रीना (परिवर्तित नाम) ने अपनी कहानी हमारे 'अंतरंग साथी द्वारा हिंसा' के ब्लॉगथोन के सन्दर्भ में सम्मिलित की।
शुरुवात मेरी आलोचना से हुई, मेरी पसंद नापसंद, मेरे कपडे पहनने का तरीका, मेरा मेकअप, और बहुत कुछ। मैं यह समझ ही नहीं पायी की ये सब उसका प्यार और परवाह नहीं, बल्कि मुझे नीचा दिखाना और जोड़ तोड़ था।
आत्महत्या की धमकी हमारी हर लड़ाई और बहस के दौरान एक आम बात बन गयी थी। उसने मुझे अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से बिलकुल अलग थलग कर दिया था और यह सुनिष्चित कर लिया था कि मैं मानसिक और भावनात्मक रूप से केवल उस पर निर्भर रहूँ। मेरी पहचान ही खो सी गयी थी। ये सब तमाशा दो साल तक चलता रहा और मैं खुद को समझाती रही कि शायद ये सब वो त्याग और समझौते हैं जो एक रिश्ते को चलाने के लिए ज़रूरी होते हैं।
पहला तमाचा
और फिर वो दिन आ गया। हमारी जमकर बहस हुई थी और मैंने हमारे दोस्तों के सामने उसे बुरा भला कह दिया। इस बात से वो काफी भड़क गया। जब हम अकेले थे तो उसने मुझे थप्पड़ मार दिया और कारण तो स्पष्ट था ही। आखिर लोगों के सामने मैंने उसे गाली देने की हिम्मत कैसे की!
मैं गुस्सा, दर्द और आश्चर्य के भाव एक साथ महसूस कर रही थी। "अगर मैंने तुम पर हाथ उठाया तो तुम भी हाथ उठा सकती हो," उसका कानून ये कहता था। अपने होश में वापस आने के बाद मैंने उसे वापस तो मारा, लेकिन जो थप्पड़ मुझे पड़ा था, उसके मुकाबले में ये कुछ नहीं था।
मेरे लिए ये इस सब का अंत था। मैं हिंसा नहीं सहूंगी। लेकिन कहना आसान था, करना नहीं। जब आप किसी भावनात्मक सनकी इंसान के साथ हों तो ऐसा ही होता है। प्यार और भावनात्मक ब्लैकमेल के इस खेल में इनसे कोई नहीं जीत सकता और उसने ये साबित कर दिया कि जो हुआ उसके लिए मैं ही ज़िम्मेदार थी। और मैं इस रिश्ते में रह गयी।
नकारात्मकता से दूरी
करीब 2-3 महीनों के बाद एक बहस के दौरान उसने एक बार फिर मुझे थप्पड़ मार दिया। अनगिनत माफियों और पश्चाताप के बाद ऐसा फिर से होगा, मैंने इसकी कभी भी कल्पना नहीं की थी। एक बार फ़िर, मैं रिश्ते में रह गयी। इस बार इसलिए क्योंकि उसने मुझे निकलने नहीं दिया। सुनने में मूर्खता लगेगी लेकिन मेरे अंदर इस तमाशे को झेलने का धीरज नहीं था,शायद इसलिये मैं खून का घूँट पी गयी।
मैं इस भयावह रिश्ते का बोझ एक साल से ढो रही थी। इस सबके बावजूद मैंने सब भूलकर सब कुछ सामान्य करने की कोशिश की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। सच ये है कि जीवन में नकारात्मक महसूस करवाने वाली किसी भी चीज़ को तुरंत निकाल फेंकना चाहिए।
इस घटना के बाद मैं उसके प्यार या उसकी माफ़ी पर फ़िर कभी भरोसा नहीं कर सकी। और उसका ये कहना सोने पर सुहागा था," एक थप्पड़ ही तो था, भूल जाओ उसे."
मैं यह रिश्ता खत्म करना चाहती थी क्यूंकि शायद उसे उसकी हिंसात्मक हरकतों की गंभीरता समझ ही नहीं आई थी और ना यह कि उसने मुझे कितनी तकलीफ पहुंचाई थी। मुझमें उसे समझाने की हिम्मत और धैर्य, दोनों ही नहीं बचे थे। दोस्तों के सहयोग और ढेर सारी हिम्मत जुटाने के बाद आखिर मैंने इस रिश्ते को ख़त्म कर दिया। इस बार उसने भी ज़्यादा कोशिश नहीं की, शायद वो समझ गया था कि मैं अब और सहने के लिए तैयार नहीं थी।
आपको अपनी आज़ादी और आत्मसम्मान के लिए ऐसा करना ही पड़ता है।
यह पोस्ट निजी साथी द्वारा की गयी हिंसा के खिलाफ हमारे अभियान के अंतर्गत चल रहे 'ब्लॉगाथन' का एक हिस्सा है #BearNoMore