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एचआईवी / एड्स के साथ एक स्वस्थ ज़िंदगी जीना

द्वारा Akshita Nagpal दिसंबर 31, 09:26 बजे
एचआईवी का अभी तक कोई इलाज नहीं है, लेकिन एक एचआईवी संक्रमित व्यक्ति समय पर एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी (एआरटी) लेकर एक लंबा और स्वस्थ जीवन जी सकता है।

एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी क्या है?

एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी (एआरटी) में एचआईवी संक्रमण के विकास को धीमा करने और इसे फैलने से रोकने के लिए दवाओं के संयोजन का इस्तेमाल किया जाता है जिससे अन्य लोगों में एचआईवी संक्रमण फैलने का ख़तरा कम हो जाता है।

एआरटी के माध्यम से संक्रमित व्यक्ति के रक्त और शरीर के तरल पदार्थों में वायरस की मात्रा को कम किया जाता है। दिल्ली स्थित राम मनोहर लोहिया अस्पताल के एआरटी सेंटर में मेडिकल ऑफिसर डॉ. प्रभु नारायण प्रसाद का कहना है कि यह ध्यान रखना चाहिए कि एचआईवी का अभी तक कोई इलाज नहीं है, हालांकि, 'एआरटी दवा से एचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति एचआईवी निगेटिव व्यक्तियों की तरह ही एक गुणवत्तापूर्ण जीवन जी सकते हैं और अपनी नौकरी सहित सभी काम कर सकते हैं।

भारत के एचआईवी / एड्स नियंत्रण कार्यक्रम का नेतृत्व करने वाली एक सरकारी शाखा, राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (नाको) के अनुसार, एचआईवी संक्रमण से पीड़ित प्रत्येक व्यक्ति को एआरटी पर रखा जाना चाहिए। संक्षेप में, एआरटी केवल एक दवा नहीं है बल्कि एचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति के स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखने के लिए एक पूरी प्रक्रिया है।

(गोलियों से एचआईवी की रोकथाम के बारे में जानना चाहते हैं - पीआरईपी और पीईपी, यहां जाएं।)

एआरटी कहां उपलब्ध कराया गया है

एआरटी निजी के साथ-साथ सरकारी चिकित्सा संस्थानों में प्रदान की जाती है। भारत में जिस तरह सरकार मुफ़्त एचआईवी परीक्षण की सुविधा प्रदान करती है वैसे ही यह भारत भर में 500 से अधिक एआरटी केंद्रों पर मुफ़्त में एआरटी भी प्रदान करती है। एआरटी केंद्रों की सूची यहां देखी जा सकती है।

यदि व्यक्ति का परीक्षण हो जाता है और सरकारी सुविधा में पॉजीटिव पाया जाता है जिसे इंटीग्रेटेड काउंसलिंग एंड टेस्टिंग सेंटर (आईसीटीसी) कहते हैं, तो उसे आईसीटीसी द्वारा सीधे एआरटी सेंटर भेजा जाता है।

आईसीटीसी आमतौर पर चिकित्सा संस्थानों वाले उन क्षेत्रों में स्थित होते हैं जहाँ अधिक ज़ोखिम वाले एचआईवी संक्रमित मरीजों, गर्भवती महिलाओं और टीबी रोगियों की संख्या अधिक होती है।

दिल्ली के किंग्सवे कैंप क्षेत्र में राजन बाबू इंस्टीट्यूट ऑफ पल्मोनरी मेडिसिन एंड ट्यूबरकुलोसिस के आईसीटीसी प्रभारी का कहना है, 'हम सभी टीबी रोगियों को एचआईवी परीक्षण कराने की सलाह देते हैं, और उन लोगों को भी एचआईवी परीक्षण कराने के लिए कहते हैं जो स्वेच्छा से परीक्षण के लिए आते हैं। '

आईसीटीसी से एआरटी सेंटर तक

परीक्षण में जो व्यक्ति एचआईवी पॉजीटिव पाये जाते हैं उनकी आईसीटीसी सेंटर में एक पोस्ट-टेस्ट काउंसलिंग होती है ताकि वे कोई भी कठिन उपाय ना आजमाएं और आगे के उपचार के तरीके को समझने में उन्हें मदद मिल सके। उन्हें किसी ऐसे एआरटी केंद्र से परामर्श और दिशानिर्देश प्रदान किया जाता है जिसके साथ वे जुड़ सकें या जहां मरीज को आने जाने में सुविधा हो।

दिल्ली स्थित साउथ दिल्ली में पंडित मदन मोहन मालवीय हॉस्पिटल में माइक्रोबायोलॉजी की विभाग प्रमुख (HOD) और आईसीटीसी की इनचार्ज डॉ. माला विनायक का कहना है कि 'अगर ज़रूरत हो तो आईसीटीसी के काउंसलर किसी व्यक्ति के साथ एआरटी सेंटर में भी जा सकते हैं। ऐसी स्थिति होने पर वे बता सकते हैं कि मरीज के पास एआरटी सेंटर में आने के लिए पैसे नहीं हैं या उस समय उन्हें भावनात्मक समर्थन की ज़रूरत है। 

वह कहती हैं कि एआरटी सेंटर में मरीज के साथ जाने का यह काम गैर सरकारी संगठनों द्वारा किया भी जाता है जो आईसीटीसी के सहयोग से काम करते हैं।

एआरटी सेंटर में क्या होता है?

