bois locker room incident
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'लड़को में ऐसा होता है'

द्वारा Arti Shukla मई 6, 07:11 बजे
दिल्ली के कुछ लड़को ने अपने इंस्टाग्राम ग्रुप पर लड़कियों के बारें में काफी अश्लील बातें करी थी जो कुछ सहपाठियो ने अब सोशल मीडिया पर लीक कर दी थी। यह खबर वैदेही के दिमाग से जा ही नहीं रही थी। 'पर लड़के ऐसा करते क्यों है?', वैदेही ने सिद्धार्थ से पूछा। 'अरे ये सब हँसी मज़ाक के लिए होता हैं। इसका मतलब ये थोड़ी ही कोई वाकई में ही ऐसा करता है!', सिद्धार्थ ने कहा। 'फिर दुनिया भर में फिर रेप और सेक्सुअल हर्रास्मेंट के इतने ज्यादा किस्से क्यों होते हैं?' 'कहीं तो नींव पड़ती होगी?'

*वैदेही, 38, एडिटर हैं और गुडगाँव में  रहतीं हैं

आज दिन का काम ख़त्म कर के जैसे ही न्यूज़ लगायी, तो देखा एक नयी हाय तौबा मची हुई थी।

पिछले एक महीने से चल रही कोरोना की खबरों से अलग, पर उतनी ही भयावह थी।

खबरों के अनुसार, दिल्ली के कुछ लड़को ने अपने इंस्टाग्राम ग्रुप पर लड़कियों के बारें में काफी अश्लील बातें करी थी जो की उन्ही के कुछ सहपाठियो ने अब सोशल मीडिया पर लीक कर दी थी।

उनमे से कुछ बातें पढ़ कर दिमाग एकदम भन्ना गया। कुछ लड़के किसी सहपाठी को लेकर रेप की बात कर रहे थे। आँखों को यकीन ही नहीं हुआ।

बातें आधी-अधूरी सी भी थी। उनको पढ़ कर ये नहीं कहा जा सकता था की किस सन्दर्भ में की गयी होंगी। या फिर उनका क्या मतलब था। मज़ाक था? या वाकई इतनी घृणा थी उनके मन में थी, जिन्होंने ये सब उस ग्रुप पर लिखा था।

अभी तो ये बात गले के नीचे भी नही उतरी थी की व्हाट्सएप ग्रुप पर एक और खबर आयी। गुडगाँव के एक लड़के ने बालकनी से कूद कर अपनी जान दे दी थी। उस व्हाट्सएप ग्रुप में सभी किशोर बच्चो के माँ बाप थे। सभी सहमे हुए एक दूसरे से पूछ रहे थे - क्या ये भी उस घटना से जुड़ा हुआ हैं? फिर किसी ने बोला, 'डाइरेक्ट लिंक तो नहीं है, पर इशू कुछ मिलता जुलता हैं।' फिर अगली लाइन में जो लिखा गया, उससे मेरे रोंगटे खड़े हो गए।

वो लड़का मेरी बेटी के स्कूल में ही पढता था।

अचानक ही लैपटॉप बंद कर के अपनी बेटी के पास गयी और बोली, 'बेटा, आप इंटरनेट पर सावधानी रखते हो न। कुछ भी सही न लगे तो मुझसे ज़रूर कहना।' ये कह कर मैंने उसे गले से लगा लिया। मेरी बेटी ने मुझे उसी नज़र से मुझे देखा जिससे बढ़ते बच्चे अपने माँ बांप को अक्सर देखते है, 'तुम्हे क्या हुआ मम्मा!' फिर शायद वह कुछ अनकही बात समझ गयी और बोली, 'हां मॉम, मैं पूरा ध्यान रखती हूँ। आप तो जानते हो।'

तभी दरवाज़े की घंटी बजी। सिद्धार्थ जब भी घर आते है - तो दो बार घंटी एक साथ बजाते हैं। और फ़ौरन मेरी बेटी और बडी (हमारा कुत्ता) कूद कर दरवाज़े तक पहुंच जाते हैं। दुनिया के बेस्ट पापा अक्सर कहलाये जाने वाले सिद्धार्थ को ये अटेंशन बहुत अच्छी लगती है। घर आते ही प्यार की बौछार। और आज तो बडी का जन्मदिन था। हम सब उसकी तैयारी में जुट गए। मेरे मन से यह खबरे किसी बुरे सपने के जैसे उतर गयी।

