In our society only men are free
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हमारे समाज में केवल पुरुष ही 'स्वतंत्र' हैं 

द्वारा Kiran Rai अगस्त 20, 02:28 बजे
इस समय पूरे देश में आज़ादी की बातें चल रही हैंI ऐसे में जागृति को बार बार पिछले साल की वो बातें याद आ रही हैं जब उसे हर दिन उन लोगों के साथ लड़ना पड़ा था जो उसके सबसे करीब थेI वो मैटर्स इंडिया को बताती है कि आज़ादी केवल पुरुषों के लिए हैI महिलाओं के लिए तो पुरुषों ने हर कदम पर पाबंदिया लगाई हुई हैंI

जाग्रति 24 साल की हैं और दिल्ली में एक एन जी ओ में कार्यरत हैंI

मेरे परिवार में दो भाई और एक बहन थी। पापा मुझे बहुत प्यार करते थेI ऐसा मुझे लगता था क्यूंकि वो मुझे कभी अपनी नज़र से दूर होता देख ही नहीं सकते थे। गर्मियों की छुट्टी में मेरे भाइयों को रिश्तेदारों के घर जाने की आज़ादी थी। लेकिन मुझे सिर्फ़ घर के अन्दर ही रहना होता था- क्यूंकि मुझे मेरी मां से घरेलु कामकाज सीखने होते थेI वो कहते थे कि यही मेरे लिए अच्छा थाI

मेरे बहुत सारे दोस्त थेI होते भी कैसे, मेरे माता-पिता ने मुझे लंबे समय तक दोस्तों के साथ समय गुज़ारने की इजाज़त नहीं दी थीI दोस्तों के साथ क्या करोगी? और मुझे यही सवाल परेशान करता रहता कि अगर मेरा भाई यह सब कर सकता है, तो मैं क्यों नहीं कर सकती? लेकिन कुछ सालों बाद मुझे एहसास हुआ कि मेरे छोटे कंधों पर परिवार की इज़्ज़त का बोझ है जो मेरे भाइयों पर नहीं। अगर किसी की बुरी नज़र मुझ पर पड़ गई तो? अगर मैंने कोई ग़लत क़दम उठा उनका नाम ख़राब कर दिया तो?

मेरी हर समय यही कोशिश रहती थी कैसे भी करके पिताजी को खुद पर गर्व महसूस करवाना हैI मैं पूरी साल मेहनत करके हर बार अपने स्कूल में अपने भाइयों की तुलना में प्रथम आती, तो मेरे पिता बहुत उत्साहित होते थे। वह मेरे साथ अपने व्यापारिक मामलों पर चर्चा करते और मेरी सलाह लेते। यह सभी बातें मुझे अपने खुद के करियर बनाने सपना देखने की तरफ़ प्रेरित करते।

विकल्पों की कमी

मैंने बहुत अच्छे नम्बरों के साथ स्कूल पास कियाI मैं भविष्य की पढ़ाई दिल्ली के कॉलेजों में पूरी करना चाहती थी क्यूंकि दिल्ली विश्वविद्यालय में बी.ए की डिग्री मुझे सिविल सेवा परीक्षा में मदद करने में मदद करेगी। मैंने यह बात अपने पिता को बताई तो उन्होंने बिना अखबार से अपने नज़रें हटाए मुझे दो टूक जवाब दे डाला,  'हमारे परिवार में महिलाएं स्कूल से बाहर नहीं पढ़ती हैं। क्या करोगी आगे पढ़कर? आगे चलकर अपने पति का घर कैसे सुचारु रूप से चलना उस पर ध्यान लगाओI

मैं बहुत रोई और गिड़गिड़ाईI लेकिन पिता की कही बात हमारे घर में पत्थर की लकीर से भी मोटी और मज़बूत होती थीI मैंने अपनी मां और भाइयों से भी मदद मांगी लेकिन पिताजी के आगे मुंह खोलने की हिम्मत किसी में भी नहीं थीI धीरे धीरे धीर एडमिशन की लास्ट डेट भी निकल गयीI मुझे ऐसा लगा कि मेरा जीवन ही उजड़ गयाI मेरा तो खाना, पीना, सोना सब बंद हो चुका थाI

