Am I worth nothing but a dowry
Jayakumar

क्या मैं सिर्फ दहेज़ के ही लायक हूँ?

द्वारा Devi Boerema जुलाई 8, 07:30 पूर्वान्ह
"तुम्हारा परिवार सिर्फ एक ही चीज़ चाहता है और वो है हमारा पैसा," सारा लड़ाई के दौरान अपने पति पर चीलाई। वो अपनी शादी चलाना चाहती है। लेकिन उसके लिए यह आसान नहीं है जब उसे ऐसा महसूस हो की उसके सास-ससुर ने उसे सिर्फ इसलिए अपनाया क्यूंकि उन्हें काफी 'तोहफे' मिले थे।

दहेज नहीं, क्यूंकि शहर में रहने वाले पढ़े-लिखे लोग तो शायद दहेज़ जैसे पुराने रीति-रिवाज़ नहीं मानते। है की नहीं?

सारा (नाम बदला हुआ) मुंबई में रहने वाली एक विद्यार्थी हैं।

मैंने आज सुबह की शुरुवात करी हर सुबह की तरह, घर में 8 लोगों का नाश्ता बनाकर। मैंने मूंग-भाजी बनायीं सबके लिए, फिर पूरा किचन साफ़ किया और फिर यूनिवर्सिटी गयी। मैंने अपने सास-ससुर के साथ यह समझूता किया है की जब तक मैं घर के सारे काम संभल सकती हूँ वो मेरी पढाई नहीं रोकेंगे और मेरी डिग्री मुझे ख़त्म करने देंगे।

डिनर टेबल

मेरे लिए और मेरे माता-पिता के लिए मेरा यह डिग्री ख़त्म करना बहुत महत्वपूर्ण है। इसी वजह से उन्होंने मुझे मेरे दहेज़ में एक टेबल दी। मुझे टेबल की ज़रूरत थी अपना होमवर्क ख़त्म करने के लिए। लेकिन मेरे सास-ससुर ने बोला की इसकी ज़रूरत नहीं। और उन्होंने उसके बदले में डाइनिंग टेबल मांगी। शायद यही ठीक था क्यूंकि मैं घर पर तो पढाई कर ही नहीं पाती थी, और इसलिए ज्यादा से ज्यादा समय यूनिवर्सिटी में ही बिताती थी। शाम 6 बजे के आस-पास मुझे घर पहुचना पड़ता है ताकि मैं रात का खाना बना सकूँ और उस टेबल पर परॊस सकूँ जो मैं दहेज में साथ लायी थी।

मेरी शादी एक साल पहले तय करी गयी थी. मैं उत्तर प्रदेश की एक हिन्दू परिवार से हूँ। हमारी शादी सिर्फ उन्ही के साथ हो सकती है जिनकी जाति वही हो जो हमारी जाति हो। मेरे तीन भाई हैं लेकिन जब उनकी शादी हुई तो मेरे माता-पिता ने कोई दहेज़ नहीं लिया। लेकिन जब मेरी शादी हुई तब उन्होंने दहेज दिया। उनका कहना था की "अगर तेरे सास-ससुर को दहेज़ चाहिए, तो हम देंगे।"

पैसे देकर मुझे भेजा

मेरे पिता जी के एक दोस्त ने मेरे और मेरे पति के परिवार के बीच बिचोले का काम किया, ताकि दोनों परिवार खुश रह सके। मेरे पिता जी मोटरसाइकिल  देना चाहते थे। जब मेरे माता-पिता की शादी हुई थी तो दहेज़ में मोटरसाइकिल देना बड़ी बात मानी जाती थी। लेकिन अब समय बदल चूका था। मेरे पति के परिवार को ज्यादा चाहिए था. उन्होंने कार की मांग करी।

मेरे पिता जी ने उन्हें नकद रकम दी। और यह सब मेरे जाने बिना हुआ लेकिन मेरा माँ ने मुझे बता दिया की उन्होंने करीब 2 लाख रूपए से ज़्यादा लड़के वालों को दिए। मैं यह सुन कर बहुत उदास हुई थी। मैं ना तो शादी करना चाहती थी और ना ही दहेज़ का हिस्सा बनना चाहती थी।

मेरी माँ ने मुझे बचपन में कई बार यह कहा था की, "तुझसे कोई शादी नहीं करेगा और हमने शादी में कुछ ना दिया तो तुझे कोई नहीं अपनाएगा।" मैंने पुछा "पर उन्हें पैसा क्यूँ देने पड़ेंगे? जब किसी परिवार को एक लड़की मिलती है जो सारी ज़िन्दगी उनकी सेवा भी करती है, तो उन्हें और क्या चाहिए? उलट मुझे अपना परिवार छोड़कर उनके यहाँ जाना पड़ेगा।

"तोहफे

मेरे पिता जी ने मेरे पति के परिवार को सोफे सेट भी दिया, एक अलमारी भी दी और डाइनिंग टेबल भी। मैं 'तोहफा' इसलिए कह रही हूँ क्यूंकि हम 'दहेज़' शब्द का इस्तेमाल करने से कतराते हैं। गरीब, अनपढ़ लोग ही तो इन पुराने रीति-रिवाजों में बंधे रहते हैं। हमारी जैसी मिडिल क्लास भारतीय परिवार, जो की मुंबई जैसे शहर में रहते हैं, वो 'दहेज़' जैसे शब्द का इस्तेमाल नहीं करते। वो सिर्फ इन 'तोहफों' को ले ज़रूर लेते हैं। सचाई ये है की मेरे सास-ससुर को यह तोहफे मांगने में बिलकुल शर्म नहीं आई।

भविष्य और पढाई-लिखाई

एक बार मेरे और मेरे पति की बीच किसी बात को लेकर झगडा हुआ। लेकिन कुछ गरमा-गर्मी हो गयी और मैं उसपर चिलाई, "तुम्हारा परिवार तो सिर्फ पैसे चाहता है।" उसे बहुत गुस्सा आया और वो घर से बाहर चला गया। मुझे नहीं लगता हम कभी इस मुद्दे पर बात भी कर पाएंगे। लेकिन अगर मेरी बेटी हुई तो मैं कभी दहेज नहीं दे पओंगी। मैं उसकी पढ़ाई लिखाई के लिए पैसे जमा करुँगी , ना की उसके सास-ससुर के लिए डाइनिंग टेबल खरीदने के लिए।  

क्या दहेज की प्रथा आज भी कायम है भारत में? के दहेज लेना - देना सही है? यहाँ लिखिए या फेसबुक पर हो रही चर्चा में भाग लीजिये।

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