आंटीजी कहती हैं, 'तो वह अधिकारों की बात कर रहा है ... लेकिन उसकी ज़िम्मेदारियों का क्या?'
जटिलता तो है
सुकन्या - पुरुष पारिभाषिक दृष्टि से सही हो सकता है, लेकिन अगर तू मुझसे पूछे तो मैं यही कहूंगी कि वह जो कह रहा है वह पूरी तरह से गलत है। भारत में और दुनिया भर के कई देशों में शादी का मतलब बिस्तर का लाइसेंस मिल जाना माना जाता है। लेकिन क्या यह ठीक है? नहीं बिलकुल नहीं!
इस्तेमाल करना और दुर्व्यवहार करना
तुम जानती हो बेटा, जब भी लोगों के पास कोई दूसरा तर्क नहीं होता है तो वे बस कानून का हवाला देना शुरू कर देते हैं, या वे जो भी थोड़ा बहुत वो जानते हैं उसी की रट लगाते हैं। लेकिन वे अक्सर भूल जाते हैं कि हर अधिकार एक ज़िम्मेदारी से ही मिलता है।
बेटा अगर हम शादी के दौरान लिए गए वचनों को याद करें तो पुरुषों को बहुत सारी जिम्मेदारियां निभानी पड़ती हैं- अपनी पत्नी का सम्मान करना उनमें से एक है। अब ये रोज़-रोज़ सेक्स की मांग करना, आपके ना चाहने के बावज़ूद - शायद ही यह पत्नी का सम्मान कहा जाता होगा, है कि नहीं? एक व्यक्ति, एक महिला और एक पत्नी के रूप में तुम्हारे प्रति उसका सम्मान कहां है?
यह बड़े अफ़सोस की बात है कि हमारा वह सज्जन पति ही कानून और संस्कृति का हवाला देते हुए कह रहा है कि ऐसा ही होता है। बहुत घिनौने बहाने हैं ये। किसी भी स्वस्थ रिश्ते में किसी को भी उसकी इच्छा के विरुद्ध तंग या मजबूर नहीं करना चाहिए। अब भला उसका क्या?
कानून का दूसरा पक्ष भी न्याय है। वह जो मांग रहा है क्या इसमें कोई न्याय है? शादी एक पार्टनरशिप है - मिलकियत नहीं। इसलिए जो कुछ भी होता है वह केवल दोनों पार्टनर की मर्ज़ी से ही हो सकता है।
पलट दे पासा
चलो कोई नहीं। अगर वह हक के बारे में बात कर रहा है, तो चलो हम भी ज़िम्मेदारी की बात करते हैं। उससे पूछो - यदि सेक्स मांगने पर तुम उसे सेक्स देती हो तो तुम्हारे मांगने पर बदले में वह क्या देगा - क्योंकि तुम उसकी पत्नी हो। तुम्हारे प्रति उसका भी दायित्व है। आओ कुछ उदाहरण देखें, जेट प्लेन के बारे में क्या ख्याल है? मंगल ग्रह की यात्रा कैसी रहेगी? फ्रांस में एक विला में ठहरने की फ़रमाइश? कर सकता है पूरी?
बेटा, दूसरे व्यक्ति से शादी करना, अपना अच्छा और बुरा समय उसके साथ बिताने का वादा करना, उसके साथ सब कुछ साझा करना - ये सभी शादी के वचन हैं जो हम सभी लेते हैं, लेते हैं कि नहीं? हम विश्वास और सम्मान देने का वादा करते हैं और बदले में वैसी ही उम्मीद करते हैं, है ना? हम अपने और अपने परिवार का जीवन बेहतर बनाने का वादा करते हैं - करते हैं कि नहीं?
तो फिर सेक्स कैसे मांगने और देने की चीज़ बन जाती है? यहां समानता कहां है? वह चाहता है कि वह जब कहे तब तुम सेक्स करो, है ना? लेकिन अगर वह तुम्हारे शरीर, तुम्हारी गरिमा और सम्मान को बनाए रखने के लिए अपने नैतिक कर्तव्य को पूरा नहीं कर सकता - तो तुम कैसे कर सकती हो? वैसे बेटा वो दिन भी दूर नहीं जब कानून भी शादी मतलब 24/7 सेक्स के लाइसेंस की अवधारणा के ख़िलाफ़ होगा।
आपसी समझ
सुकन्या बेटा, तुम इस मामले में क्या कर सकती हो? सोचो सुकन्या और फिर उससे बात करो। उसे समझाओ कि एक कमजोर कानून के दम पर अच्छा सेक्स नहीं पाया जा सकता- यह दोनों पार्टनर के प्यार, सम्मान और आपसी सहमति पर निर्भर होता है।
उसे बताओ कि तुम्हें सेक्स का आनंद तब आएगा जब तुम्हारी भी सेक्स करने की इच्छा होगी ना कि मजबूर होकर सेक्स करने से। इस तरह से वह भी बेहतर सेक्स का आनंद ले सकेगा। अक्सर पुरुष अपने दोस्तों और समूह के साथियों से सीखते हैं कि हक जताने वाला स्टाइल ही सेक्स पाने का एकमात्र तरीका है। उससे बात करने से ही उसे यह समझने में मदद मिलेगी कि सेक्स तब बेहतर होता है जब दोनों की बराबरी हो।
बेटा अगर इससे मदद नहीं मिलती है तो तुम किसी काउंसलर से बात कर सकती हो। अक्सर शादीशुदा जोड़े काउंसलर से अपने निज़ी मामलों पर चर्चा करने में थोड़ा झिझक महसूस करते हैं। लेकिन बेटा, चिंता मत करो।
काउंसलिंग अक्सर इन कुछ पेचीदा मुद्दों को सुलझाने में मदद करती है। यदि तुम्हारे शहर या पड़ोस में काउंसलर उपलब्ध नहीं है, तो परिवार के किसी ऐसे विश्वसनीय सदस्य को खोजो जो तुम्हें इस परेशानी से निकालने में मदद कर सके।
बेटा मैं तुम्हें अंतिम सलाह यही दूंगी। लड़कियां अक्सर मुझसे कहती हैं, ‘ बस एक ये ही बात है…. नहीं तो मेरे पति बहुत ही अच्छे हैं।’ लेकिन यह छोटी बात नहीं है, बस ये ही बात बहुत मायने रखती है बेटा सुकन्या। यही मुद्दे तुम्हारी शादी और तुम्हारे मूल्यों का आधार हैं।
यदि वह बात करने, सुनने, समझने या ख़ुद को बदलने के लिए तैयार नहीं है और लगातार तुम्हारा और तुम्हारे शरीर का अनादर करता है तो तुम्हें अपने रिश्ते पर फ़िर से सोचने की ज़रूरत होगी।
गोपनीयता बनाए रखने के लिए नाम बदल दिए गए हैं।
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