25 वर्षीय रिचा (परिवर्तित नाम) विकास क्षेत्र में कार्यरत हैं है।
मेरे परिवार में मुझे मिलाकर कुल 5 लोग हैंI एक भाई, एक बहन, माँ-पिताजी और मैं। सभी को मेरा परिवार दुनियाँ का सबसे शान्ति पसंद परिवार लगता था क्यूंकि हमारे घर कभी किसी बात पर झगड़ा या कोई मतभेद होता ही नहीं था। दुनिया मैं कोई ऐसी जगह नहीं थी जो मुझे घर जितना सुकून दे सकेंI
मेरी माँ मुझे दुनियाँ की सबसे सुन्दर महिला लगती थी हालाँकि हर बच्चे के लिये उसकी माँ ही सबसे सुन्दर होती है लेकिन मेरी माँ वाकई बहुत सुन्दर थी। घुंघराले सुन्दर बाल, तीखे नैन-नक्श, गेहुँआ रंग, चेहरे पर तेज—जो पूरे दिन की थकान के बावजूद भी हमेशा बरकरार रहता थाI
मैंने कभी उन्हें साथ हँसते हुए नहीं देखा
लेकिन दिखने में मेरे पिता इसके बिलकुल विपरीत थेI दिखने में भी और स्वभाव में भी- वो हमेशा शांत रहते थे और लोगों से बेजड़ कम घुलते-मिलते थेI
मैंने कभी अपने माता पिता को झगड़ते या नोकझोक करते नहीं देखा था। शायद उसकी वजह थी कि पिताजी कभी भी माँ से किसी भी बात पर विचार-विमर्श ही नहीं करते थे और ना ही माँ उनके किसी भी फ़ैसले या काम में अपनी आपत्ति जताती थीं। दोनों ही बेहद शान्ति से अपनी दिनचर्या बिताते थे।
जैसे-जैसे मैं बड़ी हो रही थी मेरे माता-पिता के रिश्ते को देखकर मेरी बेचैनी भी बढ़ रही थी, खासकर जब मैं उनकी तुलना मेरी दोस्त रजनी के माता पिता से करती थीI उसके माता-पिता की तरह ना तो मेरे माता-पिता बाहर अकेले घूमने जाते थे, ना ही रजनी की माँ की तरह मेरी माँ मेरे पिता जी से किसी चीज़ के लिये जिद्द/नखरे करती थी और ना ही वो दोनों एक साथ जोरों से हँसते या प्यार भरी नोंकझोंक करते थे।
तेरी उम्र में तो मेरे शादी हो गयी थी
लेकिन माँ को रेडियो पर पुराने प्यार भरे नगमें सुनना बहुत पसंद था। टीवी पर राजेश खना और जितेंदर की फिल्मे देखना भी बहुत भाता था। जब उन्हें कभी तैयार होना होता था तो उनकी कोशिश रहती थी कि वे रेखा और श्रीदेवी की तरह दिखेंI लेकिन बाबा को फ़िल्मों का कोई शौक नहीं था और ना ही वो कभी माँ की तारीफ में कुछ कहते थेI माँ को भी शायद पिताजी से कोई ख़ास उम्मीद नहीं थीI
मुझे एहसास हो चला था कि माँ और पिताजी तो एक ही नदी के दो किनारों जैसे हैं जो एक साथ चल तो रहे हैं लेकिन साथ हैं नहींI
एक रोज़- शायद मैं नौंवी कक्षा में रहीँ होंगी- हमारी किसी बात से परेशान होकर मैंने माँ के मुंह से सुना “तेरी जितनी उम्र में तो मेरी शादी हो गई थी और एक बच्चे की माँ भी बन गई थी।