कई दिनों तक रोता देखने के बाद, शायद पिता जी को मेरी हालत पर तरस आ गयाI उन्होंने मुझे दो विकल्प दिए। मैं या तो घर पर बैठ सकती थी या राजस्थान के एक दूर-दराज गांव में लड़कियों के कॉलेज जा सकती थी। मैंने दिल पर पत्थर रख कर आगे पढ़ने के विकल्प को चुना।

उस कॉलेज में रहना एक दुःस्वप्न से कम नहीं था। कॉलेज में नियम शायद घर से भी ज्यादा कठोर थे। लड़कियों को कहीं भी बाहर जाने या किसी से मिलने की अनुमति नहीं थी। तेज गर्मी में, हमें खादी के कपड़े पहनने होते थे। पूरी कक्षा के लिए केवल एक शौचालय था और मुझे अभी भी याद है कि टॉयलेट  के लिए लाइन में खड़े होने के लिए मुझे सुबह 4 बजे उठना पड़ता था। मुझे नहीं लगता था कि मेरे पिता को ज़रा भी अंदाज़ा था कि उन्होंने मुझे किस हाल में रखा हैI मेरे ख्याल से इस ओर कभी उनका ध्यान भी नहीं गया था

क्या ऐसा होता है कॉलेज?

जिस जगह एक एक पल काटना दूभर था वहां मुझे तीन साल बिताने पड़े थेI मेरी हालत ऐसी हो गयी थी कि मुझे पढाई से ही नफ़रत हो गई। नतीजन मेरे ग्रेडस गिरने लगे। लेकिन मैं शांत रही। आखिरकार मेरे पास और चारा भी क्या था?

जब मेरी हिम्मत जवाब देने को होती तो मुझे अपनी माँ का ख्याल आता थाI उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी सिर्फ़ घर की रसोई में निकाल डाली थीI कोई भी दिन ऐसा नहीं गुज़रता था कि मेरी माँ को यह एहसास ना दिलाया जाए कि उनकी हेसियत क्या हैI मेरी पिता कई बार उन्हें 'याद दिलाते' थे कि उन्हें कभी अपनी असली जगह नहीं भूलनी चाहिये-नहीं तो मेरे पिता को एक मिनिट नहीं लगेगा उन्हें घर से बाहर का रास्ता दिखाने में। मेरी पास में ही मेरी चाची रहती थी, जिन्होंने एक लड़की को जन्म दिया थाI नेहा जो सिर्फ 5 साल की थी रोज़ मेरी चाचा जी से गालियां और जाली कटी सुनती थीI यह सब ध्यान में आता तो अपने आपको यह बोल कर समझा देती थी कि कम से कम, मुझे पढ़ने की अनुमति तो मिली हुई थी?

मैंने किसी तरह अपनी पढ़ाई पूरी की और घर वापिस आयी। तीन साल बाद घर वापस आते हुए मैं फूली नहीं समा रही थीI लेकिन यह ख़ुशी ज्यादा समय नहीं रुकीI मुझे जल्द ही एहसास हुआ कि पिताजी मुझे आगे की पढ़ाई के बारे में कतई सोचने नहीं देंगे। मुझे जल्द से जल्द रसोई का काम सीखना था क्यूंकि पिताजी ने मेरी हाथ पीले करना का बीड़ा उठा लिया थाI मैं जैसे पूरी तरह बिखर गई थी। उस घटिया कॉलेज में बिठाये वो संघर्षपूर्ण तीन साल बिताने के बाद भी जैसे मेरे हाथ कुछ भी नहीं आया था!

