अगर बॉलीवुड से ज़िंदगी जीना सीखे तो गर्भवती महिलाएं सड़को पर भांगड़ा करती नज़र आएंगीI सलाम नमस्ते की प्रिटी ज़िन्टा तो याद ही होगी आपको? गर्भवती होने के बावजूद ज़िन्टा जी व्हाट्स गोइंग ओन (यह क्या चल रहा है) नाम के गाने पर थिरक रही थीI कायदे से तो आपका हक़ बनता है बॉलीवुड से यह सवाल पूछने काI
हमें लगा कि अपने आपको गर्भवती दिखवाने के लिए कृत्रिम वेशभूषा पहने हुए अभिनेत्रियों से सवाल करने से अच्छा हम वास्तविक महिलाओं से बात करें कि कैसा लगता है एक बच्चे को जन्म देनाI उन्होंने बताया कि प्रिटी ज़िन्टा सरीखा नाच तो मुमकिन नही हो पाया और ना ही उन्हें इस बात का कोई मलाल हैI प्रस्तुत है उन ईश्वरीय नौ महीनों का अच्छा और बुरा, उन्ही दोनों महिलाओं की ज़बानीI
आफरीन खान, 24, गृहिणी
'मैं हमेशा बीमार महसूस करती थी'
'मैं शुरुआत यह बता कर करना चाहूंगी कि चाहे जो भी हो, वो मेरी ज़िंदगी के सबसे सुन्दर पल थेI सच तो यह है कि मेरी 3 साल की बेटी ने आज मेरी दुनिया ही बदल कर रख दी है, और शायद यही कारण है कि मैं गर्भवती होने के एहसास को दुनिया का सबसे बेहतर एहसास मानती हूँI
पहले तीन महीने तो बड़े ही डरावने गुज़रेI सुबह उठने के साथ ही मेरा जी मितलाने लगता था, कुछ भी खाना असंभव सा लगता थाI मैं हमेशा किसी ना किसी बात पर चिड़चिड़ी रहती थी और पूरे दिन बदन में कमज़ोरी लगती थीI
यह मेरा पहला बच्चा था और मेरी माँ और रिश्तेदारो के बार बार यह बोलने के बावजूद कि सब कुछ सामान्य है मुझे लगता था जैसे मेरा शरीर घिनौना हो गया हैI मुझे तो यह भी नही पता था कि गर्भाशय के दौरान सबके शरीर में अलग अलग प्रतिक्रिया होती हैI मेरा दिमाग मुझे बार बार मेरे गर्भवती होने का एहसास दिलवाता था लेकिन मैं अभी इस बात पर गौर नही करना चाहती थीI मुझे सिर्फ़ यह पता था कि मैं हमेशा बीमार रहती हूँI
'मुझे बेहद लाड और प्यार मिला'
"चौथा महीना शुरू होते होते चीज़े बेहतर हो गयी थीI मुझे यह एहसास हो गया था कि मेरे अंदर एक और मनुष्य पल रहा हैI मेरा मितलापन भी गायब हो गया थाI
और फिर शुरू हुई खाने की चीज़ो को लेकर पागलपंतीI मैं अपने खाने को लेकर बहुत नकचिड़ी हो गयी थीI मुझे एक ख़ास तरह की आइस क्रीम जो एक ही दुकान पर मिलती थी वो ही खानी होती थीI मैं कहना चाहूंगी कि मुझे अपने शरीर में किसी भी तरह के हार्मोन सम्बन्धी बदलाव नही नज़र आ रहे थे लेकिन इस बात का फैसला करने के लिए शायद मैं सही व्यक्ति नही हूँI ऐसा लग रहा था कि मैं हर किसी के सब्र का इम्तेहान ले रही थी लेकिन मुझे तो इसमें बहुत मज़ा आ रहा थाI क्यूंकि हर कोई मेरा बेहद ख्याल रख रहा थाI
पांचवे महीने के आते आते मैं अपने बच्चे से बेहद जुड़ाव महसूस करने लगी थी और वो भी इस हद तक कि पहले तीन महीने के दुःख दर्द अब ना के बराबर लगते थेI मैं घंटो अपना हाथ पेट के ऊपर रखकर उसकी हर एक हरकत महसूस करने की कोशिश करती थीI ऐसा लगता था जैसे हम दोनों के बीच में बातचीत हो रही हैI
