A wedding with no pundit, no kanyadaan
Love Matters India/Harsha

एक विवाह ऐसा भी : बिना पंडित और कन्यादान वाली शादी

द्वारा Kiran Rai जनवरी 28, 10:14 पूर्वान्ह
हर्षा बताती हैं कि उसके पिता की बदौलत किस तरह उनकी बहन की शादी उनके शहर में चर्चा का विषय बन गईI तो चाय की प्याली और रस लेकर इत्मिनान से बैठकर पढ़िए हर्षा की बहन की अनोखी शादी का यह किस्सा।

27 वर्षीय हर्षा दिल्ली हाई कोर्ट में वकील हैं और उनकी बहन निष्ठा एक डॉक्टर हैं।

आपका उद्देश्य क्या है?

मेरी माँ एक स्कूल टीचर थीं और अक्सर सुबह जल्दी घर से निकल जाती थीं। इसके बाद पापा मेरी और मेरी बड़ी बहन की देखभाल करते, हमारे लिए नाश्ता बनाते, टिफिन पैक करते और यहां तक कि हमारे बालों में कंघी भी करते थे।

मेरा बचपन बिहार के एक रूढ़िवादी और छोटे से शहर बक्सर में बीता। मैं बचपन से ही बहुत शरारती और चंचल स्वभाव की लड़की थी। घर के अंदर हम दोनों बहुत बेपरवाह थे और हमारे ऊपर किसी तरह की बंदिशें नहीं थी। हम दोनों बहनें सिर्फ़ अपने करियर पर ध्यान दे रहे थे। मेरे पापा एक सरकारी वकील थे और जब मेरे रिश्तेदार उनसे हमारे बारे में पूछते तो वे कहते कि मेरी बेटियों ने सिर्फ़ शादी करके बच्चे पैदा करने के लिए जन्म नहीं लिया है बल्कि उनके जीवन का एक उद्देश्य है और वे उसे पूरा करने में जुटी हैं।

और वो जब शादी करना चाहेंगी तो किसी भी जाति, वर्ग या लिंग के पार्टनर को चुनने के लिए स्वतंत्र होंगी। सच में, विश्वास नहीं हो रहा ना? लेकिन यह सच है। जब मेरी बहन, जो कि एक डॉक्टर है उसने जब शादी करने का फ़ैसला किया, तो मेरे माता-पिता ख़ुश हुए। जीजू और उनका पूरा परिवार हमारे जैसा ही खुले विचारों वाला था।

जरा हट के

जब मेरी बहन की शादी का दिन नज़दीक आया तो पापा ने समारोह से पहले कोर्ट में शादी का रजिस्ट्रेशन कराने का सुझाव दिया। उन्होंने शादी के लिए आर्य समाज मंदिर का चुनाव किया।

वह यह भी नहीं चाहते था कि कोई पंडित कर्मकांड करे। क्यों? क्योंकि वह कभी समझ नहीं पाये कि सिर्फ़ एक उच्च जाति के ब्राह्मण को ही विवाह कराने का अधिकार क्यों था? किसी और जाति के व्यक्ति को क्यों नहीं?

जीजू का परिवार मेरे पापा के फ़ैसले से बहुत प्रभावित हुआ। उन्होंने पुराने, अतार्किक रीति-रिवाजों को पीछे छोड़कर इस फ़ैसले का स्वागत किया। लेकिन हम देसी शादी के मजे लेने से चूकने वालों में से नहीं थे! संगीत, मेहंदी, हल्दी, शॉपिंग से लेकर, अपनी बहन की शादी में हमने खूब धमाल मचाया।

हम सभी चाहते थे कि दीदी अपनी शादी को जीवनभर याद रखे। पापा ने शादी के निमंत्रण कार्ड से सच में इसे ‘ख़ास’ बना दिया।


 

Wedding card
Love Matters India/Harsha

शादी वाला कार्ड

मुझे आज भी वह पल याद है जब हम सबने पहली बार शादी का कार्ड देखा। आमतौर पर ज़्यादातर कार्ड्स भगवान के आशीर्वाद की लाइनों से शुरू होते हैं, लेकिन इसके विपरीत मेरी बहन की शादी का कार्ड एक अनोखे शीर्षक से शुरू हुआ था-जाति दहेज मुक्त शादी।

कार्ड में उल्लेख किया गया था कि मेरे माता-पिता कन्यादान (लड़की को दूल्हे को देने वाले पिता की रस्म) नहीं करेंगे। कार्ड में यह भी कहा गया था कि हमारी बेटी कोई चीज़ नहीं है, जिसको हम दान दे दें।

कार्ड पढ़कर हमारी आँखों में आँसू आ गए। खुशी के आंसू। मुझे आज शायद पहली बार पिता की वो बात समझ आयी थी जब वो हमें बताया करते थे कि जीवन में कोई ना कोई उद्देशय होना चाहिएI मेरी बहन की बिना कन्यादान की शादी और अनूठा निमंत्रण कार्ड हमारे शहर बक्सर में कई महीनों तक चर्चा का विषय बना रहा।

यह सिर्फ़ मेरी दीदी के लिए ही नए जीवन की शुरुआत नहीं थी, बल्कि कई ऐसे मेहमानों के लिए भी थी, जिन्होंने इसके बारे में पहले कभी नहीं सोचा था! इससे अगर किसी भी पिता का अपनी बेटी के प्रति नज़रिया बदलता है, तो शेफ उनके जीवन का उद्देश्य भी सफल हो जाएI सच कहा ना?


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Comments
Bete agar dono ki shadi ho gayi ho toh bina talak ke dusri shadi karna gairkanuni hota hai. Ismein samasya ho sakti hai. Yadi aap is mudde par humse aur gehri charcha mein judna chahte hain to hamare discussion board “Just Poocho” mein zaroor shamil ho! https://lovematters.in/en/forum