अनमोल (परिवर्तित नाम) एक 24 वर्षीय समलैंगिक युवक है जो आई टी प्रोफेशनल है और दिल्ली में रहता हैI
एक बेधड़क तलाश
मैं तीन साल पहले मथुरा से दिल्ली आया थाI मैंने कभी भी किसी से यह बात नहीं छुपाई थी कि मैं समलैंगिक हूँ लेकिन फ़िर भी मथुरा जैसे छोटे शहर में मेरे लिए प्यार की राह आसान नहीं थीI मैंने दिल्ली आने का फैसला सिर्फ़ इसलिए नहीं लिया था क्योंकि मैं भावात्मक और लैंगिक आज़ादी चाहता था बल्कि मैं सही मायनों में एक ऐसे व्यक्ति की तलाश में था जिसके साथ मैं एक रूमानी रिश्ता बना सकूँ और उसके साथ रह सकूँI
सही साथी ढूंढने में मुझे दो साल लग गए क्योंकि मैं जिससे भी मिलता वो या तो सेक्स चाहता था या सिर्फ़ दोस्तीI कोई भी किसी भी प्रकार की प्रतिबद्धता नहीं चाहता थाI कुछ लोग तो इस बारे में बात भी नहीं करना चाहते थेI वो मुझे दो टूक शब्दों में कह देते थे कि उन्हें रिश्ते में किसी भी प्रकार का तनाव नहीं चाहिए तो अगर बात सिर्फ़ सेक्स तक ही सीमित हो तो अच्छा हैI इस सब में दो साल गुज़र गए थे और मैं बहुत थक गया था, शायद हताश भी होने लगा थाI तब मेरी मुलाक़ात सिद्धार्थ से हुईI
सही साथी की खोज
सिद्धार्थ से मैं एक पार्टी के दौरान मिला थाI वो एक आत्मनिर्भर, सिंगल और आकर्षक नवयुवक थाI वो मुम्बई में रहता था और संगीत कलाकार थाI मुझे तो यह जानकर बेहद आश्चर्य हुआ था कि वो समलैंगिक है क्योंकि पार्टी में मौजूद कई लड़कियां उस पर लट्टू हो रही थीI हम दोनों नशे में ज़रूर थे लेकिन उस दिन की गयी बातचीत मुझे आज भी अच्छी तरह से याद हैI चूंकि हम दोनों को ही अपने लैंगिक रुझान के बारे में किसी भी तरह की झिझक नहीं थी तो उसने मुझसे सवाल किया कि भविष्य में एक पुरुष से शादी करने चाहूंगा? भारत में समलैंगिकता से सम्बंधित कानूनों के मद्देनज़र मुझे यह मुश्किल लगता था लेकिन फ़िर भी इसके खिलाफ लड़ना और आगे बढ़ना चाहता थाI शायद इसीलिए मैंने उसके सवाल का जवाब हाँ में दिया थाI
उसने मुस्कुराते हुए मुझसे पुछा कि क्या वो मुझे पसंद हैI जवाब देने से पहली ही मुझे पता था कि मैं उसकी तरफ़ बेहद आकर्षित हूँI
अगले कुछ दिनों में मैं हम कई बार मिलेI उसका व्यक्तित्व बिलकुल वैसा था जैसा कि मैंने अपने साथी में चाहा थाI उसके अंदर आत्मविश्वास कूट-कूट कर भरा था और इस बात से मैं बहुत निश्चिन्त और सुरक्षित महसूस करता थाI जैसे-जैसे दिन गुज़रें मुझे पता चला कि हम दोनों सिर्फ़ एक दूसरे को पसंद ही नहीं करते बल्कि सेक्स के दौरान भी हमारा तालमेल गज़ब का थाI तीन महीने के अंदर ही हम दोनों ने साथ रहना शुरू कर दिया थाI
बोरियत और वो भी जल्दी
आखिरकार मैं वो ज़िंदगी जी रहा था जिसकी मैंने कामना की थीI अब मेरी ज़िन्दगी में प्यार था, स्वछंदता थी, खुशी थी और सबसे महत्त्वपूर्ण, एक भावात्मक सुरक्षा थी जो मैं हमेशा से चाहता थाI इस सबके बावजूद इस रिश्ते में केवल छः महीने गुज़ारने के बाद ही मैं अपने अंदर एक अजीब सा खालीपन महसूस कर रहा थाI
हर एक बात बेहद साधारण लगने लगी थीI हर नया दिन मेरी नीरसता बड़ा रहा थाI ऐसा नहीं था कि प्यार खत्म हो गया था लेकिन चीज़ें उबाऊ भी होने लगी थीI सच बताऊँ तो मैं सिद्धार्थ के प्यार करने के तरीके से पक गया थाI हमारे रिश्ते में ऐसा कुछ भी नहीं बचा था जिसे लेकर मेरे अंदर किसी प्रकार की उत्सुकता या कामना होतीI शुरुआत की जुनूनियत धीरे-धीरे कम होती जा रही थीI
धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से
मैंने सोचा कि इस बोरियत को दूर करने के लिए मुझे कुछ और समलैंगिक मित्र बनाने चाहिएI मुझे सच में लग रहा था कि और समलैंगिक जोड़ो से मिलने से हम बेहतर महसूस करेंगेI मैंने सिद्धार्थ को बताया कि हमें बाकी समलैंगिक जोड़ो से भी घुलना-मिलना चाहिएI मैं अपना समलैंगिक रिश्ता केवल इस घर की चारदीवारी तक सीमित नहीं रखना चाहता था और मुझे यह भी लगता था कि सिद्धार्थ को भी और लोगों से मिलना चाहिए जिससे हमारा सामाजिक दायरा बड़ा होI
मैं हमेशा इन्ही विचारों से घिरा रहता और अब मैंने इनकी वजह से परेशान रहना शुरू कर दिया थाI मुझे एहसास हो रहा था कि शादीशुदा महिलाएं और पुरुष किस नीरसता और खालीपन की बात करते हैंI वही खालीपन जिसका आभास आपको तब होता है जब आपके प्यार भरे रिश्ते में जोश और जूनून की कमी होनी शुरू हो जाती हैI केवल अपने आपको बेहतर महसूस करवाने के लिए मैंने इन्टरनेट पर मौजूद कुछ डेटिंग एप्पस (इन्टरनेट पर मौजूद मोबाइल ऍप्लिकेशन्स जिन्हें आप अपने फ़ोन पर डाउनलोड कर सकते हैं) पर अपना प्रोफाइल (अपने बारे में वर्णन) बनाया और वहां मौजूद आकर्षक पुरुषों से बातें करनी शुरू कर दीI
शुरुआत में मैं अपने इरादों में बेहद स्पष्ट थाI मैंने कुछ पुरुषों को यह भी बताया कि मैं वहाँ केवल नए दोस्त बनाने और समान विचारधारा वाले लोगों से मिलने के लिए आया हूँI धीरे-धीरे कुछ और करने की इच्छा मेरे अंदर प्रबल होती जा रही थीI मैं यह सोचकर दुखी होता था कि मैं अपने जीवन में सिद्धार्थ के होते हुए दुसरे पुरुषों के बारे में सोच रहा हूँI जब मुझसे सिद्धार्थ पूछता कि मैंने कुछ नए दोस्त बनाये तो ना जाने क्यों मेरा दिल डर और आशंका से भर जाता थाI
मेरे जीवन में बोरियत बढ़ती जा रही थी और आखिरकार मुझसे रुका नहीं गयाI मैं कुछ लोगों से मिला और कुछेक के साथ शारीरिक सम्बन्ध भी बना लिएI अपने रिश्ते के बाहर सेक्स करना मेरे लिए एक कड़वे सच के लिए था लेकिन मैं अपने आपको रोक नहीं पा रहा थाI में जितना ज़्यादा और लोगों से मिलता, सेक्स करता, उतना ही अपने रिश्ते में अपने आपको फंसा हुआ पाताI
सच का सामना
सिद्धार्थ के साथ मेरा रिश्ता इतना बोझिल होता जा रहा था कि मैं हरदम उससे बाहर निकलने के रास्ते ढूंढने लगता थाI इसमें कोई संदेह नहीं था कि हमारे रिश्ते में प्यार नहीं थाI प्यार तो बहुत था, लेकिन शायद मेरे लिए कम थाI या फ़िर शायद मैं प्यार के लिए सही नहीं थाI समय गुज़र रहा था, लेकिन मेरा और परुषों से मिलना बढ़ता जा रहा थाI
मैं हर पल अपराधबोध से ग्रस्त रहता था और एक दिन मुझसे रुका नहीं गयाI आखिरकार मैंने सिद्धार्थ को सच बता दियाI
आज इस बात को एक साल हो गया है और एक बार फ़िर, अब मैं अकेला हूँ I मेरे अंदर आज भी यही कश्मकश चल रही है कि आखिर मैं चाहता क्या हूँI सिद्धार्थ के साथ मुझे हमेशा एक अधूरेपन का एहसास होता थाI लेकिन में जान गया हूँ कि यह समस्या सिर्फ़ मेरी अकेले की नहीं हैI मेरे कई और दोस्तों ने मुझे उनकी ऐसी ही उलझन के बारे में बताया है कि 'प्यार करें या नहीं'I
नाम बदल दिए गए हैं। तस्वीर में मौजूद व्यक्ति एक मॉडल है। यह लेख पहली बार 18 अक्टूबर 2016 को प्रकाशित हुआ था।
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