I just couldn’t take the taunts any more
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रोज़-रोज़ के ताने सुन कर तंग आ गया था

द्वारा Kiran Rai अगस्त 31, 03:22 बजे
अगर आपको लगता है कि पाबंदियां केवल महिलाओं तक ही सीमित हैं तो एक बार इन बेचारे मर्दों की भी सुनेंI सामाजिक दबाव ने कई युवा मर्दों के सपनों की भी वाट लगा रखी हैI

चंद रुपयों में बिक गया मेरा सपना 

कॉलेज खत्म करने के बाद मेरे सभी दोस्त अपने-अपने काम धंधे में व्यस्त हो गए थेI कोई नौकरी कर रहा था तो कोई अपने पिता के बिज़नेस में उनका हाथ बंटा रहा थाI लेकिन मुझे ऐसा कुछ नहीं करना थाI मुझे फोटोग्राफी का शौक था और पूरा दिन उसी में बीत जाता थाI ऐसा नहीं था कि मैं कुछ कमाता नहीं था लेकिन मेरी कमाई मेरे बाकी दोस्तों की आय की तुलना में बेहद कम थीI जब ऐसे छः महीने बीत गए तो मेरे माता-पिता ने मुझे एक 'ढंग की नौकरी' ढूंढने के लिए दबाव डालना शुरू कर दिया

मैंने उनसे पूछा कि ज्योति (मेरी बड़ी बहन) ने भी तो कॉलेज के बाद पेंटिंग की थी तो मुझे ही क्यों रोज़ ताने दिए जाते हैंI मेरे पिता ने उस दिन जो कहा उसने मुझे अंदर तक झकझोर कर रख दियाI पापा का जवाब था "बेटा मेरा सहारा तू है तेरी बहन नहीं-मुझे उसके पैसे नहीं चाहिये। वैसे भी घर चलाने की ज़िम्मेदारी लड़को की ही होती हैI" मैंने उसी दिन फोटोग्राफी छोड़ दी और एक सेल्स कम्पनी में बतौर सेल्स अधिकारी की नौकरी करना शुरू कर दिया। जानते हैं वहां मैंने सबसे पहले क्या बेचा? अपना फोटोग्राफर बनने का सपना!

रोहित, 28 वर्षीय टेक्निकल सेल्स रिप्रेजेन्टेटिव,बैंगलोर

 

नेल पोलिशसिर्फ़ लड़कियाँ लगाती हैं:

एक दिन मेरे घर मेरी कुछ सहेलियां आयी हुई थींI तभी मेरा 9 साल का बेटा अभिनव वहाँ आ गयाI उसने अपने हाथो पर नेल पोलिश लगायी हुई थी, जिसे मुझे दिखने के लिए वो उतावला हो रहा थाI इससे पहले कि मैं कुछ कह पाती मेरी सहेली ने मुंह बनाते हुये पुछा यह सब क्या किया है?” इससे पहले कि वो अभिनव को और दुत्कारती मैंने अभिनव को गले लगा लिया और कहा, "अरे वाह, किन्ना शुन्दर लग रहा है मेरा बेटाI" बस अभिनव के लिए यही बहुत था और वो उछलता कूदता वापस अंदर चला गयाI

मेरी सहेली मुझे देखकर हक्की बक्की रह गयी थी लेकिन उसने और कुछ कहने की हिम्मत नहीं कीI मुझे लगा कि ख़तरा टल गया है लेकिन उसी शाम अभिनव ट्यूशन से रोता हुआ आया और बोला मम्मा आप प्लीज यह मेरे हाथों से हटा दो, सबने मेरा बहुत मज़ाक बनाया और कहा मैं लड़का नहीं लड़की हूँ

मैंने उसे खूब समझाने की कोशिश की और कहा कि वो जो चाहे कर सकता है और किसी के कुछ भी कहने से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ताI लेकिन अभिनव अपने फैसले पर अडिग था और उसने तभी अंदर जाकर अपने हाथ धो दिएI

निशा 35 वर्षीय कंसल्टेंट, उत्तरप्रेदश

 

लड़के होकर रोते हो

मैं बचपन से ही बहुत संवेदनशील इंसान रहा हूँI हर छोटी बात पर मुझे रोना आ जाता था और हर बार यही सुनने को मिलता था अरे लड़कियों की तरह रोना बंद करोया लड़के होकर रोते होऔर मैं सकपका के चुप हो जाता। मैं हमेशा यही सोचता था कि अगर रोना सिर्फ़ लड़कियों के लिए ही है मर्दों की आँखों में आंसू आते ही क्यों हैं?

