दिव्या की शादी उनके पिता के किसी मित्र की पहचान के लड़के के साथ दो साल पहले हुई थी। उनके अनुसार अरेंज्ड मैरिज दुनिया की सबसे रोमांटिक चीज़ तो नहीं, लेकिन ये फैसला उनकी ज़िन्दगी का सबसे अच्छा फैसला साबित ज़रूर हुआ है।
दिव्या (परिवर्तित नाम) मुंबई में एक एडवरटाइजिंग कंपनी में कार्यरत 27 वर्षीया महिला हैं।
किशोरावस्था आते आते हमारे परिवार में अरेंज्ड मैरिज का फैशन अब पुराना हो चला था। चाचाजी के खुले विचारों के चलते मेरी दोनों कज़न्स की शादी भी लव मैरिज थी। मैं भी यही सोच कर बड़ी हुई की शादी मैं अपनी पसंद के लड़के से ही करुँगी।
डेटिंग से निराशा
कॉलेज के दौरान मेरी दो रिलेशनशिप रही, एक 5 महीने और दूसरी 1 साल चली। पढाई के बाद मैं नौकरी के लिए मुंबई आ गयी और काम के दौरान तीन साल तक कोई गंभीर रिश्ता नहीं बना। 25 की उम्र में मैंने अचानक महसूस किया की मेरी उम्र की सभी दोस्तों की शादी हो चुकी थी, जिनमे से अधिकतर लव मैरिज ही थी। मुझे उनसे कोई इर्ष्य नहीं थी लेकिन अब मुझे भी किसी के साथ की ज़रूरत महसूस होने लग।
अपने डेटिंग के अनुभव से मैंने महसूस किया की जो लड़के मेरी ज़िन्दगी में आये वो सीरियस रिलेशनशिप नहीं चाहते थे। इस बात की निराशा मुझे ज़रूर थी लेकिन फिर भी अरेंज्ड मैरिज का ख्याल मुझे नहीं आया।
ईमेल से परिचय
दिवाली की छुट्टियों के लिए मैं जब घर गयी तो मेरे पापा के एक दोस्त ने उन्हें एक अछे परिवार के बारे में बताया जो मुझसे रिश्ता जोड़ने के इच्छुक थे। मेरी ही तरह मेरे परिवार को भी थोडा अजीब सा लगा, क्यूंकि लगभग हर कोई यही मानकर चल रहा था की मैं अपनी पसंद से लव मैरिज करुँगी। और क्यूंकि किसी को समझ नहीं आया की आगे क्या करना है तो हमने पापा के दोस्त ने जोभी बताया, वैसा ही किया।
तो आखिर मुझे मेरे ' मिस्टर एलिजिबल' का ईमेल आया और हम स्काइप पर बातें करने लगे।वो बातचीत से काफी समझदार और हंसमुख लगा, इसलिए जब उसने मिलने की पेशकश की तो मैंने भी ख़ुशी से हाँ कर दिया। मैंने पहले ऐसे लोगों की कहानिया सुनी थी जो इन्टरनेट पर तो दिलचस्प लगते हैं लेकिन असल में बड़े बोरिंग निकलते हैं, लेकिन उसके साथ ऐसा नहीं था। हम दोनों एक जैसे माहुल में पले बढे थे, एक ही फील्ड में जॉब कर रहे थे और दोनों शादी के लिए तैयार थे।
सबसे अच्छा फैसला
सच ये है की अगर हम दोनों ऐसे न मिलकर यदि किसी ऑफिस की पार्टी में मिले होते तो शायद इतनी जल्दी एक दूसरे पर इतना भरोसा न कर पाते। लेकिन जिन हालात में हम मिले थे, हमें एक दूसरे पर भरोसा करना और आसान लगा क्यूंकि दोनों परिवार एक दुसरे को जानते थे।
बहेर्हाल, हम दोनों उस महीने हर हफ्ते एक दूसरे से मिले और जब हम दोनों ने अपनी स्वीकृति देदी तो दोनों परिवारों ने मिलकर शादी की बाकि प्लानिंग कर ली। एक महीने बाद हम दोनों शादी के बंधन में बंध चुके थे। मुझे पता है की ये बहुत रोमांटिक कहानी नहीं है लेकिन मेरी शादी को दो साल हो चुके हैं और मैंने इतनी ख़ुशी कभी नहीं पाई जितनी इन् दो सालों में मुझे मिली है। मेरे ख्याल से मेरी ज़िन्दगी का सबसे अच्छा निर्णय यही रहा है।
क्या आने वाले समय में अर्रंज मैरिज का चलन बिलकुल ख़त्म हो जायेगा या साथी धुन्धने का कोई और बढ़िया तरीका सामने आएगा - आपको क्या लगता है? यहाँ लिखिए या फेसबुक पर हो रही चर्चा में हिस्सा लीजिये।
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