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भारत में समान लिंग विवाह से जुड़े कुछ ख़ास तथ्य

Submitted by Akshita Nagpal on शुक्र, 03/20/2020 - 12:01 पूर्वान्ह
जब भी हम 'शादी' शब्द सुनते हैं, तो हमारे ज़ेहन में तुरंत एक दूल्हे और दुल्हन की तस्वीर बन जाती हैI लेकिन दूल्हे-दूल्हे और दुल्हन-दुल्हन की शादी हो तो? दुर्भाग्यवश भारतीय कानूनी व्यवस्था में अभी तक समान-सेक्स विवाह को मान्यता नहीं दी गयी है, जिससे हमारे देश के समलैंगिक जोड़ों के लिए कानूनी रूप से साथ रहना एक सपना बन कर रह गया हैI

क्या होती हैं समान सेक्स शादी?

जब एक ही लिंग के दो लोग परिणय सूत्र में बंधते हैं तो उसे समान-सेक्स शादी कहा जाता है, जैसे दो महिलाओं की एक दूसरे से शादीI हालाँकि भारत में इसको अभी भी अवैध माना जाता है लेकिन कई ऐसे देश हैं जहां समान-सेक्स विवाह को वैधता प्राप्त हैI

कौनसे देश हैं जहाँ कानूनी रूप से समान-सेक्स विवाह को मान्यता दी गयी है?

समान लिंग के जोड़ों के बीच विवाह को कम से कम 26 देशों में अलग-अलग डिग्री और उपनियमों के साथ मान्यता मिली हुई हैI नीदरलैंड ऐसा पहला देश था जिसने 2000 में समान-सेक्स विवाह को मान्यता दी, जबकि दिसंबर 2017 में ऑस्ट्रेलिया ऐसा करने वाला नवीनतम देश बनाI

1989 में डेनमार्क एक ही लिंग के जोड़ो को साथ रहने की इजाज़त देने वाला पहला देश बना थाI

भारत में अभी तक यह कानून क्यों लागू नहीं किया गया है?

भारत में, समान लिंग की शादी को अभी तक कानूनी रूप से मान्यता नहीं मिली है लेकिन, इसका मतलब यह नहीं है कि वे अवैध हैं। कई समलैंगिक जोड़े धार्मिक समारोहों में एक दूसरे से परिणय सूत्र में बंध चुके हैंI

हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत भारत में शादी की रस्म हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म या सिख धर्म का अभ्यास करने वाले व्यक्तियों के लिए ही उपलब्ध है। इसके अलावा विशेष विवाह अधिनियम अन्य धर्मों को मानने वाले जोड़ो के लिए हैI इसके पंजीकरण के लिए उपलब्ध फॉर्म में अभी तक केवल पति (पुरुष) और एक पत्नी (महिला) के विवरण भरने के लिए ही जगह हैI समान-लिंग जोड़ों के बीच विवाह के लिए अभी तक कोई भी प्रावधान उपलब्ध नहीं है।

इस मुद्दे पर धारा 377 का क्या असर पड़ता है?

6 सितंबर 2018 को, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया कि धारा 377 के तहत समलैंगिकता अब असंवैधानिक नहीं हैं। इस फैसले के बाद से, दो समान लिंग वाले वयस्कों के बीच संभोग अब भारत में अवैध नहीं है। हालाँकि, भारत में अभी भी समलैंगिक संबंधों को कोई कानूनी मान्यता प्रदान नहीं है। उदाहरण के लिए, समलैंगिक जोड़े बीमा, संपत्ति या विरासत के अधिकारों पर दावा नहीं कर सकते। समलैंगिक विवाहों को वैध बनाने की अपील पर अदालत में सुनवाई चल रही है। हाल ही में सरकार की ओर से अदालत में पेश किए गए दावे में कहा गया की समलैंगिक विवाह भारतीय संस्कृति का हिस्सा नहीं हैं। 

दांव पर क्या क्या लगा हुआ है?

वैसे तो विवाह के महत्व पर बहस होती रहती है, कुछ लोग तो इसे एक अनावशयक प्रथा भी मानते हैं, लेकिन इसमें कोई शक नहीं है कि शादी किसी भी रिश्ते को सामाजिक मान्यता प्रदान करती है जो कि भारतीय संस्कृति में अत्यंत महत्वपूर्ण है।

एक कानूनी मान्यता प्राप्त विवाह, शादी का बंधन टूटने के बाद भी भागीदारों को विरासत, पेंशन, संपत्ति-विभाजन जैसे कई लाभ देता हैI इसके साथ-साथ किसी गंभीर बीमारी के दौरान यह भागीदारों को अपने साथी से सम्बंधित महत्त्वपूर्ण फैसले लेने का सामर्थ्य भी प्रदान करता हैI समान-सेक्स जोड़ों के लिए ऐसे प्रावधानों की कमी उन्हें विषम जोड़ों की तुलना में प्रतिकूल परिस्थिति में खड़ा कर देता हैI

उनका लेख पहली बार 16 अप्रैल, 2018 को प्रकाशित हुआ था।

*तस्वीर के लिए मॉडल का इस्तेमाल हुआ है 

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