शोधकर्ताओं का मानना है कि धोखेबाजी करने वाले साथी के लिए जिंदगी मेँ आगे बढ़ना आसान होता है लेकिन जिसके साथ धोखा हुआ हो, उसके घाव को भरने मेँ काफी समय लग सकता है। अगर आपके साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ है तो हम समझ सकते हैं कि इस परिस्थिति का सामना करने मेँ आपको भी काफी मुश्किल होगी।
मुंबई के जाने-माने मनोचिकित्सक और मानव संबंधों के विशेषज्ञ डॉ पवन सोनार का कहना है कि धोखेबाजी के शिकार लोग अक्सर अपने साथ हुई धोखेबाजी के लिए खुद को ही दोष देते हैँ।
"सबसे पहला कदम यह है कि अपने साथ हुए इस धोखे के लिए आप खुद को ज़िम्मेदार ना समझें। इस तरह के भाव का शिकार महिलाएं ज्यादा होती हैं। वो अक्सर सोचने लगती हैं कि उनके साथी ने उन्हें इसलिए धोखा दिया क्योंकि शायद वे अपने साथी को संतुष्ट नहीं रख सकीं।
यदि आपके मन मेँ भी इसी तरह के भाव हैं, तो उन्हें अपने दिमाग से निकाल दें। जब कोई व्यक्ति किसी को धोखा देता है तो यह उनके अपने व्यक्तित्व और स्वभाव का नतीजा होता है ना कि आप दोनों के रिश्ते मे आपकी भूमिका का। इसलिए कुसूर आपका बिलकुल नहीँ है," सोनार बताते हैं।
अपना समय लीजिए
सोनार के अनुसार, पुराने रिश्ते के ज़ख्म भरने से पहले नए रिश्ते बना लेने से इस नए रिश्ते का भविष्य भी संकट में पड़ सकता है।
"अपने आप को जबरदस्ती इस ओर आगे बढ़ाने से कुछ हासिल नहीँ हो सकेगा। या तो आप अपने पूर्व साथी के किए कसूरों की सजा अनजाने में अपने नए साथी को देने लगेंगे या फिर आप पाएंगे कि आप अपने इस नए साथी की हर गतिविधि पर एक प्रश्न चिन्ह सा लगाकर रख रहे हैं। क्यूंकि आपके मन मेँ आपके पुराने संबंध मेँ हुई घटनाओं का डर बैठा हुआ है।
रिश्तों में धोखेबाजी के शिकार लोगों को अपने व्यव्हार पर ध्यान देना जरुरी है। यदि आप के मन मेँ उन लोगों के प्रति भी घृणा है जिन्होंने आपका कोई नुकसान नहीँ किया है तो इसका अर्थ यह है कि आपके मन की कड़वाहट अभी तक ख़त्म नहीं हुई है।
अपने आप को खुलने दें
अपने साथी से इस बारे मेँ खुल कर इमानदारी से बात करेँ कि आप के साथ हुई धोखेबाजी से आपकी मनोस्थिति पर क्या प्रभाव पड़ा है। संभावना है कि वो आपकी मनोदशा को समझेंगे ओर इस विषय में अधिक संवेदनशील रहेंगे। लेकिन इस बात को जरुरत से ज़्यादा तूल भी ना दें अन्यथा उन्हें हर पल लगेगा कि आप उन पर भरोसा नहीँ करते।
यदि आप अपने जख्म हरे ही रहने देंगे तो संभव है कि आप अपने आसपास पास वाले लोगों पर कभी भरोसा ना कर सकें। और सच यही है कि इस बात की कोई गारंटी नहीँ कि आपका साथी हमेशा वफादार रहेगा।
सीखिए और आगे बढ़ें
यदि आप अपनी पिछली गलतियों को दोहराना नहीँ चाहते तो जरुरी है की आप उन कमियों को समझें और उनके समाधान के बारे में सोचे। क्या आप दोनों के बीच का संवाद एक कमजोर कड़ी था? यदि हाँ, तो आप इसे बेहतर बनाने की दिशा मेँ क्या करेंगे?
"फर्क" है 'मंशा' का, वो बताते हैं। किसी भी रिश्ते में पारदर्शिता का यह अर्थ बिलकुल नहीं होना चाहिए कि आप बात बात पर अपने साथी के फ़ोन की जांच करेI