वो 'गुप्त' यात्रा
हम लोग बिहार के अमीर परिवारों में से हैं और मैं अपनी स्नातकोत्तर की पढ़ाई दिल्ली में पूरी कर रहा थाI मुझे दिल्ली में रहते हुए एक साल हो गया था जब मेरे पिताजी ने मुझे एक हफ़्ते की छुट्टी लेकर घर लौटने को कहाI हमारे परिवार में मेरे पिता के आदेशों की अवहेलना करने की हिम्मत कोई नहीं कर सकता था, इसलिए मैंने अगली टिकट बुक की और घर के लिए प्रस्थान कर गयाI
मैं जब घर पहुंचा तो सुबह के सात बज रहे थेI मेरे पिताजी और बड़े भाई ने मुझे नौ बजे तक तैयार हो जाने के लिए कहाI मुझे कहा गया कि 'ढंग के कपडे' पहनने हैं क्यूंकि हम लोगों को किसी के घर जाना हैI इसके अलावा मुझे कोई भी कुछ और नहीं बता रहा थाI बड़े भाई से पूछा तो उन्होंने भी बात टाल दी और पिताजी से पूछने की हिम्मत तो मैं सपने में भी नहीं कर सकता थाI
पता नहीं क्या चल रहा था
मुझे बिलकुल अंदाज़ा नहीं था की हम लोग कहाँ जा रहे थेI मैं पीछे वाली सीट पर, पिताजी के साथ बैठा हुआ थाI गाड़ी के अंदर एक अजीब सा सन्नाटा छाया हुआ थाI लगभग एक घंटे के बाद हमारी गाड़ी एक मध्यवर्गीय परिवार के घर के सामने रुकीI
घर के प्रवेश करने पर मुझे एहसास हो गया था कि वे लोग हमारा ही इंतज़ार कर रहे थे क्यूंकि हमें देखकर कोई भी आश्चर्यचकित नहीं हुआ थाI उलटा वहां तो हर कोई हमारी आवभगत में लगा हुआ थाI वैसे तो सभी का स्वागत हो रहा था लेकिन मुझ पर कुछ ख़ास ध्यान दिया जा रहा थाI कुछ लोग मुझे देखकर एक दूसरे के कानों में फुसफुसाहट भी कर रहे थेI कहीं मैं दिखने में कार्टून तो नहीं लग रहा था?
कुछ ही देर में खाना लग गया था - समोसे, पकोड़े, मिठाइयां और कोल्ड ड्रिंकI मैं थका हुआ था और ज़ोरों की भूख भी लग रही थीI अपने मन में उछलते सवालों को नज़रअंदाज़ कर मैंने पेट में उछलते चूहों के बारे में सोचा और खाने पर टूट गयाI एक आदमी, जो परिवार का मुखिया लग रहा था, बार-बार मुझसे मेरी पढाई लिखाई और भविष्य की योजनाओं के बारे में सवाल कर रहा थाI मैंने कनखियों से भाई की ओर देखकर पूछना चाहा कि यह सब चल क्या रहा है!