अपनी माँ की यह बात सुनकर मैं परेशान हो गयी थीI मुझे समझ ही नहीं आ रहा था कि 14 साल की उम्र में किसी की शादी कैसे हो सकती है? मैं सोचती थी कि मैं तो अभी भी स्कूल मैं हूँ तो जिस उम्र में माँ को पढ़ना चाहिए था, उस उम्र में उन्होंने शादी क्यों कर ली? यह सारे सवाल मुझे परेशान तो बहुत करते थे लेकिन मैं कभी भी इस बारे में माँ से बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पायी क्यूंकि हमारे घर में 'बेतुके' सवाल पूछना मना थाI उम्र बढ़ने के साथ सभी बच्चे अपनी-अपनी जिंदगी में आगे बढ़I मेरी भी शादी हो गयी थी- लव मैरिज- अपने माता-पिता की मर्ज़ी से और मैं भी अपने घर परिवार मैं व्यस्त हो गयीI
एक शाम मैं और मेरी बहन माँ के साथ हँसी मजाक कर रहे थे। अचानक ही मेरी छोटी बहन ने माँ से पूछ लिया कि "माँ क्या आप पिता जी को प्यार करती हो या अभी भी आपको राजेश खन्ना ही पसंद हैं?" उसके इस मज़ाक पर हम दोनों बहने तो खिलखिलाकर हंस पडी थी लेकिन माँ नहीं हसीं।
बल्कि वो बहुत संजीदा होते हुये बोलीं, “नहीं बिलकुल नहीं! हमें तो यही नहीं पता था कि प्यार होता क्या है। चौदह साल की उम्र में एक दिन पता चला कि कल हमारी शादी हैI अभी तक यही समझने की कोशिश कर रही थी कि शादी क्या होती है कि सोलह साल में पहला बच्चा भी हो गया होI उसके बाद की ज़िंदगी तो बस तुम दोनों और तुम्हारे पापा का ध्यान रखते-रखते ही निकल गयीI अब जहाँ तक प्यार की बात है तो हम तुम्हारे पापा की बहुत फ़िक्र करते हैं उनकी हर समय चिंता रहती है और शायद उन्हें भी हमारीI तभी तो एक पल बिना चैन लिये सबके लिये काम करते रहते हैं।“ अब इससे प्यार कह लो या कुछ और समझ लो, हमारी समझ में तो शादी होती है प्यार नहीं, यह कह कर माँ चुप हो गईं।
बचपन समझौतों भरा नहीं मुस्कुराहटों भरा होना चाहिए
मेरे और मेरी बहन के पैरों के नीचे जैसे ज़मीन निकल गई थी। जिस उम्र में हम दोनों के दिमाग में स्कूल और दोस्तों के अलावा कोई तीसरी चीज़ नहीं आती, उस उम्र में हमारे माता-पिता की शादी हो गयी थी, वो भी बिना प्यार, बिना किसी मर्ज़ी केI किसी अनजान के साथ बाल विवाह और फ़िर पूरी जिंदगी ऐसे चुपचाप ही दोनों ने एक साथ निकाल दी।
क्या मेरे माता पिता अपनी-अपनी मर्ज़ी से या फ़िर एक उम्र और सब चीज़ों की समझ होने पर शादी करते तो क्या तब भी उनकी ज़िंदगी ऐसी ही होती? बिना रोमांच और बिना प्यार वाली!
इसमें दोष किसका था? चौदह-पन्द्रह साल के बच्चों का या उस समाज का जो केवल पुरानी कुरूतियों के कारण मासूम बच्चों से उनका बचपन छीन कर उन्हें दूसरों की जिम्मेदारियां सँभालने के लिये आपस में बांध देते हैंI जैसे की किसी के आंगन में खुटें से गाय को बाँध दिया जाता है। मेरे पास इन सवालों के जवाब नहीं हैं I लेकिन मुझे खुशी है कि मेरे माता-पिता ने हमें ना सिर्फ़ तनाव मुक्त बचपन दिया बल्कि हमें हर उस जानकारी से अवगत करवाया जिससे हम इतने समर्थ हो सकें कि अपने जीवन के महत्त्वपूर्ण निर्णय खुद ले सकेंI
तस्वीर में एक मॉडल का इस्तेमाल किया गया है! यह लेख पहली बार 7 जून, 2017 को प्रकाशित हुआ था।
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