एआरटी सेंटर में जिस व्यक्ति में एचआईवी पॉजिटिव पाया जाता है, उसमें कई अन्य संक्रमणों की जांच की जाती है जो एचआईवी पॉजिटिव लोगों में होने की संभावना होती है।

इनमें से कुछ संक्रमण टीबी, ओरल कैंडिडिआसिस, हेपेटाइटिस बी और सी, सिफलिस हैं। इन संक्रमणों की संभावना का पता लगाने के लिए टेस्ट किया जाता है, इसके अलावा टोटल ब्लड काउंट और किडनी एवं लिवर की कार्यप्रणाली जांचने के लिए भी टेस्ट किए जाते हैं। इन सभी परीक्षणों में लगभग 5 से 7 दिन लगते हैं, और ये परीक्षण सरकारी सुविधा पर निःशुल्क भी किए जाते हैं।

सभी टेस्ट की रिपोर्ट आने के बाद एआरटी केंद्र के चिकित्सा अधिकारी एचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति से उपचार के कोर्स के बारे में चर्चा करते हैं जिसके लिए मरीज को दो बार केंद्र आना पड़ता है। रोगी के मानसिक और सामाजिक परेशानियों पर परामर्श उसी एआरटी केंद्र में इस चिकित्सा प्रक्रिया की एक समानांतर प्रक्रिया है, जो ख़ास परामर्शदाताओं द्वारा की जाती है।

दिल्ली स्थित डॉ. राम मनोहर लोहिया हॉस्पिटल में एआरटी सेंटर के मेडिकल ऑफिसर डॉक्टर प्रभु नारायण प्रसाद कहते हैं कि, ‘यदि टीबी का संक्रमण मौज़ूद है तो टीबी की दवा तुरंत शुरू की जाती है और एचआईवी के लिए एआरटी दवा दो सप्ताह बाद शुरू की जाती है।’

यदि व्यक्ति टीबी के अलावा किसी अन्य संक्रमण से सह-संक्रमित है, तो उस संक्रमण का इलाज एआरटी के साथ ही शुरू किया जाता है। अगली बार सेंटर आने तक व्यक्ति को खुराक दी जाती है।

नाको के उप महानिदेशक डॉ. नरेश गोयल कहते हैं कि शुरूआत के छह महीनों तक मरीजों को हर महीने एक बार एआरटी आने के लिए कहा जाता है। लेकिन छह महीने बाद हर तीन महीने में एक बार आना होता है। हाल ही में संक्रमित व्यक्ति जो एआरटी दवा लेना शुरू करता है, उसे उपचार की पहली पंक्ति में रखा जाता है। व्यक्ति को एचआईवी संक्रमण के लिए प्रतिदिन 1 से 3 गोलियों का सेवन करने की सलाह दी जाती है जो दवाओं के संयोजन से बने होते हैं और यह दवा जीवन भर खानी पड़ती है।

चेन्नई में पॉजिटिव वीमेन नेटवर्क और एचआईवी पॉजिटिव महिलाओं की एक सामूहिक संस्था की संस्थापक सदस्य कौसल्या पेरियासमी एचआईवी पॉजिटिव व्यक्तियों को एआरटी से दी जाने वाली दवाओं के बारे में शोध और जानकारी प्राप्त करने की सलाह देती हैं। आप एआरटी केंद्रों पर चिकित्सा अधिकारी और परामर्शदाता से एवं नाको (नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन) की 24 घंटे की राष्ट्रीय हेल्पलाइन नंबर : 1097 पर कॉल करके इस विषय की पूरी जानकरी ले सकते हैं।

आगे का रास्ता

डॉ. प्रसाद ने दो पुस्तिकाएं रखी हैं- एक हरे रंग की और दूसरी सफेद रंग की। सफेद पुस्तिका में मरीज की व्यक्तिगत जानकारी होती है जैसे कि व्यक्तिगत विवरण और इस बारे में जानकारी कि उन्हें एचआईवी संक्रमण कैसे हुआ और एआरटी केंद्र के प्रत्येक परामर्श के विवरणों को सूचीबद्ध किया गया है। यह पुस्तिका एआरटी सेंटर में ही रखी जाती है।

