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महिलाओं के साथ छेड़ छाड़: आखिर लड़के ऐसा क्यूँ करते हैं?

छेड़छाड़ दक्षिणी एशिया में गलत नियत से छूना और भद्दे शब्द कहने के लिए इस्तेमाल करने को कहते हैं।अश्लील टिप्पणी, भीड़ वाले स्थानों पर शरीर रगड़ना या फिर जबरन गन्दी नियत के साथ छूना।

गली में, बस में या फिर मेट्रो ट्रेन में। लगभग हर औरत को इसका सामना करना पड़ता है और हर औरत को इस से घृणा है।

 

तो आखिर क्या वजह है कि पुरुष फिर भी ऐसा करने से बाज नहीं आते? लव मैटर्स ने 2 भारतीय पुरुषों से इस बारे में पूछा

“मेरे विचार में इसका कारण है रुढ़िवादी मानसिकता,” जलील अहमद का कहना है। उनके साथी अभिषेक हाजरा भी सहमत हैं।उनका सोचना है कि भारत में छेड़ छाड़ इसलिए एक आम समस्या है क्यूंकि यहाँ के युवा अत्यंत ही रोक-टोक के माहौल में जीवन जीते हैं।

जलील और अभिषेक दोनों जनसंख्या परिषद् (Population Councillation ) में प्रोग्राम ऑफिसर के रूप में कार्यरत हैं, एक ऐसे संस्था जो प्रजनन स्वस्थ और अधिकारों के क्षेत्र में काम करती है। उनका सोचना है कि युवक अक्सर छेड़ छाड़ इसलिए करते हैं क्यूंकि उनका महिलाओं के साथ रोजमर्रा के जीवन में सहेज व्यवहार का कोई अनुभव नहीं होता।

शर्म
“जब मैं छोटा था तो मुझे अपने पड़ोस की लड़की से बात करने की इजाज़त नहीं थी।” जलील कहते हैं। “जब तक मैं 18 साल का नहीं हो गया था मैं लड़कियों से बात तक नहीं कर पाता था। शायद मैं कर सकता था लेकिन मुझे यह डर होता था कि यदि किसी ने देख लिया और मेरे पिता को बता दिया कि मैं लड़की से बात कर रहा था तो मैं मुश्किल में आ सकता था।”

अभिषेक के अनुसार छेड़ छाड़ गाँवों की अपेक्षा शहरों में ज्यादा पाई जाती है क्यूंकि भीड़ वाले स्थानों पर ऐसा करके बच निकलना आसान है। ग्रामीण परिवेश में छेड़ छाड़ करने वालों को आसानी से पहचाना जा सकता है और बात घर परिवार तक पहुँच सकती है।

अबोध मौज-मस्ती
छेड़ छाड़ भारत में एक विवादस्पद विषय है। काफी पुरुष इसे काफी कम मानते हैं। फिर भी महिलाओं को इस यौन अघात का सामना लगभग हर दिन करना पड़ता है।

कुछ का तर्क है कि इसे ‘छेड़ छाड़’ कहना इसकी गंभीरता को कम कर देता है। बाइबल में ईव पहली महिला थी जिसने आदम को सेब खाने के लिए प्रलोभित किया था।उनकी इस तुलना के फलस्वरूप वे शायद कहीं ना कहीं खुद को ही इसका ज़िम्मेदार मान लेती हैं। और ‘छेड़ छाड़’ शब्द सुनने में कोई गंभीर विषय नहीं प्रतीत होता।

दोषी
जलील के अनुसार यौन कुंठा पुरुषों को छेड़ छाड़ तक ले जाती है। लव मैटर्स का लेख पढने पर छेड़ छाड़ करने वाले एक व्यक्ति ने भी अपनी सहमति दी।

“लगभग दस साल से (स्कूल से शादी होनेतक) मुझे याद नहीं की मैंने मौका मिलने पर कभी भी ट्रेन या बस में लड़कियों को छूना या अपने जनांगो को उनके शरीर से रगड़ने का कोई भी अवसर जाने दिया हो,” उसने कहा।

सालों बाद एक पश्चिमी देश में रहने के पश्चात उसने अपने इस कर्म का महिलाओं पर होने वाला असर महसूस किया। “मैं आज खुद को बहुत ही बड़ा दोषी पाता हूँ,” उसने कहा।

आवाज़ उठाना
लड़के और लड़कियों के बीच बढ़ता हुआ रोजमर्रा का व्यवहार भारत में इस समस्या के निवारण में उपयोगी साबित हो सकता है।

“छेड़ छाड़ अब पहले की तुलना में कम हो गयी है,खासकर दिल्ली और मुंबई में। बहुत से लड़कियां कॉलेज जाती हैं और लड़के और लड़की आपस में घुल मिल रहे हैं। इस बारे में जागरूकता होने से भी इस तरह की घटनाओ में कमी आई है। लड़कियों में ऐसा करने वाले का विरोध कर पुलिस को बुलाने का साहस निरंतर बढ़ता देखा जा रहा है।

जो महिलाएं इस समस्या से हर दिन जूझती हैं वो शायद इस बात से सहमत नहीं की छेड़ छाड़ में कोई कमी आई है। कुछ महिलाएं आत्म-रक्षा के उपाय लेकर चलती हैं। कुछ महिलाएं शोर मचाकर इसका सामना करती हैं और कुछ ऐसा करने वालों को पुलिस के हवाले करके ही दम लेती हैं। लेकिन अब भी बहुत सी महिलाएं इसे चुपचाप सहती हैं।

हत्या
बहरहाल, छेड़ छाड़ के बारे में सबसे ज्यादा तकलीफदेह सच यह है कि ये खुले आम सबके सामने होता है। इसका अर्थ यह है कि दूसरे लोग ऐसा होते हुए देख रहे होते हैं लेकिन शायद ही कोई मदद करने का प्रयास करता है।

अक्टूबर 2011 में रुबेन फेर्नान्देस और कीनन संतोष की मुंबई में हत्या कर दी गयी थी जब वो कुछ महिलाओं के साथ होती छेड़ छाड़ का विरोध कर रहे थे। जलील का मानना है की हिंसा का डर सिर्फ इसके खिलाफ आवाज़ ना उठाने की वजह नहीं है।

“जो व्यक्ति इसके विरोध में बीच में आयेगा, उसे अपना समय देना पड़ेगा और संभव है की कानूनी प्रक्रिया से भी गुज़ारना पडे।पुलिस आरोपी के साथ विरोध करने वाले व्यक्ति को भी पुलिस स्टेशन लेकर जाती और उस व्यक्ति को गवाही देने के लिए भी अदालत के समक्ष प्रस्तुत होना पड़ता है।तो ये सब मुसीबत कौन ले? इसी कारण से अधिकतर लोग इस चक्कर में फंसना नहीं चाहते।”

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