abortion in bihar
Shutetrstock/yogendrasingh.in/तस्वीर में सरिता नहीं है, नाम बदल दिए गए हैं।  

'क्या तुम चाहती हो कि पूरे गांव को पता लग जाए?'

गांव में रहने वाली एक नाबालिग लड़की का उसके माता-पिता द्वारा बिना किसी डॉक्टर की देखरेख में जबरन गर्भपात करा दिया गया। अमूमन गांवों में रहने वाले लोगों को गर्भपात से जुड़ी जानकारी नहीं होती है। बिहार के ग्रामीण हिस्से में रहने वाली सरिता की उम्र 14 साल है, जिसे एक सरकारी अस्पताल में गर्भपात नहीं कराने दिया गया क्योंकि आशा दीदी का कहना था कि गर्भपात गैर-कानूनी प्रक्रिया है।

बिहार के ग्रामीण हिस्से में रहने वाली सरिता की उम्र 14 साल है। 

टीनएज वाला प्यार 

बिहार की रहने वाली 14 साल की सरिता एक बेहद आम लड़की थी, जिसे अपने दोस्तों के साथ स्कूल जाना और खेलना पसंद था। वह अपनी परिवार की सबसे छोटी सदस्य है और इसलिए उसे सब खूब प्यार करते थे। उसके बड़े भाई की हाल ही में शादी हुई है, इसलिए अब सरिता के परिवार में एक और सदस्य उसकी भाभी जुड़ गई हैं। शादी के समय ही सरिता अपने भाभी के भाई महेश से मिली, जो अकसर उसके घर आया करता था। 

महेश और सरिता को धीरे-धीरे एक दूसरे का साथ पसंद आने लगा और वे एक दूसरे के साथ ज्यादातर समय बिताने लगे। सरिता बहुत जल्दी किसी से भी दोस्ती कर लिया करती थी और उसे नए लोगों से बातें करना और मिलना बहुत अच्छा लगता था। किशोरावस्था होने के कारण सरिता महेश के प्रति आर्कषित होने लगे। हालांकि ये आर्कषण परस्पर था। इसके बाद महेश सरिता के घर पर ज्यादा समय बीताने लगा और धीरे-धीरे उन दोनों को ऐसा लगने लगा कि वे दोनों एक दूसरे को पसंद करते हैं। 

सेक्स हमारे प्यार को बढ़ाएगा 

जैसे-जैसे उन दोनों का रिश्ता गहरा होता गया, महेश ने सरिता को सेक्स करने के लिए कहना शुरु कर दिया क्योंकि महेश का मानना था कि सेक्स उनके रिश्ते को मजबूत बनाएगा। वहीं सरिता सुरक्षित सेक्स या गर्भावस्था जैसी बातों से कोसों दूर थी क्योंकि उसे इन चीजों के बारे में कुछ भी नहीं पता था लेकिन महेश के लिए सरिता कुछ भी करने को तैयार थी क्योंकि सरिता महेश से बहुत प्यार करती थी इसलिए सरिता महेश के साथ सेक्स करने के लिए राजी हो गई। एक दिन जब घर पर कोई नहीं था, तब उन दोनों ने एक दूसरे के साथ सेक्स कर लिया। 

इसके बाद उनका रिश्ता कुछ महीनों तक ही चला लेकिन सरिता को चार महीनों तक पीरियड्स नहीं हुए। साथ ही सरिता को कुछ अलग और अजीब-सा महसूस होने लगा लेकिन उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वो आखिर ये बातें किसके साथ शेयर करे। एक महीने के बाद सरिता के पेट का उभार दिखने लगा और सरिता की मां को सरिता के अंदर हो रहे बदलावों की भनक लग गई। सरिता की मां ने जब सरिता से इस बारे में बात करने की कोशिश की, तब सरिता ने कुछ भी कहना से इंकार कर दिया। वहीं महेश दोबारा गांव में अपनी परीक्षा देने वापस आया।

