आलोचकों के अनुसार एक महिला के लिए इससे ज़्यादा निंदाजनक बात नहीं हो सकतीI
बहुत सी हिन्दुस्तानी महिलाओं के लिए त्वचा को गोरा बनाने वाले उत्पाद इस्तेमाल करना एक आम बात हैI जान कर आश्चर्य नहीं होता कि इनकी मांग हर साल 10 प्रतिशत बड़ जाती हैI इनसे जुड़े विज्ञापनों में सांवले और काले रंग को एक अभिशाप की तरह प्रस्तुत किया जाता है और शायद यही वजह है कि हमारे देश में कालेपन से छुटकारा पाने को अपनी त्वचा की देखभाल करने का एक अभिन्न अंग माना जाता हैI
मध्यमवर्गीय महिलाओं की आय में बढ़ोतरी के साथ-साथ उनके अपने आप को सुन्दर बनाने या रखने के खर्चे भी बढे हैंI पहले जहाँ यह महिलाएं सिर्फ़ कम खर्चीले साधनों जैसे क्रीम और स्क्रब तक ही सीमित थी वही आज के समय में यह लेज़र थेरेपी जैसे महंगे साधनों को भी अपनाने में संकोच नहीं करतीI
सौंदर्य या शक्ति?
इन उत्पादों के विज्ञापनों में इनके निर्माता गोरेपन को सुंदरता के साथ जोड़ते हैं लेकिन अधिकतर महिलाएं गोरेपन को सफलता और ख़ुशी का प्रतीक मानती हैंI
टाटा इंस्टिट्यूट फॉर सोशल साइंस की अंजलि मोंटेइरो के अनुसार यह बिलकुल हैंI उनका मानना है कि इसका सुंदरता से कोई लेना देना नहीं है क्यूंकि समाज उसी रूप को सुन्दर मानता है जो उसे सबसे ज़्यादा प्रभावशाली लगता हैI
भारत में पहली बार 1976 में हिन्दुस्तान यूनीलीवर ने गोरा करने की क्रीम बाजार में उतारा थाI लेकिन ऐसा नहीं है कि उससे पहले भारतीय महिलाएं गोरेपन को तवज्जो नहीं देती थीI उस समय भी भारतीय घरों में हल्दी-नीम्बू के लेप जैसे कई घरेलु और प्राकृतिक नुस्खे लोकप्रिय थेI
त्वचा के रंग को लेकर पागलपन
गोरी योनि का मुद्दा तो अब आया हैI लेकिन भारत में गोरेपन को लेकर पागलपन तो सदियों पुराना है और उसकी वजह है जातिवाद जो ब्रिटिश शासन के शुरू होने से कहीं पहले भारत में मौजूद थाI गोरे रंग का मतलब था आप मज़दूर वर्ग का हिस्सा नहीं हो और इसलिए आपको बाहर कड़ी धूप में मशक्क़त करने की कोई ज़रुरत नहीं हैI
ऐसा नहीं है कि यूरोप में गोरेपन को प्राथमिकता नहीं दी जातीI कुछ समय पहले तक वहां भी यही मानसिकता सामान्य समझी जाती थी लेकिन धीरे धीरे वहां भूरी त्वचा को फैशन माना जाने लगाI हालात कुछ ऐसे हो गए थे कि भूरी त्वचा के लिए लोग घंटो कड़ी धुप में अपने आप को जलाने के लिए भी तैयार थेI ऐसा शायद इसलिए हुआ था क्यूंकि जली हुई त्वचा को इस बात का प्रतीक समझा जाता था कि आप बेहद समृद्ध और धनाढ्य हैं और आप के पास इतना समय और पैसा है कि आप एक आकर्षक जगह पर छुट्टिया मना सकते हैंI
असुरक्षा
वैसे तो सांवली मॉडल्स भी अब हमारे देश की फैशन इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाने में सफल हो गयी हैं लेकिन यह कहना कि स्वदेशी रूप का प्रचलन शुरू हो गया एक भूल होगीI डॉ मोंटेइरो के अनुसार जाने अनजाने में अभी भी बहुत से भारतीय रंग के अनुसार किसी भी व्यक्ति का वर्गीकरण कर देते हैंI
जाती प्रथा की वजह से असमानता हमारे समाज में ठूंस-ठूंस कर घुसी हुई है और अभी भी रंग के आधार पर उच्चता और हीनता का दर्जा दिया जाता हैI शायद यही कारण है कि कई महिलाएं आज भी अपने रंग को लेकर असुरक्षित महसूस करती हैंI
योनि के बारे में और जानकारी के लिए हमारा वीडियो देखें
प्राकृतिक और गुणकारी
गोरेपन की तलाश आज इस मुकाम पर पहुँच गयी है कि महिलाओं को अपनी योनि के रंग को लेकर भी चिंता सताने लगी हैंI इंटरनेट पर सेक्स समस्याओं से जुड़ी कई गोष्ठियों में ऐसे सवाल अब आम हो गए हैं, "मेरी योनि का रंग मेरे शरीर के रंग से गहरा हैI क्या यह किसी तरह की कोई बीमारी है?"
एम्स्टर्डम मेडिकल सेंटर के त्वचाविशेषज्ञ हेंड्री डे व्रइस कहते हैं कि योनि के आसपास की त्वचा का रंग शरीर के बाकि हिस्सों से गहरा होना ना सिर्फ प्राकृतिक है बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा हैI
"त्वचा बहुत पतली और लचीली होती है इसलिए यह कभी-कभी अस्वाभाविक ढंग से काली नज़र आती हैI अगर इसको खींचा जाए तो इसका रंग साफ़ हो जायेगाI लेकिन शरीर के कई हिस्सों में जहाँ त्वचा का खिंचना संभव नहीं होता तो उसमे परतें जम जाती हैं जिससे वो काली प्रतीत होती है", समझाते हैं हेंड्रीI
संदिग्ध दावे
क्लीन एंड ड्राई नाम के एक उत्पादक के निर्माताओं का कहना है कि यह एक फफूंद-विरोधी क्रीम है जो आपके रंग में चमक लाती हैI डॉ डे व्रइस के अनुसार यह उत्पाद संदेहास्पद हैI
"जननांगो के लिए किसी भी तरह की क्रीम को इस्तेमाल करने का निर्देश देते हुए हमें बेहद सावधानी बरतनी पड़ती है क्यूंकि वहां कि त्वचा बेहद पतली होती है और उसे आसानी से नुकसान पहुँच सकता है"
प्रिय महिलाओं बात सिर्फ योनि के आसपास की त्वचा की नहीं हैI शिश्न की त्वचा भी पतली और खिंचावदार होती है जिससे कि शिश्न में तनाव उत्पन्न हो सकेंI इसीलिए वहां की त्वचा भी काली होती हैI तो इस बात की चिंता करने से पहले कि आपका बॉयफ्रेंड या पति आपकी योनि को देखकर क्या सोचेगा उसके जननांगो पर एक करीबी नज़र डाल लेंI
यह लेख सर्वप्रथम 23 मई 2012 को प्रकाशित हुआ थाI