एक दिन मेरी दादी जो मुझे अपनी जान से भी भी प्यारी थी, गुज़र गयींI मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मेरी दुनिया ही खत्म हो गयी हैI मेरे कानो में फिर वही आवाज़ें गूँज रही थीं, "अरे कब तक ऐसे बैठे रहोगे, चलो मर्द बनो और हमारी मदद करोI" लेकिन सबकी बातें नज़रअंदाज़ करते हुए मैं ज़ोर से दादी की तरफ़ दोडा और उनसे लिपट कर फूट-फूट कर रो पड़ा। क्यूंकि उस दिन मेरे लिया एक अच्छा पोता बनना, 'असली मर्द' बनने से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण थाI

फैज़, 21 वर्षीय स्टूडेंट, फैज़ाबाद

 

घर, बच्चे संभालना औरतों का काम है

मेरी बीवी पारोमिता का प्रमोशन हुआ तो हमारा बेटा कविश केवल एक साल का थाI प्रमोशन के साथ उसका ट्रांसफर भी दुसरे शहर में होना थाI क्यूंकि जॉब और सेलरी दोनों बहुत अच्छी थी तो हमने यह निर्णय लिया कि जब तक कविश स्कूल जाने लायक नहीं हो जाता तो मैं घर पर ही रहकर उसकी देखभाल करूंगा

एक दिन जब मैं घर के नीचे वाले पार्क में कविश के साथ थल रहा था तो हमारे एक पड़ोसी मेरे पास आये और बोले भाई सुना है तुम्हे अभी तक कोई जॉब नहीं मिली है, अगर कहो तो मैं कुछ करूँ? मैंने मुस्कुराते हुए कहा कि 'सर मैं किसी नौकरी की तलाश में नहीं हूँ और अपने बच्चे की देखभाल करने में बेहद खुश हूँI" शायद मेरी बात उन्हें हजम नहीं हुई, उन्हें लगा कि मैं मज़ाक कर रहा हूँI "अरे भाई मेरा मतलब था कि तुम्हे औरतों वाले काम करते देखकर अच्छा नहीं लगता इसीलिए सोचा कि मदद कर दूँI   

उनकी बात सुनकर मुझे गुस्सा तो बहुत आया लेकिन फिर भी मैंने संयम रखते हुए उत्तर दिया भाई शायद आपको पता नहीं है कि यह सन 2018 चल रहा है और आप आज भी औरत-मर्द कर रहे होI मेरा बच्चा मेरे भी उतनी ही ज़िम्मेदारी है जितना कि मेरी बीवी की और हम तीनो ही इस समय बहुत खुश हैं और हमें तुम्हारी इस सोच से कोई फ़र्क नहीं पड़ता!

रौनक, 28 वर्षीय (अभी के लिए होम मेकर),चंडीगढ़

 

बच्चा लड़का है या लड़की

अभी कुछ रोज़ पहले मैं अपने भतीजे के 8 वे जन्मदिन के लिए उपहार लेने एक गिफ्ट शॉप पर गई। मैंने कहा सर 8 साल के बच्चे के लिए कुछ दिखाइये। दुकानदार का पहला सवाल था कि बहन जी बच्चा लड़का है या लड़की”? मैंने कहा क्या फ़र्क पड़ता है?

दुकानदार ने कहा अजी अब लड़की होगी तो रिमोट कार तो नहीं दिखायेंगे ना? और अगर लड़का होगा तो बंदूके या क्रिकेट खेलने का सामान दिखाएंगेI मैंने दूर रखे गुड्डी-गुड्डा के घर की तरफ़ इशारा करते हुये और लड़केशब्द पर दवाब डालते हुये कहा कि मुझे 8 साल के लड़केके लिए वो गुड़ी-गुडा का घर दिखाइये। और हाँ वो पास में राखी बार्बी डाल भीI उसे वो बहुत पसंद हैI मेरी बातें सुनकर उसे अजीब तो बहुत लग रहा होगा लेकिन फिर भी वो सभी चीज़ें मुझे दिखने लग गयाI

मैंने उपहार तो लिए लेकिन दूकान से बाहर निकलते हुए मैं यही सोच रही थीं कि कितनी अजीब बात है कि एक खिलौने वाला भी छोटे बच्चो की पसंद उनकी लैंगिक पहचान के हिसाब से कर रहा हैI अब जब बच्चे अपनी पसंद के खिलौने तक खुद नहीं ले सकते तो आगे चलकर वो बड़े फैसले यह समाज उन्हें कैसे करने देगा जो उनकी लैंगिक पहचान के अनुरूप नहीं होंगेI

किरन, 29 वर्षीय सामाजिक कार्यकरता, गुरुग्राम

 

*गोपनीयता बनाये रखने के लिए नाम बदल दिए गए हैं और तस्वीर के लिए मॉडल का इस्तेमाल हुआ हैI

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Comments
Shivam bete yeh smajh lijiye ki nightfall ya swapndosh bohot hi common baat hain isse na hi koi kamzori aati hai aur na kisi bhi tarah ki koi smasya hoti hai. Aur adhik jankari aap yaha se haaasil kar sakte hain: https://lovematters.in/en/news/wet-dreams-top-five-facts Yadi aap is mudde par humse aur gehri charcha mein judna chahte hain to hamare discussion board “Just Poocho” mein zaroor shamil ho! https://lovematters.in/en/forum
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