आंटी जी कहती हैं...ओह्ह हो सीमा बेटा, यह तो बहुत बुरी बात है! यह समय तो अपनी जीवन की इस नयी शुरुआत को लेकर खुश होने का है, मौज-मस्ती करने का है, लेकिन मुझे तो यह लग रहा है जैसे तेरे ऊपर ज्वालामुखी फटने वाला है!
कहना मुश्किल है
बेटा यह पक्के तौर पर तो नहीं कहा जा सकता कि उनकी नज़र दहेज़ पर है लेकिन हाँ, उनके इस व्यवहार को नज़रअंदाज़ भी नहीं किया जा सकता। अब ज़रूरी नहीं कि दहेज़ की मांग सीधे-सीधे एक लिस्ट हाथ में थमाकर की जाये। यह छल-कपट के ज़रिये सावधानी पूर्वक भी की जा सकती ही।
मैं समझ सकती हूँ कि तू इस समय अपने आपको बहुत छोटा और घबराया हुआ महसूस कर रही होगी और इससे तेरे इस घर में बनने वाले नए रिश्तों पर भी असर पड़ेगा। बड़े बेवकूफ़ लोग हैं वैसे! इनको यह किसने बताया है कि एक अच्छे रिश्ते के लिए शानो-शौकत वाली शादी और खूब सारे रुपयों की ज़रूरत होती है? मैं भी तेरी तरह ही हैरान हूँ।
ध्यान से कदम बढ़ाना
बेटा, अब तुझे बहुत ही सावधानी से काम लेना होगा, है ना? तुझे कुछ ऐसा करना है कि वो लोग तुझे परेशान करना भी बंद कर दें और उन्हें बुरा भी ना लगे। इसमें जो व्यक्ति तेरी सबसे ज़्यादा मदद कर सकता है वो है तेरा पति। क्या उसे इस सब के बारे में अंदेशा है? क्या वो भी सब कुछ अनदेखा कर रहा है? क्योंकि जब उनके रिश्तों की बागडोर उनके माता-पिता के हाथ में होती हैंतो अधिकतर पुरुष यही करते हैं।
आज भी, कई नाज़ुक मौक़ों पर मैं तेरे अंकल जी को नदारद पाती हूँ। अगर यह सब उसकी पीठ के पीछे हो रहा है तो तू अपने पति को बता कि तेरे घर में क्या बातें चल रही हैं और उनसे तुझ पर क्या बीत रही हैI ऐसे मत बताना कि उसे लगे कि तू शिकायत कर रही है बल्कि ऐसे बताना कि उसे लगे कि तू उसकी राय जानना चाह रही हैI अपनी बात ढंग से उसे समझाना। उससे यह ज़रूर पूछना कि क्या उसके घर वालों को तुझसे दहेज को लेकर कोई उम्मीदें थी? कुछ ऐसा जो उसे पता हो?
तू क्या सोचती है?
एक और बात जो बहुत महत्त्वपूर्ण है वो यह कि तेरा इस बारे में क्या मानना है? क्या तू भी यह सब मानती है? उम्मीद करती हूँ कि शादी-ब्याह में इस लेन-देन की प्रथा से तू सहमत नहीं होगी। ज़रूरी नहीं कि जो चीज़ सदियों से चली आ रही हो वो सही हो।
इस चलता है वाले नज़रिये की आदत मत डालना क्योंकि एक बार इसकी आदत पड़ जाए तो इसे छोड़ना मुश्किल हो सकता है।
सामजिक मान्यताओं के चोगे के अंदर अपनी मांगे मंगवाने का यह एक आसान तरीका है। दहेज देकर कोई भी अपनी बेटी का जीवन खुशियों से नहीं भर नहीं सकता। दो टूक बात में कहूँ तो उससे फायदे से ज़्यादा नुकसान होता है। तो सबसे पहले यह पता करो कि तू इस बारे में क्या सोचती है।
मुसीबत को बुलावा
दहेज लेना कानूनन जुर्म है। कई लड़कियां शादी के पहले ही दिन इसके ख़िलाफ़ शिकायत कर चुकी हैं और पुलिस को भी बुला चुकी हैं। दहेज पुराने ज़माने की उस सोच को बढ़ावा देती है जिसमें लड़कियों को किसी काबिल नहीं समझा जाता था। शायद इसलिए लड़कियों को खूब सारे तोहफों और रुपये पैसे से लाद कर ससुराल भेजा जाता था। उपहार सिर्फ़ अपने पति के लिए नहीं बल्कि पूरी ससुराल के लिये लाने होते थे और यह उसे सिर्फ़ एक बार नहीं बल्कि ज़िन्दगी भर के लिए करना होता था।
लड़कियों के पैदा होते ही उन्हें मार देने के पीछे यह एक मुख्य कारण था। शायद ऐसे लोगों का यह मानना होता है कि शादी के बाद इन लड़कियों पर हमारा समाज और उसके सास-ससुर जो दबाव डालेंगे उससे भी तो उसका जीवन नर्क ही हो जाएगा। तो क्यों ना पहले ही इसे मार देंI लेकिन कितनी घटिया और बेवकूफी भरी सोच है यह।
सभी लड़कियों से विनती
तुम्हे यह सब रोकना होगा बेटा। तुम्हे अपने माँ-बाप को समझाना होगा कि दहेज देना बंद करें। अपने ससुराल से आई किसी भी मांग, चाहे वो छोटी हो या बड़ी, को पूरा करने की जद्दोजहद छोड़नी होगी। इससे लड़ना सीखो और अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठाओ। तुम एक आदमी के जीवन का सबसे प्यारा तोहफ़ा हो, तुम्हे और उपहार लाने की ज़रुरत नहीं है।
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