24 साल की मीरा (परिवर्तित नाम), कानपुर से हैं और डाक्यूमेंट्री फिल्में बनाती हैं
अब तक मुझे इस बात पर गर्व था कि मेरे माता-पिता ने कभी भी मुझ पर शादी करने के लिए दबाव नहीं डाला थाI मेरे कई दोस्तों को अपने माता-पिता और रिश्तेदारों की ज़बरदस्ती के चलते मजबूरन शादी करनी पडी थी लेकिन मैं इस मामले में अपने आपको काफी खुशकिस्मत मानती थीI
मैं अभी जवान हूँ और रचनात्मक क्षेत्र में एक सफल कैरियर बनाने के लिए मेहनत कर रही हूँI मेरे माता-पिता ने सामाजिक अपेक्षाओं को नज़रअंदाज़ करते हुए, हमेशा मेरे लिए गए फैसलों में मेरा साथ दिया हैI लेकिन फ़ोन पर हुई एक सामान्य सी बात ने अचानक सब कुछ बदल दियाI
जैसे बम फटा हो
पिछले हफ्ते मेरी माँ ने मेरे हालचाल जानने के लिए मुझे फ़ोन कियाI वो अक्सर ऐसा करती हैं लेकिन इस बार बात कुछ अलग थीI वो मुझे बताना चाह रही थी कि मुझे लेकर मेरे परिवार में क्या बातें चल रही हैंIलेकिन उनकी बातें ऐसी थी जैसे मेरे सर पर बम फटा होI
उन्होंने मुझे बताया कि एक हफ्ते पहले मेरे पिता ने एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण मुद्दा उठायाI उनका कहना था कि मेरी उम्र की लड़कियों की या तो शादी हो चुकी है या वो उसकी तैयारी कर रही हैंI उनका यह भी मानना था कि मेरे अब तक अविवाहित रहने की ज़िम्मेदार मेरी माँ हैं I
विश्वासघात
यह जानकर कि मेरे माता-पिता मेरी पीठ पीछे मेरी शादी की बात कर रहे हैं, मेरा खून खौल उठा थाI मैं जानती हूँ कि मेरे पिता को अपनी रिटायरमेंट और मेरी शादी के खर्चे की भी चिंता थीI मैं यह भी समझती हूँ कि वो मेरा भला चाहते हैं लेकिन फिर भी यह एक विश्वासघात जैसा हैI
हमारे समाज में बहुत बदलाव हुए हैंI लेकिन आज भी हमारा समाज अपनी सोच हमारे ऊपर थोपता हैI हमारे समाज, खासकर हमारे बड़े बुज़ुर्गो को अपने ख्यालात आजकल की पीढ़ी के हिसाब से बदलने चाहिएI महिलाएं आत्मनिर्भर और सफल हो रही हैं और वो अपने फैसले खुद लेना चाहती हैंI वो शादी सिर्फ एक परंपरा या रीति-रिवाज़ निभाने के लिए नहीं बल्कि अपनी खुशी के लिए करना चाहती हैंI
दबाव से मुक्ति
मैं ऐसे कई लोगों को जानती हूँ जिन्हे शादी की कोई जल्दी नहीं हैI मेरे कई दोस्त सालों से एक दूसरे के साथ रह रहे हैं लेकिन फिर भी उन्होंने शादी करने के बारे में कभी गंभीरता से नहीं सोचाI मैं समझ नहीं पा रही थी कि मेरे माता-पिता को इतनी जल्दी क्यों हैI कहीं उनके लिए मैं एक बोझ तो नहीं बन गयी हूँ?
मैं समझती हूँ कि मैं खुशकिस्मत हूँ कि मैं अपने माता-पिता से अलग रहती हूँI अगर मैं उनके पास होती तो अब तक तो उन्होंने कई भावी दूल्हों और उनकी 'मेट्रिमोनियल प्रोफाइल्स' की लाइन लगा दी होतीI मुझे नहीं लगता कि तब भी मेरे लिए उनका दबाव झेल पाना इतना आसान होताI
फ़ोन रखने के बाद मैंने शांत दमाग से सोचा कि अब मुझे क्या करना हैI मुझे समझ आ रहा था कि मेरे माँ-बाप को यह सब करने के लिए समाज बाध्य कर रहा होगाI वो सामाजिक अपेक्षाओं के अनुरूप चलने की कोशिश कर रहे हैं क्यूंकि अगर उनके ऊपर यह दबाव नहीं होता तो वो मुझे अपनी ज़िंदगी अपने हिसाब से जीने देतेंI
थोड़ा सांस ले लूँ?
मैं शादी के खिलाफ नहीं हूँ लेकिन इस समय मुझे अपने आपको और अपने कैरियर को समय देना हैI मैंने अपनी माँ को साफ़ बोल दिया कि आगे से इस तरह की बातों को बढ़ावा देने की कोई ज़रूरत नहीं हैI मैं चाहती थी कि एक बार घर जाकर सबको बोल दूँ कि मेरे लिए फैसले लेने की कोई ज़रूरत नहीं हैI
लेकिन दुःख की बात यह है कि मैं अभी घर जाना ही नहीं चाहती और ना ही अपने माता पिता से मिलना चाहती हूँI मैं जानती हूँ कि हर कोई मेरे माता-पिता की बात को ही सही समझेगा लेकिन जहाँ तक मैं समझती हूँ, शादी एक व्यक्तिगत निर्णय होना चाहिए, हैं ना?