रंजू दिल्ली के एक ऑफिस में कार्यरत हैंI
मेरे 24 साल पूरे होते ही घरवाले मेरी शादी की जद्दोजहद में जुड़ गए, लेकिन कहीं बात बनती नज़र नहीं आ रही थीI मेरे माता-पिता और रिश्तेदार बहुत हताश महसूस कर रहे थेI रिश्तेदारों का मानना था कि इस परेशानी कि असली वजह ये थी कि मुझे अपनी पसंद नापसंद का लड़का चुनने कि आज़ादी मिली हुई थीI उन्होंने मेरे पिता को चेतावनी दी कि अगर जल्दी ही कोई सही लड़का न ढूंढा गया तो रंजू कि शादी कि सही उम्र निकल जाएगीI
इस बात के दबाव में अगला लड़का मिलते ही मेरे पिता ने शादी तय कर दीI सबकी इच्छा थी चट- मंगनी, पट शादी! इस जल्दबाज़ी के चलते लगभग हर कोई लड़के वालों कि कही हुई हर बात पर आँख बंद कर भरोसा किये जा रहा था, बिना असलियत कि जाँच पड़ताल कियेI
एक दिन मैंने अपने होते वाले पति के ऑफिस में फोन कियाI मेरी बता तो नहीं हो पायी लेकिन जो खुलासा हुआ उसने मुझे स्तब्ध कर दियाI
झूठ
मुझे पता लगा कि उसने अपनी नौकरी के बारे में झूठ कहा थाI वो असल में काफी नीचे पद पर काम करता था जबकि उसने मेरे परिवार को कुछ और कहानी कह रखी थीI मैंने जाँच पड़ताल जारी रखी तो पता चला कि असल में वो लोग इतने संपन्न नहीं थे जितना उन्होंने हमारे सामने बता रखा थाI
शादी का दिन करीब आता जा रहा था और मुझे कुछ समझ नहीं आ रह था कि सब को अपने इस खुलासे के बारे में कैसे बताऊँI मैं अपने माता-पिता को दुःख नहीं पहुँचाना चाहती थी लेकिन मेरा अपना भविष्य भी दाव पर लगा थाI एक लड़की होने के नाते मैं शादी को रोकने के लिए अकेले ज्यादा कुछ नहीं कर सकती थी, केवल अपने घरवालों के समर्थन कि उम्मीद के सिवाI
अंत में मैंने अपने घर वालों को इस बारे में बता दियाI सबने मेरी तरफ ऐसे देखा जैसे मैं पागल हूँI वो ऐसा कुछ सुनने को तैयार ही नहीं थे जो इस शादी के खिलाफ होI वो किसी भी कीमत पर ये रिश्ता गंवाना नहीं चाहते थेI मेरे पिता ने मुझसे पूछा," क्या तुम हमें ये शर्मिंदगी का दिन दिखाना चाहती हो? सब लोग क्या कहेंगे? अब सबकुछ तय हो चूका हैI अगर वो आर्थिक रूप से मजबूत नहीं हैं तो न सहीI"
रिश्ते का अंत
मुझसे मेहँदी कि रस्म में जबरन शामिल किया गयाI सब लोग नाच रहे थे और मैं रो रही थीI लेकिन मेरे रोने का किसी का असर किसी पर नहीं पड़ रहा थाI मेरी माँ असहाय थी और पिता कुछ सुनने को तैयार ही नहीं थेI
अपनी शादी वाले दिन कि सुबह मैंने अपने माता-पिता से कहा," यदि आपने मेरी शादी आज इस लड़के से कि, तो या तो मैं भाग जाऊँगी या फिर आपको अपना मुँह फिर कभी नहीं दिखाऊँगी, अब फैसला आपको करना हैI मेरा ये कड़क रुख देखकर शायद मेरे माता पिता के दिमाग कि घंटी बजीI
शादी तोड़ दी गयीI बारात वापस चली गयी, और सब ने इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना का ज़िम्मेदार मुझे ठहरायाI इतने बड़े तमाशे के बाद मैं आपने रिश्तेदारों के ताने सुनने के लिए वहां नहीं रहना चाहती थी इसलिए मैंने जल्द ही शहर छोड़ दियाI
तीन साल बाद
अभी तक कोई ये बात नहीं मानता कि मेरा फैसला सही थाI अभी भी मुझे नित नए लड़कों के सामने पेश किया जाता है कि शायद उनमे से किसी को मेरे अतीत के बारे में न पता हो और कोई मुझसे शादी करले ताकि मेरे माँ-बाप को और शर्मिंदगी न झेलनी पड़ेI
मेरे पिता अभी भी कहते हैं, "काश मैंने तुम्हे शुरू से इतनी छूट न दी होतीI ये दिन न देखना पड़ताI" मैं केवल ये आशा करती हूँ कि किसी सुबह आखिरकार मुझे खुद अपने इस फैसले पर पछतावा न हो, और मुझमे ख़ुशी से जीवन जीने कि शक्ति बनी रहे, चाहे मेरी शादी हो या ना होI
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