जुटा कर एक बार अपने बैंक के सी.ई.ओ. से बात करने का फ़ैसला किया।
मैंने अगले ही दिन वो सब कुछ जो मेरे साथ हुआ था उन्हें बता दिया। मैंने उन्हें यह भी बताया कि यह सब होने के बावजूद मैं इसलिए यहाँ रुकी हूँ क्योंकि मैं अपनी नौकरी से प्यार करती हूँ। उन्हें यह सब सुन कर बहुत बुरा लगा लेकिन मुझे सच कहने की हिम्मत जुटाने के लिए शाबाशी देते हुए यह विश्वास भी दिलाया कि वो सख्त कदम उठाएंगे और रवि को नौकरी से निकाल देंगे।
हमारे ब्रांच मेनेजर को बुलाया गया, जिन्होंने बेहद खेद जताते हुए पूरे ऑफिस की ओर से मुझसे माफ़ी माँगी। उन्होंने मुझे यह भरोसा दिलाया कि मुझे या किसी और स्टाफ को ऐसी किसी भी हरकत का सामना दोबारा नहीं करना पड़ेगा।
यौन उत्पीड़न से जुड़े कानून पहले से भी ज़्यादा सख्ती के साथ लागू किये गए। यौन उत्पीड़न से जुडी ट्रेनिंग को सभी कर्मचारियों के लिए अनिवार्य कर दिया गया। मैंने इस तरह की कई ट्रेनिंग सेशन में इस सम्बन्ध में लोगों को जानकारी दी और उन्हें इस तरह की घटनाओं को उजागर करने के लिए प्रेरित किया।
जल्द ही फिर से लोग मेरे दोस्त बनने लगे और मुश्किल के इन पलों में मेरा समर्थन न करने के लिए उनमें से कुछ ने मुझसे माफ़ी भी मांगी। ऑफिस में काम करना फिर से सुखद हो गया और साथ ही सुरक्षित भी। और सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि मुझे एक बार फिर अपने शरीर पर गौरव हो चला।