मैं असल में ऐसा हूँ नहीं, लेकिन ऐसा बनता जा रहा हूँI मैं क्या करूँ? सतनाम (26) लुधियाना
आंटीजी कहती हैं...सतनाम पुत्तर, शाबाश! कम से कम तुझमे इतनी ईमानदारी है कि तूने ये बात मान तो ली है और कोई बड़ा कदम नहीं उठाया है और तू इस बारे में सहायता चाहता हैI ये बातें इस बात का संकेत हैं कि तू आत्मविश्लेषण करने में यकीन रखता है, जो कि बहुत अच्छी बात है!
शुरुवात से शुरू करते हैं- और तेरा पहला सवाल ये है पुत्तर कि तुझे क्या करना चाहिए? बेटे मोटे तौर पर, जो करना है कर, लेकिन किसी भी हाल में हाथ मत उठानाI हिंसा गलत है, चाहे कुछ भी हो जाये, और ये सौ बातों की एक बात हैI आई बात समझ?
मैं जानती हूँ तू सोच रहा होगा," समस्या तो यही है आंटीजी." मैं जानती हूँ मेरे बेटे, मैं तेरी बात बखूबी समझ सकती हूँ लेकिन तू भी मेरी बात ध्यान लगाकर सुन और समझ, किसी पर भी किसी भी हाल में हाथ उठाना ठीक नहीं हैI इस बारे में और बात करते हैं सतनाम, और इस बातचीत में सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति तू खुद हैI
बदल कौन रहा है?
बेटेजी, हो क्या रहा है? अपने आप में झाँक और सोचI क्या तेरी झुंझलाहट बढ़ रही है? क्या कोई और बात है जिसका असर तुम दोनों के रिश्ते पर पद रहा है? कोई निराशा? कहीं और का गुस्सा कहीं और तो नहीं निकल रहा न बेटा?
ऐसा नहीं है कि मैं इसके लिए तुझे ज़िम्मेदार बता रही हूँ, लेकिन सच ये है बेटा कि अगर तेरी बीवी से पूछेंगे तो उसकी कहानी कुछ और ही होगीI जैसे तू गुस्से में है, वो भी गुस्से में होगीI जैसे तेरे लिए वो गलत है, उसके पास तुझे गलत ठहरने कि वजह होगी, है ना? तो ये जान लेना ज़रूरी है बेटे कि कहीं कुछ ऐसा तो नहीं हुआ जिसने तुझे अलग इंसान बना दिया है जिसपर उसे हमेशा गुस्सा आता रहता है?
स्वस्थ या अस्वस्थ?
अब एक कटु सत्य कि बरी है सतनाम और वो सच ये है बेटा कि तुम्हारा रिश्ता बदल रहा हैI तुम दोनों का बर्ताव एक दुसरे के प्रति खराब हो रहा हैI ये बात तो तू भी मानेगा कि प्यार के इस रिश्ते में अब धैर्य कि कमी दिखने लगी हैI इस हद तक कि अब तू उस पर हाथ तक उठाने कि सोचता हैI ये खुशहाल रिश्ते के संकेत नहीं हैं पुत्तरI
एक और शब्द और मेरा हाथ उठ जायेगा
अब ये बात समझ बेटा, जब कोई हमें लगातार कंट्रोल कर रहा हो और हमें गलत साबित कर रहा हो, तो हमें आभास भी नहीं होता और हम खुद असल में वही बन जाते हैं- गलत और नियंत्रकI और अनजाने में हम खुद आक्रामक रुख अपनाने लगते हैंI हम किसी भी प्रकार के संवाद के लिए सभी दरवाज़े बंद कर देते हैंI
और इस तरह अहम दूसरे व्यक्ति को और नाराज़ कर देते हैं और घूम फिर कर वही चिल्लाना, नीचे दिखाना और मारपीट की नौबत आने लगती हैI और जब ये सब हो रहा होता है तो तेरे दिमाग में एक अलग संघर्ष चल रहा होता है,' एक और शब्द और मेरा हाथ उठ जायेगा'I लेकिन बेटा, 'ऐसा सोचना भी मत'I
तुझे क्या करना चाहिए
ये कुछ कदम हैं जो तू अपने रिश्ते की बेहतरी के लिए उठा सकता हैI हाँ ये बात सच है कि कहना आसान है और करना मुश्किलI तो अब जब अगली बार मामला गर्म होने लगे तो तुझे शांति के साथ अपनी बात रखनी है,"हम इस बारे में तब बात करेंगे जब तुम थोड़ी शांत होगीI" और ये कहकर वहां से निकल जाI कहीं बाहर कुछ देर के लिए टहलनेI मुझे पता है कि इसका तुरंत असर कुछ ज़्यादा अच्छा नहीं होगा और वो तेरे बारे में विपरीत भी सोच सकती है, कि तू मुद्दे कि बात से मुह छुपा रहा है, लेकिन असली परीक्षा यही हैI
तुझे अपने आप से कहना होगा,"चाहे जो भी हो जाये, इस समय मेरा इसके साथ एक छत के नीचे होना गलत हैI"
एक और रास्ता है- तुम दोनों बैठ कर शांति से बात करने कि कोशिश करो, जो शायद तुम दोनों अब तक 100 बार करके देख चुके होगेI क्या एक बार फिर दृढ निश्चय के साथ ये करके देख सकते हो?
और अंत में एक और सुझाव, किसी सलाहकार से मिल लो बेटा, लेकिन उसके लिए दोनों कि सहमति होने से ही काम चलेगाI
चाहे जो भी हो सतनाम, अगर तूने हाथ उठाया तो सारी बातें एक तरफ धरी रह जाएँगी, और नया मुद्दा ये बनेगा कि सतनाम अपनी बीवी को मारने वाला पति हैI और की नज़र की बात बाद में आएगी बेटे, सबसे पहले तू खुद अपनी नज़रों में गिर जायेगाI इसलिए मेरे बेटे, ऐसा कभी मत होने देनाI अपने आप को शांत रख, आत्मविश्लेषण कर और ध्यान देI