क्या यह गलत है?
मान्या पुत्तर, मैं समझ सकती हूँ कि तू अबॉर्शन को लेकर इतनी परेशान क्यों है। यह बहुत सारे लोगों के लिए बहुत ही संवेदना से भरा विषय है। जब भी हम अबॉर्शन या गर्भ समापन का नाम सुनते हैं - हमारे मन में बहुत सारे नेगेटिव विचार और भावनायें आती हैं, जैसे 'किसी ज़िंदगी को ख़त्म करना पाप है ' या 'क्या भ्रूण/ फ़ीटस में धड़कन होती है।'
पुत्तर, इस परेशानी को बढ़ाने में साड्डे बॉलीवुड का भी बहुत बड़ा हाथ है! मीमी, क्या कहना, सलाम नमस्ते और बहुत सी ऐसी मूवीज़ जहाँ हीरोइन इमोशनल होकर चिल्लाती है 'मैं अपने बच्चे को नहीं मारूँगी!'
ज़्यादातर लोग इस बारे में बात ही नहीं करना चाहते क्योंकि उनके पास अबॉर्शन के विषय में पूरी और सही जानकारी नहीं होती। तुझे हैरानी होगी यह जानकर कि हम में से बहुत से लोग यह नहीं जानते हैं कि हमारे देश में अबॉर्शन को कानूनी मान्यता प्राप्त है। क्या तुझे यह पता था? अगर नहीं, तो चल मैं तुझे इसके बारे में और बताती हूँ, पुत्तर।
भारत में अबॉर्शन, जिसे मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ़ प्रेग्नैंसी भी कहा जाता है, हर स्त्री का कानूनी अधिकार है, और वह भी पिछले 50 साल से, यानि 1971 से। 2021 में इस कानून में और भी बदलाव किये गए हैं ताकि स्त्री के लिए अबॉर्शन का निर्णय लेना आसान हो।
आज, कोई भी स्त्री जो 18 वर्ष या उससे ज़्यादा की है, कुंवारी या विवाहित, गर्भावस्था के 20 हफ्ते/ 24 हफ्ते तक किसी भी प्राइवेट या सरकारी अस्पताल में अबॉर्शन करवा सकती है। उसे किसी से भी अनुमति लेने की ज़रुरत नहीं है- - हाँ, तू ने बिलकुल ठीक सुना पुत्तर! अपने साथी या माता -पिता से भी नहीं।
अब मुझे एक बात बताओ मान्या बेटा, अगर कोई भी चीज़ हमारे देश में लीगल है, मतलब उसको कानूनी मान्यता प्राप्त है, तो वह गलत कैसे हो सकती है? मुझे पूरा यकीन है कि हमारे देश के मेडिको -लीगल विशेषज्ञों (चिकित्सा-विधिकों) ने अबॉर्शन पर अच्छी तरह रिसर्च करके और उस पर विचार करके ही उसे कानूनी मान्यता दी होगी। वे ऐसी किसी भी चीज़ को अनुमति या कानूनी मान्यता कैसे प्रदान कर सकते हैं जो कि गलत हो?
तो फिर असल में गलत है क्या?
तुम्हे पता है कि गलत क्या है? लिंग के आधार पर अबॉर्शन। हम ज़्यादातर अबॉर्शन को लिंग के आधार पर किये जाने वाले अबॉर्शन से जोड़ लेते हैं। पहली स्थिति में गर्भ समापन करवाने से पहले बच्चे का लिंग नहीं देखा जाता। गर्भ समापन का कारण या तो गर्भनिरोधक का फेल होना या फिर कोई भ्रूण विसंगति (दोष) आदि हो सकता है।
जबकि, लिंग पर आधारित अबॉर्शन वह है जब आप बच्चे के लिंग के आधार पर गर्भ समापन करवाते हैं - भारत में अकसर लड़की होने की स्थिति में। आप कभी भी अल्ट्रासाउंड करवाने जाते हैं, तो आपको एक साइन हमेशा दिखता है जिस पर लिखा होता है, 'हम जन्म से पहले बच्चे की लिंग जांच नहीं करते। यह कानूनी अपराध है।'
तो मान्या पुत्तर, यह है गलत और कानूनी अपराध - लिंग के आधार पर अबॉर्शन।
चल,अब तेरे अगले सवाल पर आते हैं, जो मेरे बहुत से पाठक मुझसे पूछते हैं - क्या 'बच्चे' को कुछ महसूस होता है?
क्या 'बच्चे' को कुछ महसूस होता है?
पहली बात तो यह है पुत्तर जी, कि हम उसके लिए 'बच्चा ' शब्द का इस्तेमाल नहीं कर सकते, जिसका अभी जन्म ही नहीं हुआ हो। हम उसे भ्रूण (फ़ीटस) कहते हैं। जैसे एक स्त्री बच्चे के जन्म से पहले माँ नहीं बनती, उसी तरह भ्रूण भी पैदा होने से पहले बच्चा नहीं बनता। जब तक वह गर्भवती महिला के शरीर के अंदर होता है, उसे भ्रूण ही कहते हैं।
अब जबकि मैंने यह इतनी बड़ी ग़लतफहमी दूर कर दी है, तो चल अब मैं तेरे सवाल पर आती हूँ।
वैज्ञानिक और मेडिकल प्रमाणों से यह पता चलता है कि फ़ीटस को गर्भावस्था के शुरू के कुछ हफ़्तों तक कुछ भी महसूस नहीं होता, दर्द भी नहीं। मस्तिष्क का वह हिस्सा और नर्वस सिस्टम, जिसकी वजह से कुछ भी महसूस कर सकते हैं, दर्द भी, वह गर्भावस्था के 24 हफ़्तों के बाद विकसित होना शुरू होती है। इसीलिए ज़्यादातर देशों में अबॉर्शन कराने की अधिकतम सीमा 24 हफ्ते है।
हालाँकि, ज़्यादातर अबॉर्शन इससे काफी पहले हो जाते हैं। मेडिकल अबॉर्शन, जिसमें पिल्स से गर्भ को समाप्त किया जाता है, गर्भावस्था के 10 हफ्ते के अंदर ही हो जाता है। इस समय में भ्रूण एक मटर के दाने के बराबर होता है और उसे कुछ भी महसूस नहीं होता।
‘दिल की धड़कन’ का क्या?
