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मुश्किल से हाथ आना: क्या यह काम करता है?

Submitted by Sarah Gehrke on शुक्र, 06/07/2013 - 05:48 बजे
वो पुरानी कहावत है ना - नखरे दिखाओ तो वो ज्यादा पीछे आयेगा। लेकिन यह 'मुश्किल से हाथ आना एक विकासमूलक योजना भी है, ऐसा एक हाल ही में किये गए शोध में पाया गया।

तीन दिन वाले नियम के बारे में सुना है? 'डेट पर जाने के बाद तीन दिन तक उसे फ़ोन मत करो।' और ये अक्सर हॉलीवुड और बॉलीवुड और मगज़िनो में भी अक्सर देखने को मिलता है। लेकिन क्या इसके पीछे भी कोई विज्ञानं है?

आवश्यकता अनुसार पूर्ती

हाल ही में की गयी रिसर्च के अनुसार 'मुश्किल से हाथ आने' वली नीति के पीछे दो कारण होते हैं। पहला, अपने आप को कम उपलब्ध दिखाने के पीछे वजह होती है अपने आप को ज्यादा मनोहर दिखाना। एक तरीके से यह अर्थव्यवस्था जैसा है: कम मात्रा में चीज़ें उपलब्ध करना, विलासिता की वस्तुएँ और बाकी की झूठ-मूठ वंचित सामान - यह सब भी तो इसी तर्ज पर काम करते हैं। और अगर आप अपनी कीमत बाधा देते हैं, तो शायद आपको "बेहतर साथी" मिल सकते हैं, ऐसा शोधकर्ता पीटर जोनसोन के कहना है।

दूसरा, प्रत्याशित साथियों के लिए चीज़ें ज्यादा आसान ना बनाना, मदद करता है यह पता लगाने में की वो रिश्ते में अपना कितना समय लगाने के लिए तैयार हैं, उनका कहना है। यह सिर्फ ज्यादा से ज्यादा जानकारी पाने का तरीका है।

"अगर आप अपनी जानकारी और बाधा सकते हैं - खासकर महिलाएं - तो आप बेहतर साथी ढूंढ़ सकते हैं। अब शायद ऐसा साथी नहीं चुनेंगे जो की आज आपके साथ है और कल शायद नहीं। और क्यूंकि अब पूर्ती कम कर देते हैं इसलिए ऐसे लोगों पर प्रभाव पड़ता है की वो अपनी ओर से ज़्यादा से ज़्यादा रूचि दिखाएं।

वचनबद्धता की परीक्षा

संक्षेप्त में, "मुश्किल से हाथ आना एक परीक्षा की तरह काम करता है: क्या यह लड़का और लड़की की जोड़ी जम पायेगी, या की यह सिर्फ कुछ दिनों का ही साथ होगा?" इस 'वचनबद्धता परीक्षा' के बारे में ज्यादा जानकारी के लिए, इस शोध में इस बारे में ज़ोर दिया गया की 'मुश्किल से हाथ आने' का आखिर असल मतलब है क्या। शोधकर्ताओं ने डेटिंग तरीको के ऊपर एक लिस्ट तैयार करी जिनका की लोग इस्तेमाल करते हैं अपने आप को 'कम उपलब्ध' दिखाने का - ऐसी चीज़ें जैसे की आप जिनमे रूचि रखते हों, उन्हें भी ऐसा दिखाने की कोशिश करना की आपको उनमें कोई रूचि नहीं, खुल कर दुरसों से फ्लर्ट करना, या उनके फ़ोन और मेसेज का देरी से जवाब देना।

ये तरकीबें पुरुषों की तुलना में महिलाएं ज्यादा इस्तेमाल करती हैं, हालाँकि दोनों में फर्क बहुत ज़्यादा नहीं है। और जब बात हुई उन कारणों की जिस वजह से लोग यह 'मुश्किल से हाथ आने' वाली तरकीब चलते हैं, तो उसमे भी पुरुषों और महिलाओं में कोई ख़ास फर्क नहीं था।

दोनों लिंग

जिन लोगों को यह लगता है की 'मुश्किल से हाथ आने वाली तरकीब' केवल महिलाओं की है, उन्हें यह जान कर अचंबा हुआ होगा की "महिलाओं की ही तरह पुरुषों को भी इस तरकीब के इस्तेमाल से बहुत फायदा होता है, ऐसा जोनसोन का मानना है। और दोनों ही लिंग "लाबी समय के फायदे और उससे निकलने वाले फायदे के बारे में भी बहुत सोचते हैं। इसलिए पुरुषों को भी बहुत मदद मिलती है अगर उन्हें महिलाओं के बारे में ज़्यादा से ज़्यादा जानकारी मिल जाये।"

एक सवाल यह रह जाता है: क्या आपको लगता है की यह 'मुश्किल से हाथ आने वाली तरकीबें' बहुत रुखा तरीका है? दुर्भाग्यवश, इस शोध में इस बात का पता नहीं लगाया गया। तो शायद सबसे अच्छा तरीका यही है की आप जैसे हैं वैसे ही रहिये!

आपकी इस 'मुश्किल से हाथ आने वली तरकीब के बारे में क्या ख्याल है। यहाँ लिखिए या फेसबुक पर हो रही चर्चा में हिस्सा लीजिये।