नौंवे महीने में तो मैं एक गोलाकार बॉल बन चुकी थीI सोने में बहुत मुश्किल होती थी और बड़े हुए वज़न की वजह से पूरा शरीर फूला हुआ लगता थाI मुझे इस बात से फ़र्क़ पड़ना ही बंद हो गया था कि मैं कैसी दिख रही हूँI मेरे पति मेरा ऐसे ख्याल रखते थे जैसे मैं कोई नाज़ुक सा बच्चा हूँ; वो मुझे सुलाते थे और ज़रा सी भी आहट होते ही उठ जाते थेI मैं उनके प्यार को महसूस कर रही थीI
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जिनीलिआ सैंटोस, 27, आई टी व्यवसायी
नौकरी छोड़ना
"मुझे अपनी नौकरी छोड़कर घर पर बैठना पड़ाI देखा जाये तो इससे बढ़िया क्या हो सकता है - छुट्टिया और पैसे भी नहीं कटेंगेI लेकिन दो बच्चो को जन्म देने के बाद आज यह बात मैं बिना किसी अपराधबोध के कह सकती हूँ कि अपनी व्यावसायिक और व्यक्तिगत ज़िन्दगी को रुके हुए देखकर आपकी मानसिकता पर बहुत ही गहरा असर पड़ता हैI गर्भवती होने के बाद आपकी हदें निर्देशित हो जाती है और मुझ जैसे व्यक्ति को, जिसके शरीर को बेहद व्यस्त रहने की आदत हो, हर किसी का यह बोलना कि 'ज़रा ख्याल रखो' बड़ी ही मुश्किल पैदा कर देता हैI
दरअसल इन अजीब से ख्यालों की उलझन ही मुझे परेशान कर रही थी। कई बार ज़रूरत से ज़्यादा जानकारी मुसीबत बन बैठती है। मैंने ब्रूक शील्ड्स और उसकी निराशा के दौर के बारे में पढ़ा। मैं सोचने पर मजबूर हो गयी कि कहीं मुझे भी किसी मनोवैज्ञानिक सहायता की ज़रूरत तो नही है। कहीं इस सुनहरे जवानी के दौर में चुपचाप सुबकने वाली मैं अकेली इंसान तो नहीं थी?
बहरहाल, जब मेरा गोलू- मोलू सा बच्चा मेरे जीवन में आया तब ये सब ख्याल मुझसे कोसों दूर थे।
'मैं अपनी माँ के बेहद करीब आ गयी'
"गर्भवती होने का सबसे पेचीदा पहलु यह है कि चाहे आप कितनी भी किताबें पढ़ लो और कितने भी लोगों से उनके अनुभवों के बारें में बातें कर लो, सबको अनुभव अलग होता है। मैंने अपने आपको बुरे से बुरे दौर के लिए तैयार किया हुआ था लेकिन मुझे उतनी ज़्यादा कठिनाई नही महसूस हुई।
मुझे अजीब अजीब खाने पीने की चीज़ों की इच्छा ज़रूर होती थी लेकिन मैं हमेशा से खाने की शौक़ीन रही थी तो हो सकता है कि यह मनोवैज्ञानिक हो। शायद हम इसकी असलियत कभी भी ना जान पाये।
यह सुनने में थोड़ा अजीब लगता है लेकिन गर्भावस्था के दौरान मेरा और मेरी माँ का रिश्ता और प्रगाढ़ हो गया। हम हर चीज़ के बारे में ज़्यादा खुलेपन से बात कर रहे थे। शायद यह वो पड़ाव था जिसके बाद मेरी माँ की नज़र में मैं अब बड़ी हो गयी थी। हमने मेरे पति और उनकी भावनाओं कें बारे में भी बात करी।
वो बेहद उत्साहित थे, लेकिन उतने ही डरे हुए भी थे। हमारे डर ने हमें एक दुसरे के और करीब ला दिया था। एक पल हम इस बारे में बात कर रहे होते थे कि अपने बच्चे को गर्मियों की छुट्टियों में कौनसा कोर्स करवाएंगे तो दुसरे ही पल यह सोच कर घबरा उठते थे कि क्या सब कुछ सही ढंग से हो भी पायेगा। शायद यही वजह थी कि हमारे रिश्ते की तरह हमारे जीवन में सेक्स भी बेहद बढ़िया थाI।