अब तू पूछेगी, आंटी जी, अल्ट्रासाउंड के समय जो ‘दिल की धड़कन’ सुनाई देती है, तो वह क्या है ?
मान्या बेटा, हाँ एक ध्वनि सुनाई देती है। मैंने इस पर भी बहुत रिसर्च की है , पुत्तर जी और यह पता चला है कि असल में ‘धड़कन’ यहाँ इस्तेमाल करने के लिए सही शब्द नहीं है, क्योंकि डॉक्टर्स के अनुसार भ्रूण का ह्रदय छह हफ्ते की गर्भावस्था के समय पर विकसित नहीं हुआ होता है, तो हम अल्ट्रासाउंड के समय ‘धड़कन' कैसे सुन सकते हैं ?
वैज्ञानिक कहते हैं कि गर्भावस्था के शुरूआती हफ़्तों में अल्ट्रासाउंड के समय मापी जाने वाली गतिविधि असल में एक इलेक्ट्रिकल इम्पल्स होता है ना कि असली धड़कन। छह हफ्ते के जेस्टेशन में ह्रदय के वॉल्व नहीं होते हैं , इसलिए अल्ट्रासाउंड द्वारा पहचानी गयी ध्वनि उस जगह का इलेक्ट्रिक इम्पल्स या कम्पन होता है जो भविष्य में ह्रदय बनने वाला होता है।
और ऊपर से, सेल्स का वो समूह जो प्रेगनेंसी कहलाता हैं, उसे गर्भावस्था के आठवें हफ्ते के बाद ही भ्रूण कहते हैं। उससे पहले उसे एम्ब्र्यो ही माना जाता है। और इस चरण में, या फिर 24 हफ़्तों, तक भ्रूण के हृदय (या अन्य अंगों) के बनने में और बहुत विकास की ज़रुरत होती है। तो अगली बार जब कोई तुझसे कहे कि 'बच्चे' की 'हार्टबीट' है, तो उस पर यकीन ना करना। उन्हें वही ज्ञान देना जो मैं तुझे दे रही हूँ।
इस पूरे विज्ञान के ज्ञान के बाद, चल अब तेरे अगले प्रश्न का जवाब देती हूँ - क्या अबॉर्शन पाप है?
क्या अबॉर्शन एक 'पाप' है?
पुत्तर, सबसे पहले मैं रुझे एक बात बताना चाहती हूँ, मैं पाप (या पुण्य) में यकीन नहीं करती। मैं सिर्फ सही या गलत पर विश्वास करती हूँ।
मैं तेरे से एक बात कहना चाहती हूँ - बच्चे का जन्म शुभ मान कर हमारे देश में कितने धूमधाम से मनाया जाता हैं। हम भारतीय कितने तरह के रस्म रिवाज करते हैं - गोद भराई, नामकरण, बप्टिस्म आदि ) ताकि हम बच्चे के जन्म की ख़ुशी मना सकें, है ना? पर यह तो तभी हो सकता है, जब हम बच्चे के जन्म की उम्मीद कर रहे हों और शारीरिक , भावनात्मक और मानसिक रूप से और हम उसके जन्म के लिए तैयार हो।
पर अब एक ऐसी स्थिति की कल्पना करो जहाँ एक लड़की, जो कि उम्र में सिर्फ 18 या 19 साल की है, पढ़ रही है और भविष्य में एक अच्छी नौकरी के लिए खुद को तैयार कर रही है, गलती से गर्भनिरोधक के नाकाम होने की वजह से गर्भवती हो जाती है?
अब क्या वह बच्चे के जन्म के और अपनी गर्भावस्था की वजह से खुश होगी? क्या उसको अपने भविष्य, अपने कैरियर और बाकी सभी इच्छाओं का बलिदान दे देना चाहिए क्योंकि वह गर्भवती हो गयी है?
इस स्थिति में, गर्भवती होना एक गलती है और इस गर्भ को आगे बढ़ाना और भी बड़ी गलती होगी। यह तो सही नहीं होगा। है ना?
यदि विज्ञान ने अबॉर्शन के रूप में हमें इस तरह की स्थितियों का वैज्ञानिक और चिकित्सकीय समाधान दिया है, जो कि कानूनी रूप से भी वैध है, तो फिर क्यों नहीं? क्यों उसको पाप या अपराध जैसे शब्दों से दबाया जाये?
क्या किसी बच्चे को दुनिया में लाना और भी बड़ी गलती (या तेरे शब्दों में, और भी बड़ा 'पाप') नहीं हैं, जब उसके होने वाले माता-पिता उसके लिए आर्थिक ,भावनात्मक या मानसिक रूप से तैयार न हो?
तो इसलिए पुत्तर, सोच ज़रा और अगली बार जब कोई अबॉर्शन को 'पाप' या 'अपराध' कहने की कोशिश करे, तब तू उन्हें अपनी आंटीजी के पास जाने का रास्ता दिखा देना! या उससे भी अच्छा, इस लेख को उनके साथ शेयर कर कर देना।
गोपनीयता का ध्यान रखते हुए नाम बदल दिए गए हैं और फोटो में मॉडल् हैं।
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