पीरियड्स का सच आया सामने 

सरिता के माता-पिता ने सरिता को बहुत डराया-धमकाया ताकि सरिता सच बता दे। सरिता अंदर से बिल्कुल टूट गई थी। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वो उन बातों को सबके सामने कैसे कहे कि महेश और उसके बीच क्या है और महेश ने उसके साथ क्या किया था? लेकिन आखिरकार सरिता ने सब सच बता दिया। सरिता की मां बहुत सहमी हुई थी और उन्होंने सरिता को थप्पड़ जड़ दिया। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वो इन बातों को किससे कहे क्योंकि गांव में ऐसा कोई नहीं था, जिसे इस बारे में बताया जा सके क्योंकि बदनामी होने का भी डर था।

सरिता की मां ने रोते हुए अपने पति को सबकुछ बता दिया। इस बीच सरिता की मां को एक शख्स का ख्याल आया, जिससे वो इन बातों को कह सकती थीं, जो आंगनवाड़ी में काम करने वाली आशा कार्यकर्ता थी। अपने साथ सरिता को लेकर वे आशा कार्यकर्ता के पास पहुंच गईं।

गैर-कानूनी और अनैतिक

सरिता की मां चाहती थी कि जितना जल्दी हो सके सरिता का गर्भपात करा दिया जाए। इस पर आशा दीदी ने उन्हें बताया कि सरकारी अस्पताल में गर्भपात कराना मुश्किल होगा क्योंकि सरिता अभी नाबालिग है और सरकारी अस्पताल में गर्भपात कराने पर पूरे गांव में बात फैल जाएगी।

क्या तुम चाहती हो कि ऐसा हो? इसलिए बेहतर है कि किसी प्राइवेट अस्पताल में गर्भपात करा दिया जाए। 

चूंकि वे एक ऐसी जगह पर रहते थे, जहां स्वास्थ्य से जुड़े बुनियादी अस्पताल या क्लीनिक नदारद थे इसलिए आशा दीदी की बात मानकर सरिता की मां ने प्राइवेट अस्पताल में ही सरिता का गर्भपात करा दिया, जहां उनसे हजारों रुपये लिए गए ताकि गर्भपात की बात को छुपाकर रखा जा सके क्योंकि सरिता की मां को ऐसा लग रहा था कि उसने गर्भपात करवा कर कोई गलत काम किया है। 

इसके बाद सरिता कभी बाहर दिखी ही नहीं। उसका स्कूल आना बंद करवा दिया और अब उसका ज्यादातर समय घर के काम करते बीत जाता है। यहां तक कि उसे पता ही नहीं है कि उसने क्या किया है? उसके शरीर के साथ क्या हुआ है? और क्यों सब उसे ही बुरा-भला कह रहे हैं?, और महेश बाहर घूम रहा है, उसे कोई कुछ नहीं कह रहा? आखिर क्यों सरिता इस दर्द को अकेले महसूस कर रही है?

संपादक की टिप्पणी: इस कहानी को चश्मदीद गवाहों के बताए गए बयानों के आधार पर संकलित किया गया है।  इसलिए सभी विवरणों की पुष्टि करना मुश्किल है। यह कहानी ग्लोबल डे फॉर सेफ अबॉर्शन 2022 के लिए ग्रामीण भारत में गर्भपात के अनुभवों का दस्तावेजीकरण करने वाली लव मैटर इंडिया की स्टोरी सीरिज का एक हिस्सा है। सरिता की कहानी से पता चलता है कि खतरनाक परिस्थितियों में प्रेगनेंट होने के कारण गर्भपात कराना कई महिलाओं की मजबूरी होती है। महिलाओं के लिए वैध विकल्प उपलब्ध होने के बावजूद भी उन सेवाओं तक उनकी पहुंच आसान नहीं होती है।

तस्वीर में सरिता नहीं है।नाम बदल दिए गए हैं।  

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