यह सब तो ठीक था लेकिन मुझे सबसे बड़ा झटका तब लगा जब मुझे पता चला कि मेरा भाई जिसने रोते-धोते, कई बार फ़ैल होकर जैसे तैसे स्कूल पूरा किया था, उसके पास होने पर मिठाइयां बांटी जा रही थीI उसके लिए गर्व से यह घोषणा की गई कि पिताजी उसे सिविल सेवा परीक्षा के लिए दिल्ली भेज रहे थे। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूँI मेरे आवारा, बदतमीज़ भाई को बिना मांगे और बिना कुछ मेहनत करे वो सब मिल रहा था जिसके लिए मैंने अपना पूरा बचपन दांव पर लगा दिया था और जिसके लिए मैं कई दिनों तक रोटी बिलखती अपने पिताजी से भीख मांगती रही थीI मैं दिल ही दिल रोती और ईश्वर से पूछती, 'मैं ऐसे समाज में क्यों पैदा हुई जहाँ आज़ादी सिर्फ़ और सिर्फ़ पुरुषों के लिए है?'

मनाही का दौर

और फिर एक दिन, मेरी मां ने मुझे साड़ी डालने के लिए कहा और मुझे घर पर आये कुछ मेहमानों के लिए नमकीन और चाय की ट्रे सौंप दी गई। यह कई बार हुआI शायद मेरे पिता को डर था कि मैं मना कर दूंगी या हो हल्ला मचाउंगी इसलिए मुझे केवल एक घंटे पहले आने वाले लोगों के बारे में बताया जाता था। मुझे ऐसा लगता जैसे मैं कोई वस्तु हूँ जिसे अच्छे से तैयार होकर लड़के और उसके घर वालों को हर तरह से ख़ुश करना है।

मुझे अपने ही घर में घबराहट महसूस होने लगी थीI एक मजबूत, आज़ाद औरत बनने का सपने बस खत्म होने को थाI मैं रात भर यही सोचती रहती कि मेरी बाकी की जिंदगी भी मेरी माँ और चाची की तरह रसोई में, पुरुषों की गालियाँ खाते हुये ही निकलेगी।

उम्मीद की किरण

मुझे एहसास हुआ कि ऐसे हाथ पर हाथ धर कर बैठने से कुछ नहीं होगाI मैंने अलग-अलग संगठनों, संस्थाओं में नौकरियों के लिए आवेदन करना शुरू कर दिया और एक दिन हैदराबाद से एक इंटरव्यू के लिए कॉल आया। मैंने अपने पिता से कहा कि मैं शादी के लिए तैयार हूँ लेकिन जब तक ऐसा नहीं हो रहा है मुझे काम करने की इजाज़त मिलनी चाहिये। मुझे उम्मीद तो कम ही थी लेकिन कुछ दिन सोचने के बाद मेरे पिताजी ने इजाज़त दे दी, शायद इसीलिए क्यूंकि वो अभी तक कहीं भी मेरा रिश्ता पक्का नहीं कर पाए थेI अगले दिन निकलना था और उस रात मैं मुश्किल से ही सो पायी थीI मुझे पता था कि मैं फिर कभी घर नहीं आउंगी। मैंने अपनी माँ को अलविदा कर उनके माथे पर एक चुम्बन दिया और आँखों में आसूं के साथ उनके गले लग गई। आखिरकार, इस नौकरी के बहाने पर, मैंने उस घर को हमेशा के लिए छोड़ दिया।

संघर्ष की शुरुआत

उसके बाद का समय आसान नहीं था क्यूंकि हमेशा पैसे की तंगी रहती थीI लेकिन मैंने ठान लिया था कि मैं वापस घर नहीं जाउंगीI आखिरकार मेरी मेहनत रंग लायी और मुझे एक ऐसे संगठन में नौकरी मिली जो मानवाधिकारों पर काम करती थी और युवा लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाने में मदद करती थी। यह नौकरी ना सिर्फ मेरे दिल के क़रीब थी बल्कि मेरी तनख्वाह भी अच्छी थीI अब महीना काटने के लिए मुझे अपने दोस्तों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता था।

