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पोर्न आंटी कार्टून का इतना बोलबाला क्यों?

द्वारा Joanna Lobo फरवरी 7, 10:45 बजे
कार्टून पोर्न स्टार सविता भाभी की अपार बाद सेक्सी आंटी वेलम्मा लोकप्रिय होने लगी। आखिर कुछ पुरुष इस काल्पनिक सेक्सी आंटी के किरदार से इतने उत्तेजित क्यों होते हैं?

और महिलाओं के नज़रिये से यह सशक्तिकरण है या गिरावट?

हम सभी सविता भाभी से परिचित हैं।जी हैं, पड़ोस की किसी ऐसी आम महिला पर आधारित कार्टून श्रृंख्ला जिसकी मुख्य किरदार सविता शादी के बाद भी अलग अलग पुरुषों के साथ सेक्स सम्बन्ध बनाने को आतुर रहती है।इस किरदार का सृजन 2008 में इंग्लैंड के व्यापारी पुनीत अग्रवाल (या देशमुख) ने किया था।

लेकिन इसी तरह की एक और श्रृंखला है जिसकी मुख्य किरदार श्रीमती लक्ष्मी वेलम्मा को शायद प्रेस की उतनी फुटेज तो नहीं मिली, लेकिन सेक्स गतिविधियों में वो सविता भाभी से भी 2 कदम आगे है।

छरहरी कामुक आंटी

कई प्रतिबंधों के बावजूद सविता भाभी की सफलता ने देशमुख को ऐसे ही और चरित्रों को रचने की प्रेरणा दी। "हर किसी की अपनी पसंद होती है," वो कहते हैं।"किसी को सविता सरीखी युवती पसंद आती है तो किसी को वेलम्मा जैसी कामुक ऑन्टी। हमारा उद्देश्य था सबको उनकी कल्पनाओं के अनुकूल एक कार्टून किरदार देकर संतुष्ट करना। हमने रीटा, प्रिया राव और कम्मोबाई जैसे किरदार भी बनाये हैं..."

देशमुख दोनों किरदारों के बीच का अंतर बताते हैं: "सविता उत्तर भारत के परिवेश की महिला है जो प्रेम रहित शादी के बंधन में फंसी अपनी नीरस ज़िन्दगी में अनौपचारिक सेक्स संबंधों से रंग भरने की कोशिश करती रहती है। जबकि वेलम्मा का स्वाभाव कुछ ज़्यादा ही मधुर है और वो अपने ज़रूरत से ज़्यादा सरल स्वाभाव के चलते अक्सर सेक्स परिस्थिति में पड़ जाती है।"

निसंकोच

वेलम्मा अपनी इस कामुकता में खुद को नया पाती है और इसलिए वो सभी नए प्रयोगों के लिए तैयार रहती है, फिर वो किसी और महिला के साथ सेक्स की बात हो या एक से अधिक पुरुषों के साथ सेक्स।

वेलम्मा असामान्य पोर्न स्टार है- उसे अपने शरीर के बारे में कोई संकोच भाव नहीं हैं, जैसे की शरीर के या गुप्तांगों के बाल। "हम उसे विवाहित दक्षिण भारतीय महिला का प्रारूप बनाना चाहते थे। पात्र बेशक काल्पनिक हो लेकिन पढ़ने वाले असल जैसे किरदार चाहते हैं, शायद जिस तरह के किरदारों को वो असल ज़िन्दगी में देख चुके हों," देशमुख कहते हैं।

महिलाओं की लैंगिकता पर असर?

इन श्रृंखलाओं में कई बार ज़बरदस्ती सेक्स किया जाता है, या फिर अपने से कम उम्र के लड़कों के साथ सेक्स। कार्टून श्रृंखला की एक कड़ी में वेलम्मा और सविता के पति बिना अपनी पत्नियों को बताये, पत्नियों की अदला बदली कर लेते हैं। क्या यह सेक्स अपराधों को बढ़ावा देने के नज़रिये से गलत सन्देश नहीं देता? देशमुख इस आरोप की तुरंत सफाई देते हुए कहते हैं," हम कभी इन्सेस्ट, बाल सेक्स या हिंसात्मक सेक्स प्रस्तुत नहीं करते। वेलम्मा के साथ सेक्स करने वाला हर लड़का वयस्क दिखाया गया है।"

इस तरह के कार्टूनों में एक नैतिक दोहरापन तो ज़रूर है। एक तरफ वो सामाजिक नियमों को तोड़कर अपनी सेक्स इच्छाओं को पूरी करने वाली महिलाओं को दिखाते हैं,वहीँ दूसरी ओर ऐसी परिस्थितियां दिखाते हैं जहाँ महिला से सेक्स के लिए उसकी मर्ज़ी तक नहीं पूछी जाती। कहानियाँ तो काल्पनिक हैं हीं, लेकिन इनके किरदार भी महिलाओं की लैंगिकता के सशक्तिकरण के आंदोलन से दूर ही नज़र आते हैं।

नुक्सानरहित मज़ा? महिलाओं की लैंगिकता का उदारीकरण? या फिर इसके विपरीत सन्देश? आपकी राय हमें यहाँ या फेसबुक पर बताएं।

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