बडी की शान में एक छोटी सी दावत, केक और गुब्बारे बनाने और जुटाने में हमारा छोटा सा परिवार अगले कुछ घंटो के लिए बिज़ी हो गया।

दस बजे के बाद मैं और सिद्धार्थ अपनी रोज़ रात की सैर के लिए निकले।

रात की सैर हमारा व्हाट्सएप हैं। सिद्दार्थ के साथ दिन भर क्या हुआ - वह मुझे बताते हैं और मेरी दिनचर्या कैसे रही - मैं उन्हें बताती हूँ।

फ़ौरन ही वो बुरा सपना आँखों के सामने झूल गया।

'आपने वह खबर पढ़ी, सिद्धार्थ? बॉयज लॉकर रूम वाली? और उसके बाद ही गुड़गाँव के उस लड़के का सुसाइड...', ये कहते हुए मेरी आवाज़ भारी हो गयी।

'हां, मैंने पढ़ा. आज सब जगह यही खबर हैं। मैं सोच भी नहीं सकता उन सभी के माँ बाप पर क्या गुज़र रही होगी', सिद्धार्थ ने मेरा हाथ पकड़ते हुए कहा।

कुछ देर साथ चुपचाप चलने के बाद मैंने कहा, 'पर लड़के ऐसा करते क्यों है? कई व्हाट्सएप ग्रुप हैं जहाँ आपके कॉलेज के दोस्त क्या सब नहीं शेयर करते है', मैंने सिद्धार्थ की तरफ बिना देखे पूछा।

सिद्धार्थ ने मेरी तरफ मुड़ कर के कहा, 'इसका और उसका क्या कनेक्शन हैं? और वैसे भी ये सब हँसी मज़ाक के लिए होता हैं। इसका मतलब ये थोड़ी ही कोई वाकई में ही ऐसा सोचता या करता है!'
 
'हम्म्...हो सकता है, पर हम लड़कियों में अमूमन ऐसा कोई ग्रुप नहीं होता। दोस्तों के ग्रुप पर बस परिवार, बच्चों, करियर या ज़िंदगी को लेकर बातें होती है। हां ऐसा कोई ग्रुप नहीं होता जो खासकर इसी बात के लिए बना हो', मैंने कहा।

'तुम इस बात को बहुत गलत तरीके से ले रही हो। हां, माना ये लड़को में ज़्यादा होता हैं।। पर मेरे ग्रुप के सभी लड़को को तो तुम जानती हो। सभी का परिवार हैं, बच्चें है और सब ही जान छिड़कते हैं उन पर। ऐसी बातें बस मज़ाक में ही की जाती है', सिद्धार्थ ने मुझे समझाते हुए कहा।

'हां, हो सकता हैं, लड़कियों का मज़ाक अलग और लड़को का अलग', मैंने बोगेनविला के झाड़ की तरफ देखते हुए कहा।

'बस एक ही बात नहीं फिट होती।'

'कि फिर भर दुनिया में फिर रेप और सेक्सुअल हर्रास्मेंट के इतने ज्यादा किस्से क्यों होते हैं?'

'कहीं तो नींव पड़ती होगी?', मैंने पूछा।  

सिद्धार्थ ने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया। शायद कोई एक जवाब हैं भी नहीं। 

'हां ज़रूरी नहीं की हर इमारत कमज़ोर हुई हो', मैंने सिद्धार्थ की ओर देखते हुए कहा।

पोस्ट स्क्रिप्ट: लेख लिखने के बाद कई लोगो ने चेताया। जी हाँ 'गर्ल्स लाकर रूम' भी हैं।

सही भी है। हिंसक कुविचार जेंडर देख कर नहीं आते. यह बात #metoo मूवमेंट के टाइम भी बार बार उठी थी ।  

फिर भी हम तब ज़्यादा घबराते हैं जब हमारी लड़कियाँ अकेले बाहर हो?

कुछ तो प्रॉब्लम है न? ज्यादा या कम, ये चर्चा तो चलती रहेगी।

आशा हैं की जब समाधान निकले तो वह gender-neutral होंगे।

 

तस्वीर में व्यक्ति एक मॉडल है और नाम बदल दिए गए हैं।

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