मेरा परिवार बार-बार मुझे घर लौटने के लिए कह रहा था। मेरे पिता ने मेरी माँ के साथ मुझे घर वापस लाने के लिए बहुत सी धमकियाँ दी। लेकिन मैं इस बार अकेली नहीं थीI मुझे अपने संगठन का समर्थन मिला हुआ था। एक संस्था की उपस्थिति में मैंने अपने माता-पिता के साथ एक मुलाकात की क्योंकि मुझे डर था कि मेरे पिता मुझे किसी भी तरह दवाब के साथ वापिस ले जायेंगे।

मेरे पिता की आवाज़ में कोई कोई उदासी नहीं थी उन्होंने मेरी माँ को जान से मरने की धमकी दी। मैं कमज़ोर पड़ गई और एक पल के लिए लगा कि माँ को ज़ोर से गले लगा लूँ, ना जाने मेरी वजह से उन पर क्या-क्या ज़ुल्म हो रहे हों। लेकिन अगले ही पल मुझे असलियत का एहसास हो गया थाI मुझे पता था कि अगर मैं वापस गयी तो इस बार मेरी शादी किसी से भी करवा दी जायेगी-और मेरी क़िस्मत के दरवाज़े बंद कर दिए जायेंगे। मैंने जब मज़बूती से मना किया तो मेरे माता-पिता के पास वापस लोट जाने के अलावा कोई और रास्त्ता नहीं था।

आज़ाद? शायद नहीं!

आज, एक आज़ाद महिला के रूप में, मुझे घर छोड़ने के फैसले पर कोई दुःख नहीं है। मैं अपनी जिंदगी जीने के लिए आज़ाद हूं। मैं ज़बरदस्ती शादी करवा देने और किसी और की शर्तों पर ज़िंदगी जीने के डर से आज़ाद हूँ।

हालांकि, अपने अस्तित्व की लड़ाई में (या जीने) में मुझे अपना आईएएस बनने का अपना सपना छोड़ना पड़ा। लेकिन मुझे कोई पछतावा नहीं है। मैं जो काम कर रही हूँ इससे बहुत ही ख़ुश हूँ आखिर इससे मैं और लड़कियों को आने वाले कल के लिए तैयार कर रही हूँ।

आज, जब मैं अपने छोटे किराए के फ्लैट की बालकनी के बाहर देखती हूँ, हर कोई स्वतंत्रता दिवस की तैयारी कर रहा है। लेकिन सोचती हूँ। क्या भारत में महिलायें सच में आज़ाद हैं? असल में, भारत को 70 साल पहले अंग्रेजों से आजादी मिल तो गई , लेकिन महिलाएं अभी भी पुरुषों द्वारा तय किये गये नियमों और पुरुषों द्वारा दिए गए आदेशों को आँख बंद कर पूरा करती रहती हैं। और हाँ जो कुछ भी आज़ादी मैंने हासिल की है, उसे हासिल करने के लिए, मेरे पास जो कुछ भी था उस सबको मुझे दांव पर लगाना पड़ा! मैं आज अकेली हूँ। लेकिन मैं आज़ाद हूँ। और मैं इस कड़ी मेहनत से मिली आज़ादी को बचाने के लिए मैं जो बन पाया करुँगी।    


*गोपनीयता बनाये रखने के लिए नाम बदल दिए गए हैं और तस्वीर में मॉडल का इस्तेमाल हुआ है  

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Comments
Ye ladki sahi hai.ajj samaj mein purushpradhan sanskriti hai.ladka love marriage kare to chalega agar ladki love marriage kare to khandan ka nam kharab ho jata hai.ladkiyo KO apna decision lena ka freedom nahi hai. Kya khandan ki ,ijjat parampara ,jatiyata yahi jaruri hai?.bacho ki khushi nahi
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