बड़ा खुलासा
"हम तेरे लिए लड़की देखने के लिए आये हैं" मेरे भाई ने मेरे कान में फुसगसा कर कहाI मेरे मन में तरह-तरह की भावनाओं का सैलाब आ रहा थाI आश्चर्य और सदमा उनमे प्रमुख थी लेकिन सबसे ज़्यादा तो मुझे गुस्सा आ रहा थाI मैंने अपने पिताजी की ओर देखा तो वो समोसे खाने और अपने काम-काज की बड़ाइयाँ करने में व्यस्त थेI
'आप मेरे बारे में इतना बड़ा फैसला मुझे बिना बताये कैसे ले सकते हैं?', मैंने दबी हुई लेकिन गुस्से वाली आवाज़ में अपने पिताजी से पूछाI उन्होंने मुझे चुप रहने का इशारा कियाI मन तो मेरा गुस्से से फटने को हो रहा था लेकिन उस समय चुप रहने के अलावा कोई और बेहतर विकल्प नज़र नहीं आ रहा थाI
अभी मैं अपने अंदर आये भूचाल और इस स्थिति से बाहर निकलने के बारे में सोच ही रहा था कि कमरे के अंदर एक युवा और संकोची सी दिखने वाली लड़की ने प्रवेश कियाI उसकी माँ भी उसके साथ थीI उसके हाथ में चाय के कपों से भरी हुई एक ट्रे थी जो उसने सबके सामने मेज़ के बीच में रख दीI
पूछताछ
कुछ तो गलत हो रहा थाI मेरे मन के अंदर सवालों की खिचड़ी पक रही थी लेकिन तभी मेरा ध्यान मेरे पिताजी की और गया जो उस लड़की से पूछ रहे थे कि क्या उसे खिचड़ी बनाना मेरा मतलब खाना बनाना आता हैI वो यह भी जानना चाह रहे थे कि उसे घर के काम-काज आते हैं या नहींI
मेरे पिता ने उसके बाद उस लड़की से चल के दिखाने को कहाI वो देखना चाहते थे कि उसके शरीर में किसी प्रकार की कोई विकलांगता तो नहीं हैI मैं शर्म के मारे चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहता था! यह साफ़ था की लड़की को ऐसे 'चल के दिखाने' में झिझक महसूस हो रही थी लेकिन 'लड़के के पिता' के हुक्म की अवहेलना कैसे की जा सकती थीI एक बार लड़की के 'शरीर और आचरण' से संतुष्ट होने के बाद पिताजी ने उस लड़की के पिता की ओर रुख करते हुए पूछा कि क्या उन्होंने उनकी 'मांगों' का ख्याल रखा है? उत्तर में लड़की के पिता ने अपने दोनों हाथ जोड़ कर अपना सर हिलाते हुए सहमति दिखाईI
मेरे लिए यह सब अब असहनीय हो चला था मुझे यह भी एहसास हो रहा था कि लड़की बहुत छोटी है और निश्चित रूप से शादी के लिए तैयार नहीं हैI मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँi इसी उधेड़बुन में अचानक मैंने लड़की से उसका नाम पूछ लियाI मेरे ऐसे एकदम से लड़की से सवाल करने से सब सकते में आ गए थेI सब अपनी बातें बीच में छोड़कर मेरी तरफ़ देखने लग गए थेI लेकिन शायद पिताजी को मेरे यह 'हिमाकत' अच्छी लगी थीI उन्होंने मुझसे कहा कि मैं जो चाहे वो पूछ सकता हूँI
लड़की की मां ने मुझसे कहा कि उसकी बेटी का नाम सीमा है। मैंने उनसे पूछा कि उनकी लड़की कहाँ तक पढ़ी हैI मेरे इस सवाल ने शायद सीमा के पिता को हैरान कर दिया था क्यूंकि अब जवाब देने की बारी उनकी थीI "वह घर के सभी काम कर लेती है, पढ़ाई लिखाई करने से क्या होगा?" मेरा अगला सवाल लड़की की उम्र को लेकर थाI "सीमा कितने साल की है?" अब सब चुप हो गए थे, मेरे बातूनी पिताजी भीI लड़की की मां ने बात संभालते हुए कहा , 'अरे बेटा लड़की से उसकी उमर नहीं पूछी जाती'I उनकी बात सुनकर सभी हंसने लगे थेI लेकिन यह हंसी दिल खोल कर हंसने वाली नहीं थीI यह हंसी थी घबराहट भरी!
यही किस्मत है
मुझे अबतक पूरा विश्वास हो गया था कि सीमा की उम्र शादी लायक नहीं थी लेकिन मैं यह बात उसके मुंह से सुनना चाहता थाI इसलिए मैंने अपने पिता और भाई से कहा कि मैं सीमा से अकेले में बात करना चाहता हूं। लंबे समय तक सोच विचार करने के बाद मुझे उसकी बहन की उपस्थिति में सीमा से बात करने की इजाज़त मिल गयी थीI
मैं उसे डराना नहीं चाहता था इसलिए मैंने शुरू में उसे अपने बारे में बताना शुरू कियाI फ़िर मैंने उससे उसकी सही उम्र बताने को कहाI उसने कहा कि वो अगले महीने 14 की हो जाएगीI यह बात सुनकर मैं भोचक्का रह गया थाI मैंने उससे पूछा कि क्या वो शादी के मायने समझती है और क्या वो शादी के लिए तैयार हैI मुझे लगा था कि वो बोलेगी नहीं लेकिन उसने जवाब में हाँ कहा और कहते हुए काफ़ी भावुक भी हो गयीI
'आप इसका विरोध क्यों नहीं करती?' मैंने पूछाI 'पर मुझे किस बात का विरोध करना चाहिए? मुझे कभी ना कभी तो शादी करनी ही हैI आखिर यही मेरी किस्मत है' उसका जवाब थाI उसी पल उसकी माँ ने कमरे में प्रवेश किया और मुझसे पूछा कि क्या मुझे लड़की पसंद है?
