आंटी जी कहती हैं... ओह्ह मेरे बच्चे....मुझे तुम दोनों को देख कर बहुत बुरा लग रहा है.. चल आजा, हम गर्भपात और इससे जुडी और बातों के बारे में बात करते हैं!
सबसे पहले यह बता कि तेरी गर्लफ्रेंड कैसी है? उसकी हालत में सुधार हो रहा है ना? मैं उम्मीद करती हूँ कि तुम दोनों ने एबॉर्शन के लिए एक सुरक्षित और पंजीकृत केंद्र चुना होगाI मैं समझ सकती हूँ कि यह तुम दोनों के लिए कितना मुश्किल समय हैI वैसे तुम दोनों अकेले नहीं हो, आजकल कई युवा ऐसी ही स्थिति में हैंI
निस्संदेह तुम दोनों अभी बच्चे के लिए तैयार नहीं होI तुम तो खुद ही बहत छोटे हो अभीI तुम्हे उससे पहले बहुत सारी चीज़े करनी हैं, जैसे शादी, जिससे कि तुम्हे समाज की स्वीकृति मिल सकेI इसके अलावा तुमसे और भी लोग जुड़े हैं जिन्हे तुम्हारी फ़िक्र होगी, जैसे तुम्हारे माता पिताI तो तुम दोनों ने जो भी किया एकदम सही किया है इसलिए अब प्लीज़ थोड़े रिलैक्स हो जाओI
यह लेख लव मैटर्स के उस अभियान का हिस्सा है जो कि गर्भपात से जुडी गलत धारणाओं को अंत करने के बारे में हैI #BustTheMyths अभियान 28th September WGNRR के साथ चलेगाI
दुगनी मुसीबत
एक बात जो मुझे हमेशा परेशान करती है वो यह कि क्यों हम अपने आप को कसूरवार मानते हैं या फिर कौन हमें दोषी ठहराता है? हमें अपनी करनी पर क्यों बुरा लगता है? कौन है वो गुस्ताख़? ऐसा क्या कर दिया? बेटा बात यह है कि हम पहले से ही अपराधबोध से ग्रस्त होते हैं क्यूंकि हमें लगता हैं कि शादी से पहले सेक्स करना गलत हैंI उसके बाद प्रेग्नेंट भी हो गए और अब एबॉर्शन? हम सोचने लगते हैं कि "हे भगवान यह मैंने क्या कर लिया, यह तो घोर पाप हैं"
इसमें कोई शक़ नहीं कि तुम दोनों को थोड़ा सचेत रहना चाहिए थाI गर्भनिरोधक का इस्तेमाल किया होता तो यह नौबत ही नहीं आतीI शायद तुमने सोचा ही नहीं कि ऐसा भी कुछ हो सकता है, बेटा सेक्स के बारे में लापरवाह होना अच्छी बात नहीं है। यह बच्चों का खेल नहीं है।
हमारे समाज में सेक्स, अंतरंगता और रिश्तों को इस नज़र से देखा जाता है जैसे इसमें कुछ गलत हो। खासकर जवान लड़के-लड़कियां तो इन बातों को लेकर इतने दबाव में रहते है कि उन्हें यही लगता रहता है कि "यह मैंने क्या किया"।
आगे तब बड़ो जब अपने पैरो पर खड़े हो सको
गर्भपात करवाते हुए किसी को खुशी नहीं हो रही होती। यह हर किसी के लिए एक मुश्किल निर्णय होता है। यह प्रक्रिया भी थोड़ी मुश्किल होती है शायद इसीलिए जवान लड़कियां इससे डरी होती है।
ऐसी निराशाजनक बातें करना तो अभी चीज़ों को और बदतर बना देगा,है ना? मेरे कहने का मतलब यह है कि हमें बच्चों के बारे में कब सोचना चाहिए? जब हम अपनी ज़िंदगी में अच्छी तरह स्थापित हो चुके हो और अपने साथी के साथ बेहद खुश हो या फ़िर यह हमसे हुई एक गलती की वजह से होना चाहिए? या फ़िर इसलिए क्योंकि हमारे समाज के अनुसार शादी होने के कुछ समय बाद एक औरत को माँ बन जाना चाहिए?
अब दस्सो कि हमें क्या करना चाहिए? एक योजना के साथ आगे बढ़ना चाहिए या फ़िर जैसे मन किया वैसे करना चाहिए?
अपनी अपनी पसंद
क्या तू जानता है कि भारत उन देशों में से है जहाँ गर्भपात संबंधी क़ानून पहले बनाये गए थे, 1971 में। तेरी पीढ़ी के लोग तो तब शायद पैदा भी नहीं हुए होंगे। इस बारे में कानून इसलिए बनाया गया था क्योंकि सरकार को लगा था कि इससे जनसँख्या को काबू में रखा जायेगा। हो गयी कंट्रोल? आज हमारे देश में 1.27 बिलियन लोग हैं....वाह वाह!
अच्छी बात यह है कि क़ानून तुम लोगों के साथ है। बच्चों को जन्म देते हुए यह ध्यान रखना चाहिए कि सारी परिस्थितियां अनुकूल हो, और यह निर्णय किसका होना चाहिए? उस व्यक्ति का जिसके जीवन पर और जिसके शरीर पर एक बच्चे के जन्म का सबसे गहरा असर पड़ता है। वो चाहे तो बाकी लोगों को भी इस निर्णय में शामिल कर सकती है, लेकिन अंतिम फैसला एक माँ का ही होना चाहिए। तो अब दोनों निश्चिन्त हो जाओ। खुश रहो और सावधान रहो। तुम दोनों, और आप लोग भी अपना ख्याल रखो।
यह लेख पहली बार 22 सितंबर, 2015 को प्रकाशित हुआ था।