रोगी हरी पुस्तिका अपने पास रखता है जिसमें चिकित्सा अधिकारी द्वारा मरीज को प्रत्येक बार दी जाने वाली दवाओं का विवरण दर्ज़ होता है। चिकित्सा अधिकारी हरी पुस्तिका में दर्ज़ विवरण और रोगी के पास दवा के शेष स्टॉक का मिलान करके यह भी देखते हैं कि मरीज ने नियमित दवा ली है या नहीं। डॉ. प्रसाद कहते हैं कि 'अगर वे नियमों का पालन नहीं करते हैं, तो उन्हें हम परामर्श देते हैं।

छह महीने बाद दोबारा से वही टेस्ट कराए जाते हैं और इसमें वायरल लोड और सीडी 4 टेस्ट भी शामिल हैं। बाद के दो टेस्ट को हर छह महीने में कराया जाता है।

डॉक्टर गोयल कहते हैं कि दवा बदलना आम बात नहीं है। यदि मरीज सभी नियमों का पालन करता है, तो वही उपचार 10 साल तक ज़ारी रह सकता है।' पेरियासामी कहती हैं कि "रात में नौकरी करने वाले लोग कुछ एआरटी ड्रग्स नहीं ले पाते हैं क्योंकि उन्हें रात में जगना पड़ता है और जो दवाएं रात में ली जाती हैं उनका सेवन करने के बाद चक्कर आता है।" "काउंसलर्स और डॉक्टरों को विकल्प प्रदान करने की आवश्यकता है ताकि ऐसे रोगी दवाओं को न छोड़ें।"

यदि एचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति दवा छोड़ देता है तो एचआईवी वायरस तेजी से बढ़ सकते हैं उनके स्वास्थ्य को प्रभावित करने के साथ ही उन्हें दूसरी या बाद में उपचार के तीसरे चरण में लाने की आवश्यकता बढ़ा सकते हैं। एचआईवी वायरस के बढ़ने से तुरंत संक्रमण भी बढ़ सकता है जो आमतौर पर मजबूत प्रतिरक्षा प्रणाली वाले व्यक्तियों में उत्पन्न नहीं होता है, लेकिन कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों जैसे टीबी, ओरल कैंडिडिआसिस, आदि मरीजों में पाया जाता है।

एआरटी थेरेपी के प्रभाव

एचआईवी/ एड्स (पीएलएसएएस) से पीड़ित व्यक्तियों पर इसके सकारात्मक प्रभावों के अलावा एटीआर दवा के कई दुष्प्रभाव भी पड़ते हैं। सबसे आम दुष्प्रभाव हैं चक्कर आना, पेट से जुड़ी समस्याएं, शरीर पर चकत्ते, मिचली आना आदि।

यह लीवर की कार्यक्षमता को भी प्रभावित कर सकता है और एआरटी दवा के अवांछित प्रभावों को दूर करने के लिए एक परामर्श प्रक्रिया की आवश्यकता पड़ सकती है।

डॉ.  प्रसाद कहते हैं, लेकिन इनमें से अधिकांश दो महीने में ही निपट जाते हैं।

पेरिआसामी एआरटी दवाओं से विशेषरुप से महिलाओं में होने वाली कुछ दीर्घकालिक दुष्प्रभाव के बारे में बताती हैं - गर्भाशय में सिस्ट, हड्डियों के घनत्व में कमी और वसा जमने के पैटर्न में परिवर्तन जो शरीर की गतिशीलता को प्रभावित करता है। 'महिलाओं पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों और उन पर नियंत्रण के लिए बहुत अधिक मेडिकल रिसर्च की आवश्यकता है।'

पेरियासामी कहती हैं, 'दवा के साथ हमें प्रोटीन युक्त आहार या कैल्शियम युक्त आहार लेने के लिए कहा जाता है - हमारे पास प्राकृतिक और समृद्ध आहार लेने के लिए पैसा होना चाहिए।' एआरटी से गुजरने वाले व्यक्ति के पास इस तरह के आहार के लिए पैसे नहीं होते हैं। इसके लिए पेरियासामी राज्य से आग्रह करती हैं कि वह टीबी रोगियों के लिए पोषण भत्ता की तर्ज पर पीएलएचए के लिए मासिक भोजन भत्ता बढ़ाकर पीएलएचए को सहयोग प्रदान करें। यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि एचआईवी एक बीमारी नहीं है बल्कि यह एक संक्रमण है जिसमें मरीज को नियमित रूप से दवा का सेवन करने की आवश्यकता होती है ठीक वैसे ही जैसे हम मधुमेह या थायराइड के लिए नियमित दवा लेते हैं।

क्या आप एचआईवी/एड्स या एसटीआई से संबंधित कोई सवाल पूछना चाहते हैं? हमारे चर्चा मंच पर एलएम विशेषज्ञों से पूछें। हमारा फेसबुक पेज चेक करना ना भूलें। 
 
 

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