टूटी उम्मीदें
जब मैं कमरे से बाहर आया तो सब मेरी ओर देखते हुए मुझसे 'हां' की उम्मीद कर रहे थेI रहा था मैंने अपनी सारी हिम्मत जुटाते हुया कहा, 'सीमा और मैं दोनों ही इस शादी के लिए तैयार नहीं हैI वो केवल 13 साल की है और उससे शादी करना अवैध है! यदि आप लोग हमारी शादी करवाते हैं तो आप भी इस अपराध का हिस्सा होंगे '
सीमा के पिता भड़क उठे थेI उन्होंने मेरे पिता से कहा कि अगर वो दहेज में इतनी बड़ी रकम चाहते हैं तो उन्हें शादी अभी करनी होगीI मेरे पिता ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे नीचे बिठाने की कोशिश की लेकिन उनकी कोशिश असफ़ल साबित हुईI मैंने बैठने से तो इनकार किया ही बल्कि सीमा के पिता को एक और बार समझाने की कोशिश की कि अगर वह 18 साल से पहले सीमा की शादी करेंगे तो उन्हें जेल की हवा कहानी पड़ सकती हैI
मेरे भाई और पिताजी गुस्से में अपने पैर पटकते हुए घर के बाहर निकल चुके थेI सीमा के पिता ने भी मेरे मुंह पर अपने घर का दरवाज़ा बंद करते हुए कहा कि 'यह बड़े शहर की बातें उपदेशों में अच्छी लगती हैं'I
तमाचा
वापसी के रास्ते में मेरे पिताजी के मुंह से एक शब्द तक नहीं निकलाI जब हम घर लौटें तो उन्होंने मुझसे अगली सुबह सीमा के घर जाकर उसके पिता से माफ़ी मांगने को कहाI किसी को मेरी बात ही नहीं समझ आ रही थीI सभी के दिमाग में केवल एक ही चीज़ थी - सीमा से मेरी शादी।
जब बात नियंत्रण से बाहर हो गयी तो मैंने उन्हें धमकी दे डाली कि अगर वो लोग ज़बरदस्ती करेंगे तो मैं उनके ख़िलाफ़ थाने में रपट लिखा दूंगाI मेरी यह बात सुनकर पिताजी अपना आपा खो और मेरे गाल पर ज़ोर से एक चांटा रसीद कर दियाI उस रात ना तो किसी ने खाना खाया और ना ही कोई सो सकाI सुबह होते ही अपना सामान लेकर मैं दिल्ली रवाना हो गयाI मुझे पता था कि अगर मैं वहां और रुका तो वो लोग मेरे साथ ज़बरदस्ती करने और मुझे इस अपराध का हिस्सा बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगेI
शादी या बिज़नेस
इस बात को एक साल से अधिक बीत चुका है। पढाई लिखाई और अन्य कामो में व्यस्त होने की वजह से मुझे घर जाने का भी मौका नहीं मिल पाया हैI वैसे तो सब ठीक चल रहा है लेकिन एक बात मुझे बहुत परेशान करती हैI मेरे पास तो इस सबसे दूर जाने का मौक़ा भी था और स्वतन्त्रता भी लेकिन बेचारी सीमा के पास ऐसा कोई विकल्प नहीं थाI इस बात की पूरी संभावना थी कि अब तक तो उसके पिता ने उसकी शादी अगली सबसे बड़ी बोली लगाने वाले के साथ कर भी दी होगीI क्या यही है शादी की सच्चाई? क्या हमारे देश में शादी अब सिर्फ़ एक व्यापार बन कर रह गयी है?
*तस्वीर के लिए मॉडल का इस्तेमाल किया गया है
*नाम बदल दिए गए हैं
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